मेट्रो का सफ़र होता है सुहाना, तो ट्रेन में क्यू लगते है झटके
हम में से बहुत से लोगों ने ट्रेन और मेट्रो दोनों में सफर किया होगा. इस सफर के दौरान कइयों ने यह भी गौर किया होगा कि ट्रेन का सफर में लगातार पटरी और पहिए के बीच खट-खट की आवाज आती रहती है. साथ ही पूरे रास्ते हल्के-हल्के झटके भी लगते रहत हैं. वहीं, मेट्रो में ट्रैवल करते समय ऐसा कुछ नहीं होता है. क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे की वजह क्या है? अगर नहीं तो अब सोच लीजिए क्योंकि आज हम आपको इसका जवाब बताने जा रहे हैं. ट्रेन के लगातार खटखट करने के पीछे एक बेहद दिलचस्प वजह है. इसक वजह की मुख्य बिंदु पटरियां और उनकी बनावट है. हम जानते हैं कि भारतीय रेलवे की लाइनें हजारों किलोमीटर तक फैली हैं. ऐसे में हजार किलोमीटर लंबी पटरी कारखाने में बनाकर उसे ट्रैक पर बिछाना तो संभव नहीं है, तो इसका इलाज क्या है. इसका इलाज है पटरियों के छोटे-छोट टुकड़े लाकर उन्हें आपस में जोड़ना. पटरियों के टुकड़ों को आपस में जोड़कर लंबी लाइन बनाई जाती है और यही इस आवाज का कारण भी है. भारत में पटरी के एक टुकडे़ की लंबाई 20 मीटर की होती है. यानी हर 20 मीटर पर एक नया टुकड़ा जोड़कर हजारों किलोमीटर लंबी रेल लाइन तैयार की जाती है. जहां भी ट्रैक को जोड़ा जाता है वहां हल्का गैप छोड़ दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि मौसम बदलने के साथ ट्रैक भी सिकुड़ते या फैलते हैं. यह बदलाव बहुत बड़ा नहीं होता लेकिन लंबे समय तक ऐसा होता रहे तो पटरी कुछ समय बाद या तो टेढ़ी हो जाएगी या टूट जाएगी. इसलिए हल्का गैप छोड़ दिया जाता है ताकि अगर पटरी फैले भी तो इसकी गैप की वजह से वह बैंड न हो. इससे ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त होने से बच जाती है.इन्हीं गैप के ऊपर से जब ट्रेन गुजरती है तो खट-खट की आवाज आती है और साथ में हल्के झटके लगते हैं. चूंकि ट्रैक का जोड़ हर 20 मीटर पर होता है तो आवाज और झटके दोनों लगातार चलते रहते हैं. हालांकि, अब ट्रैक्स को जोड़ने के तरीके में बदलाव किया जा रहा है. इन्हें सीधे-सीधे एक दूसरे से ना मिलाकर साइड से एक-दूसरे से जोड़ा जा रहा है जिससे की ट्रेन के पहियों को गैप ना पार करना पड़े और झटके व आवाज कम हो जाएं.मेट्रो की पटरियों में भी जोड़ होता है. लेकिन मेट्रो के लिए बिछाई गई पटरियों के जोड़ को थोड़ा दूरी पर लगाया जाता है. दूसरी बात यह कि मेट्रो में 2 स्टेशन के बीच की दूरी 1-2 किलोमीटर की ही होती है. पटरियों के जोड़ में दूरी और स्टेशंस की नजदीकी के कारण यात्रियों को जल्दी इन झटकों के बारे में पता ही नहीं चल पाता है. हालांकि, डिपो वगैरह से पहले या फिर जहां स्टेशंस में गैप थोड़ा ज्यादा हो वहां कई बार हल्के से झटके मेट्रो में भी महसूस कर सकते हैं.