यात्रा संस्मरण: आबूधाबी की यात्रा और वहां के अरबी शेखों द्वारा व्यापार का ऑफर
सिंदबाद ट्रैवल्स-6
दुबई से आबूधाबी के लिए शेयरिंग टैक्सी चलती हैं सो अगले दिन मैं शेयरिंग टैक्सी पकड़ कर आबूधाबी को निकल पड़ा। उस समय हमारे भारत में ऐसी सड़कें और इस किस्म के हाइवे और एक्सप्रेसवे नहीं थे जैसे आज हैं तो 6 लेन सड़क देख कर भी मैं चमत्कृत सा ही था। इस प्रकार की सड़क पर और विदेशी बड़ी गाड़ी में चलने का अनुभव ही कुछ अलग था क्योंकि अभी भारत में विदेशी और उन्नत किस्म की गाड़ियों का युग शुरू होने को था।
आबूधाबी में मैं सीधे मिस्टर मत्तार के ऑफिस पहुंचा। ये वही अरबी सज्जन थे जो मुझको दिल्ली से दोहा की फ्लाइट में मिले थे और आबूधाबी की सरकार में कार्यरत अधिकारी थे।
उनसे मेरी फोन पर बात हो चुकी थी और वो बड़ी उत्सुकता से मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। मैं जैसे ही वहां पहुंचा वो बहुत प्रसन्न हुए।पहले चाय पानी हुआ फिर वो मुझको अपने बॉस से मिलवाने ले गए जो आबूधाबी की सरकार में किसी किस्म के सेक्रेटरी या अति सचिव के पद पर थे। उन लोगों से विभिन्न विषयों पर बहुत देर बात होती रही और वहां की संस्कृति तथा भारत की ज्योतिष पर भी काफी बातचीत हुई। जब बात व्यापार की हुई तो उन दोनों ने मुझसे कहा कि तुम यहाँ आबूधाबी में कांच की एक फैक्ट्री खोल लो और हम तुरंत हर प्रकार की मदद करेंगे तो मैंने उनको धन्यवाद देते हुए बड़ी विनम्रता पूर्वक मना किया और कहा कि ये अभी मेरी scheme of things में नहीं है। इस पर उन सचिव महोदय ने मिस्टर मत्तार से कहा कि इनको इनक्यूबेटर का ऑर्डर दे दो। मैंने उनसे इस विषय में जानकारी ली तो मालूम पड़ा कि मुर्गी के अंडों को सेने के लिए इंक्यूबेटर्स की बड़ी डिमांड थी उसका ऑर्डर मुझको दिया जा रहा था। मैंने उसके लिए भी विनम्रता पूर्वक धन्यवाद देते हुए मना कर दिया। उनको लगा कि ऑर्डर मुझको छोटा लग रहा है मैं इसलिए मना कर रहा हूं तो उन्होंने मुझसे कहा कि ये बहुत बड़ा ऑर्डर है और तुम जितना तुम्हारे लिए संभव हो उतना कर लो। मैंने कहा कि बात ये नहीं है जो आप समझ रहे हैं बल्कि बात ये है कि मैं पूर्णतः शाकाहारी हूं और मैं ये मुर्गी, अंडे, चूजे आदि का व्यापार कतई करना नहीं चाहूंगा चाहे मुझको इसमें कितना भी लाभ और पैसा मिले, इस कारण से मैं इसको नहीं करूंगा। उन दोनों ने मेरी भावना को समझा और कहा कि फिर आप हम लोगों से आगे जो मदद चाहें वो बताइयेगा और हम जरूर आपकी मदद करेंगे। कुल मिलाकर आबूधाबी यात्रा अच्छी रही किन्तु व्यापार कुछ नहीं हुआ। उन लोगों ने अपनी शानदार मर्सडीज़ गाड़ी से मुझको दुबई वापिस छुड़वाया। उनकी गाड़ी जब रोड पर 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी तेज चली और ये सिर्फ गाड़ी का मीटर देख कर ही पता चल रहा था तो मैं ये देखकर विस्मय से भर गया।
आबूधाबी में मुझको अपने दिल्ली की कुछ झलक सी लगी क्योंकि यहां चौड़ी सड़कें,खूब सारे पेड़, बहुत अच्छी हरियाली और काफी कुछ खुला खुला सा था जबकि दुबई ऐसा लगा कि अपना मुम्बई ही है बस थोड़ी सुंदरता और सफाई ज्यादा है।
अगले अंक में चर्चा करूंगा दुबई के व्यापार, एयरपोर्ट और दोहा,कतर की यात्रा की...
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।