यात्रा संस्मरण: दुबई में एक छोटा सा हिंदुस्तान बसा है, प्रवासी भारतीयों का शरीर अवश्य विदेश में है लेकिन उनकी आत्मा भारत में ही बसती है

Update: 2024-09-20 13:33 GMT

सिंदबाद ट्रैवल्स-4

दुबई में काफी चतुर्वेदी परिवार रहते हैं और अधिकतर मथुरा से आये हुए हैं और वहां बहुत अच्छा कर रहे हैं। दुबई में शहर के दो हिस्सेनुमा हैं। एक को बर दुबई कहते हैं और दूसरे को डेरा। बर दुबई से डेरा जाने को एक रास्ता तो पुल से होकर था और दूसरा समुद्र में बोट से जिसको वहां की लोकल भाषा में अबरा कहते हैं। समुद्र के ऊपर का पुल बहुत शानदार और विशाल था और खास बात ये थी कि जब पानी के जहाज का निकलने का समय हो तो वो पुल एक हिस्से में पूरा ऊपर उठ कर खड़ा सा हो जाता था। इस पुल को बाद में कुछ हिंदी फिल्मों में भी फिल्माया गया है।

जहां से अबरा चलते हैं वहीं समुद्र के एक कोने को वहां रहने वाले चतुर्वेदी लोग मथुरा का यमुना जी का "विश्राम घाट" कहते थे। वहां जाकर चतुर्वेदी लोग हाथ जोड़ कर जैसे मथुरा में जय जमुना मैय्या की कहते हैं वैसे ही हाथ जोड़ कर "जय जमुना मैय्या की" कहते हुए प्रसाद अर्पित करते हैं। ये देख कर मुझको लगा कि व्यक्ति भले ही रोजी रोटी कमाने के लिए अपना घर छोड़ दे लेकिन उसकी जड़ों की याद और उसके संस्कार उसमें बने रहते हैं और वो किसी न किसी रूप में उन यादों को जिंदा बनाये रखना चाहता है। यहां भी चौबे लोग समुद्र में ही अपनी जमुना मैय्या की परिकल्पना करके संतुष्ट हो लेते हैं। वहां के घरों में भी मुझको अपने देश की झलक खूब दिखी। जिन शरद चतुर्वेदी भाईसाहब के मैं रुका था उनके घर में एक तोता पाला हुआ था और तुलसी जी भी थीं।

दुबई में आगे की यात्राओं में मेरा संपर्क शरद भाईसाहब के रिश्तेदार और मथुरा के ही श्री संजय चतुर्वेदी से हुआ। संजय चतुर्वेदी उस समय दुबई में नए-नए आये थे और वहां स्थापित होने का जतन कर रहे थे। उनकी व्यापारिक बुद्धि और उनका जीवट गजब का था। वो वहां न सिर्फ स्थापित हुए बल्कि अब भी वहां एक सफल और सुखद जीवन व्यतीत व्यतीत कर रहे हैं।

दुबई में मैं श्री कृष्ण जी के मंदिर भी गया वहां भगवान की फोटो स्थापित थी और बिल्कुल अपने देश की तरह पूजा पाठ होता था और आरती प्रसाद भी। उस मंदिर के पास ही के हिस्से में शिव जी के मंदिर में मैंने दूध भी चढ़ाया।

मतलब ये है कि मुझको ऐसा लगा कि दुबई में एक छोटा सा हिंदुस्तान बसा हुआ है और जो लोग वहां अपनी रोज़ी रोटी या बेहतर जीवन चर्या और बेहतर सुख सुविधा आदि के कारण रह रहे हैं वो खूब सुखी हैं, सम्पन्न भी हैं लेकिन उनका दिल अभी भी अपने देश हिंदुस्तान में ही है और इसीलिए यहां विदेश में भी उन्होंने अपने घरों में, अपने कार्यालयों में और अपने दिलों के कोनों में एक छोटे से भारत को बसा रखा है और अपनी सांस्कृतिक विरासत को पूर्णतयः जीवित और जीवंत रखा हुआ है। दरअसल जो भी भारतीय विदेश में रहते हैं उनकी first generation तो कम से कम अपने देश का जुड़ाव महसूस करती ही है और कई बार ऐसा भी प्रतीत होता है कि इन प्रवासी भारतीयों का शरीर अवश्य विदेश में है लेकिन उनकी आत्मा भारत में ही बसती है।

अगले अंक में चर्चा होगी दुबई में भारतीय व्यक्ति के बनाये बहुत बड़े कारोबार की और दुबई के प्रसिद्ध सोने के बाज़ार ‘गोल्ड सकू’ की...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।

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