इतनी रात को काहिरा की वो अजीबो-गरीब गलियां मानो मुझसे ये कह रही थीं कि बहुत देर हो गयी है अब वापस जाओ... याद आ गई फिरोजाबाद की गलियां

Update: 2024-09-30 09:27 GMT

सिंदबाद ट्रैवल्स-13

इजिप्ट-काहिरा

अब हम लोग काहिरा के खान अल-खलीली (स्ट्रीट) बाज़ार पहुंच चुके थे। ये काहिरा का बहुत प्राचीन बाज़ार है जिसकी शुरुआत 14वीं शताब्दी यानी लगभग 600 वर्ष पूर्व में हुई बताते हैं। वहां के दुकानदारों से बात करके मालूम हुआ कि कई लोग और कई दुकानें इस बाज़ार में ऐसी हैं जो कि 500 या 600 वर्षों से पुश्त दर पुश्त से यहां और इसी व्यापार को कर रहे हैं। जरा इस बात को सोच कर देखिए कि आप एक ऐसी दुकान पर बैठे हैं जो 500 या 600 साल से लगातार खुलती है और आज जो व्यक्ति यानी कि उस दुकान के मालिक जो आपके सामने बैठे हैं इसी दुकान पर कभी इनके बाबा और उनके बाबा और उनके भी बड़े बाबा बैठा करते होंगे। मुझको तो इस बात के सोचने मात्र से रोमांच हो उठा था। मुझको एहसास हो रहा था कि आखिर मिस्र की सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में ऐसे ही नहीं कही जाती है और हां बड़ी बात ये थी कि उन लोगों ने अपनी इस विरासत को सहेज कर रखा हुआ था और उनको इस पर गर्व भी था। हमारे हिंदुस्तान में भी ऐसे बहुत से परिवार होंगे जिनके घर/मकान पुश्तैनी हैं, खुद फ़िरोज़ाबाद में हमारे परिवार का जो पुश्तैनी मकान है उसका 500 वर्ष से अधिक का इतिहास है और हमारे परिवार के अरविंद भाईसाहब आदि कुछ सदस्य अभी भी उस मकान में निवास कर रहे हैं और भी ऐसे कुछ लोगों के विषय में मैं जानता हूं जो अपने अति प्राचीन घरों में पुश्त दर पुश्त रहते आ रहे हैं जैसे फिरोजाबाद हरीश चतुर्वेदी जी (हरीश मामा का मकान ये भी सैकड़ों साल पुराना है और वो लोग इसमें अभी भी रहते हैं) लेकिन खान-अल-खलीली स्ट्रीट बाजार की खास बात ये थी कि यहां पूरा बाज़ार लगभग 600 साल पुराना है और उसमें जो दुकानें हैं उनके मालिकों के परिवार लगभग इतने ही यानी कि 600 वर्षों से इन दुकानों पर कारोबार करते आ रहे हैं। खान अल-खलीली बाजार में बहुत तरह की दुकानें थीं कुछ पर हुक्के बिक रहे थे जिनमें कांच के भी थे,कुछ पर और Egyptian artifacts बिक रहे थे। कांच, सिरेमिक आदि की वस्तुओं में नीले और फिरोजी रंग की वस्तुओं की बहुतायत थी और सफेद या क्रीम कहूं तो ज्यादा उचित रहेगा तो क्रीम कलर के ऐलाबस्टर के पत्थर के बने मिस्र के पिरैमिड, रानियों की मूर्तियां, स्फिंक्स आदि के छोटे छोटे प्रारूप भी बिक रहे थे। इसके अतिरिक्त वहां कांच के कुछ छोटे खिलोने और हुक्के आदि चीज़ें एक बहुत ही translucent किस्म के कांच की भी थीं जिनको देख कर ऐलाबस्टर जैसे पत्थर की वस्तु होने का आभास होता था और ये वजन में बहुत ही हल्की थीं। कांच के बीड्स जहां भी दिखे हम उन दुकानों पर गए लेकिन उनके यहां भी जापान का माल अधिक था और मेरी भरपूर कोशिशों के बावजूद भी मेरे रेट उनके मोतियों से ज्यादा ही थे ऐसा क्यों था ये मैं उस वक़्त समझ नहीं पाया लेकिन नतीजा ये रहा कि ऑर्डर नहीं मिला।

इसके बाद हम काहिरा की एक और पुरानी स्ट्रीट अल मोइज स्ट्रीट पर स्थित दुकानों पर गए। अल मोइज स्ट्रीट काहिरा की सबसे पुरानी सड़कों में से है ,ये एक किलोमीटर के करीब लंबी सड़क है और कमाल की बात ये है कि ये लगभग एक हजार वर्षों से भी ज्यादा पुरानी सड़क है। अल मोइज स्ट्रीट के दुकानदारों से बैठ कर खूब बातचीत हुई किन्तु prices पर फिर बात नहीं बनी। मिस्टर मैगदी एक अच्छे translator साबित हो रहे थे हांंलांकि उनको मेरी और मुझको उनकी अरबी नुमा अंग्रेजी समझने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी।

इसके बाद मिस्टर मैगदी मुझको कुछ और इलाकों में ले गए जहां की गलियां फिरोजाबाद के सहपऊ बूरा वालों की गली (रघुवर गली) या लोहियान गली अथवा शीतल खां इलाके की गली नंबर 7, इलाहाबाद की खुशाल पर्वत, मालवीय नगर या लोकनाथ जैसी चौक की गलियों, दिल्ली के चांदनी चौक और सदर बाजार की गलियों और मुंबई के मस्जिद बंदर इलाके की सैमुएल स्ट्रीट या काज़ी सैय्यद स्ट्रीट और चकला स्ट्रीट जैसी गलियों को भी मात दे रही थीं।

रात हो रही थी और मैं और मिस्टर मैगदी काहिरा की गलियों में कंधों पर सैम्पिल लादे glass beads के व्यापारी खोजते घूम रहे थे। लंबी,पतली घुमावदार गलियों में दोनों तरफ ऊंची ऊंची इमारतें और दोनों ही तरफ उन इमारतों की बहुत ऊंची और विशालकाय दीवारें थीं जो कई जगहों पर तो बड़े विशाल और बेहतरीन सजावट के गेटों से युक्त थीं तो बहुत सी जगहों पर ऊंची सीधी और सपाट सी थीं और उन गलियों की दीवारों में ही थोड़ी थोड़ी दूरी पर थोड़ी ऊंची बनी और सीढियां चढ़ कर वो दुकानें थीं जिनमें हम सैम्पिल दिखाते घूम रहे थे। आखिर में ये लगा कि बहुत देर हो गयी है तो मैंने कहा अब अगले दिन प्रयास करेंगे अभी होटल चला जाये। दरअसल इतनी रात को काहिरा की वो अजीबो-गरीब गलियां मानो मुझसे ये कह रही थीं कि बहुत देर हो गयी है अब वापस जाओ।

अगले अंक में चर्चा होगी मिस्टर मैगदी के पहले झटके की और काहिरा की...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।


Tags:    

Similar News