मिस्र के पिरैमिडों में विशालता है, रहस्य है, थोड़ा भय भी है कहीं कहीं...

Update: 2024-10-19 13:22 GMT

सिंदबाद ट्रैवल्स-25

गीजा के पिरैमिड और स्फिंक्स

पिरैमिड का विशालकाय निर्माण बहुत गजब का था और अगर इसको साक्षात न देखें तो विश्वास ही नहीं होगा कि कोई मानवीय संरचना ऐसी शानदार और इतनी विशालकाय (Huge) भी हो सकती है और वो भी लगभग 4500 वर्ष पुरानी...

इस पिरैमिड को देख कर मैं ये सोचने पर मजबूर था कि उस प्राचीन काल में 23 साल में भी ऐसी विशालकाय, मजबूत इमारतें कैसे बनी होंगी?

क्या कमाल के इंजीनियर और आर्कीटेक्ट रहे होंगे?

क्या कमाल के राज मिस्त्री और मजदूर रहे होंगे?

कैसे इतने लाखों पत्थर इतने उम्दा तरीके से तराशे गए होंगे?

कैसे अद्भुत औजार रहे होंगे...

किस प्रकार से ये पत्थर सैकड़ों फीट तक इतनी ऊंचाई तक पहुंचाये गए होंगे और कैसे लगाए गए होंगे?

जिन लाखों मजदूरों ने दशकों तक मेहनत करके इस पिरैमिड को बनाया गया होगा उनको यदि सिर्फ खाना और रहना भी दिया जाता होगा तो इतने राजकोष की व्यवस्था कैसे की गयी होगी?

मैं यही सब सोच रहा था और गैलरी में आ गया था कि एक आदमी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझको बुलाया, मैंने चौंक कर उसकी ओर देखा तो वो वह गार्ड था जिसके पास मैं अपने वीडियो कैमरे की बैटरी छोड़ आया था। उसने बैटरी मुझको वापिस दी और इशारा किया कि फोटो खींच लो, अब तक मैं भी समझ चुका था कि पैसे और भ्रष्टाचार की भाषा यहां भी बहुतों की रग रग में व्याप्त थी। मैंने हंस कर उसको इशारा किया कि भाई मैंने बैटरी लगा दी अब वीडियो तुम ही बना दो जो कि उसने बना भी दिया। इसके बाद उसने कहा तो मैंने उसको बैटरी वापिस निकाल कर दे दी फिर उसने कहा “give me some tip...Money" तो मैंने अपनी जेबें उलटीं तो उसमें केवल 2 इजिप्शियन पाउंड थे जो कि उसने बहुत बुरे मन से ग्रहण किये लेकिन ले लिए और मुझको सख्त ताकीद की कि ये बात मैं उसके दूसरे साथी को, जो बाहर ही खड़ा था, बिल्कुल न बताऊं और मुझको भी बताने की क्या पड़ी थी। वहां मुझको पिरैमिडों और मिस्र के इतिहास की बहुत सारी और बहुत रोचक कई जानकारियां और मिलीं लेकिन वो जब कभी विशेष रूप से पिरैमिड आदि के विषय में कभी लिखा तो अवश्य लिखूंगा। हां एक बड़ी बात ये जरूर मन में आयी कि हमारे हिंदुस्तान में ताजमहल, सिकंदरा या अन्य जो भी बादशाहों के मकबरे बने हैं वो यद्यपि इतने विशाल नहीं हैं लेकिन उनमें एक सुरुचिपूर्ण architecture है जबकि मिस्र के पिरैमिडों में विशालता है, रहस्य है, थोड़ा भय भी है कहीं कहीं लेकिन एक अजीब सी नीरसता है और उदासी भी है हांलांकि कुछ आध्यात्मिक सी शांति भी थी उस पिरैमिड के अंदर के चैंबर में। साथ ही साथ ये भी सत्य है कि मिस्र के गीजा के ग्रेट पिरैमिड जैसी पृथ्वी पर दूसरी कोई कृति नहीं, उनको देखकर मन विस्मय से भर जाता है , वे कैसे बने होंगे

मन-मस्तिष्क में ये प्रश्न भी बार बार उठता ही रहता है। इन पिरैमिडों में कितनी अकूत संपत्ति थी जो शायद लुटेरों द्वारा लूट ली गयी और जो लूटने से बच गयी वो काहिरा के इजिप्शियन म्यूजियम में प्रदर्शित है लेकिन इन सबसे बड़ी जो बात थी वो ये की आज से लगभग 4500 वर्ष पहले आखिर ऐसी विशाल कृतियां मनुष्य ने कैसे बनायीं जो आज भी इस आधुनिक टैक्नोलॉजी के जमाने में भी बनाना कोई आसान काम नहीं होगा। मैं ये भी सोच रहा था कि अगली बार कभी आया तो पिरैमिडों को तसल्ली से देखने को खूब समय लेकर आऊंगा।

पिरैमिड देख कर जब मैं बाहर निकला तो उस गार्ड ने मेरे कैमरे की बैटरी वापिस कर दी। बैटरी लेकर अब मैं उस स्थान पर पहुंचा जहां अरबी घोड़े वाले ने मुझको छोड़ा था तो वो वहां नहीं था। मैं उसको इधर उधर खोजता रहा किन्तु वो नहीं मिला।

बहुत खोजने पर भी जो घोड़े वाला मुझको पिरैमिडों तक लाया था वो कहीं नजर नहीं आया और धीरे धीरे उसका इंतजार करते मुझको लगभग 45 मिनट हो गए तो मैंने फिर स्फिंक्स देखते हुए नीचे चलने को एक दूसरे घोड़े वाले से बात की और उसके घोड़े पर बैठ कर चल दिया। जैसे ही मैं थोड़ी दूर चल पाया था कि अचानक न जाने कहां से वो पहले वाला घोड़े वाला आ गया (जैसे वो कहीं पास ही छुपा हुआ था) और मुझसे झगड़ने लगा कि मैंने उसको छोड़ कर दूसरा घोड़े वाला क्यों किया। देखते ही देखते वो दोनों घोड़े वाले लड़ने लगे और दोनों अपनी अपनी तरफ से मेरे हाथ तो कभी पैर पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगे। मेरी स्थिति बड़ी विचित्र थी कि मैं घोड़े पर बैठा था और कभी लगता कि इधर गिरूंगा तो कभी लगता उधर गिरूंगा और उनको समझाना या उनसे ठीक से बात करना भी लगभग असंभव प्रायः ही था क्योंकि भाषा की समस्या थी। आखिर हार कर मैंने उन दोनों से इशारों में ये कहा कि पहले स्फिंक्स देख लेते हैं फिर दोनों लोग नीचे चलो वहीं बात करेंगे, इस बात पर दोनों शांत से हुए और हम स्फिंक्स की ओर बढ़ लिए।

स्फिंक्स एक 238 फिट के करीब लंबी और 66 फिट के करीब ऊंची पत्थर की मूर्ति है जिसका शरीर शेर का और चेहरा मनुष्य का है। पिरैमिडों के आगे स्फिंक्स की ये विशाल मूर्ति ऐसी प्रतीत होती है जैसे शेर के शरीर और मानव के चेहरे वाली ये मूर्ति यहां बैठ कर पिरैमिडों की रक्षा कर रही है। कहा जाता है कि ये मूर्ति सम्राट खूफु के पुत्र फराओ खाफ्रे ने बनवायी थी। कुछ लोगों का तो ये भी मानना है कि स्फिंक्स चेहरा दरअसल फराओ खाफ्रे के चेहरे की ही प्रतिकृति है। स्फिंक्स को ऐसा लगता है कि एक पूरे पहाड़ को काटकर बनाया गया है और उसके लिए मेरे मस्तिष्क में बस एक ही शब्द आया Majestic।

स्फिंक्स के सामने घोड़े पर बैठे हुए पर मुझको नेपोलियन बोनापार्ट की वो प्रसिद्ध पेंटिंग भी याद आयी जिसमें वो पिरैमिड और स्फिंक्स के सामने खड़े हुए हैं। मैं भी उसी स्थान पर खड़ा था लेकिन नेपोलियन का घोड़ा शानदार अरबी घोड़ा था और मेरे वाले शानदार घोड़े के कान कुछ बड़े थे।

चूंकि इतिहास मेरा विषय रहा है और मेरी इसमें रुचि भी रही है तो मैं सोच रहा था कि इजिप्ट पर एक जमाने में सीजर ने हमला किया था तब यहां के राजा का नाम टॉलेमी Ptolemy था क्योंकि टॉलेमी ने पौम्पी को मार दिया था, हांलांकि पौम्पी से सीज़र भी खुश नहीं था किंतु उसको टॉलेमी की ये बात गलत लगी कि उसने रोमन साम्राज्य के वीर पौम्पी को आखिर मारने की हिमाकत कैसे की। यहां इस बात का जिक्र इसलिए भी कि टॉलेमी को मारकर ही सीजर ने प्रसिद्ध क्लियोपेट्रा को मिस्र की रानी बनाया था। भारत में पाटलिपुत्र के सम्राट अशोक के 13वें पत्थर के स्तम्भ (13th rock edict) जो कि 3सरी सदी ई0पू0 का है से मिस्र के राजा टॉलेमी से भारत के संपर्क का पता चलता है। प्राचीन इतिहासकार प्लिनी के अनुसार भी टॉलेमी ने पाटलिपुत्र के मौर्य सम्राट (संभवतः अशोक) के दरबार में डायोनाइसिअस नामक राजदूत को भेजा था।

इन बातों को सोचते हुए मेरे मन में ये प्रश्न भी उठा कि क्या इस से पहले के प्राचीनकाल में भी भारत और मिस्र के बीच संपर्क थे। विचारने पर जवाब हां में ही मिला। आज भी सोचता हूं कि मैंने कभी पढ़ा था कि सिंधु घाटी की सभ्यता में लोथल और मोहन जो दाड़ो में टेराकोटा की जो ममी मिली हैं वो मिस्र की ममियों से मिलती जुलती हैं। ये भी कहीं लिखा है कि इजिप्ट की ममी लपेटने में भारतीय मलमल (Indian Muslin) का इस्तेमाल होता था। जर्मनी के प्रसिद्ध Indologist Peter Von Bohen के अनुसार मिस्र के Hieroglyphics लेखन और वैदिक लेखन में कई जगह काफी साम्य है। इतिहास में ये भी दर्ज है कि मिस्र की रानी हतशेपुत के समय में केरल से मसालों से भरे 5 जहाज इजिप्ट आने की बात कही गयी है। कुछ लोगों ने ये भी जिक्र किया है कि हमारे यहां जो यक्ष की प्राचीन मूर्ति पायी गयी है उसमें और प्राचीन मिस्र के देवता “बेस BES” की मूर्ति में काफी साम्यता है।

ये सब बातें मैं सोच रहा था विश्व प्रसिद्ध स्फिंक्स की विशालकाय मूर्ति के सामने खड़ा होकर। स्फिंक्स यानी जिसका सिर मानव का और बाकी का शरीर शेर का था और मुझको याद आ गए अपने भगवान नरसिंह। उनके अवतार में शरीर मानव का और मुख सिंह का है।

प्राचीन काल की लगभग हर सभ्यता में सिंह और मनुष्य के शरीर को एकरूप करके बनाई हुई मूर्तियां और कथाएं मिलती हैं, ग्रीस यानी कि यूनान में भी स्फिंक्स नुमा मूर्ति है और कुछ में पंख भी हैं। दरअसल मेरा मानना ये है कि मनुष्य पृथ्वी के किसी भी भाग में रहा हो उसको शक्ति ने सदैव आकर्षित किया है और यदि मनुष्य में सबसे ताकतवर यानी कि सिंह की शक्ति समाविष्ट होकर एकरूप हो जाये तो उस से ज्यादा शक्तिशाली आखिर किस जीव की कल्पना की जा सकती थी और विविध कालों और स्थानों में इस प्रकार की मूर्तियां, चित्र और कथाएं संभवतः मनुष्य की इसी इच्छा का प्रतिफल थे। आधुनिक काल में भारत की सरकार का राजकीय चिन्ह भी सम्राट अशोक के सिंह स्तम्भ वाला है। इस प्रकार के बहुत से विचार मन में आते रहे और मैं स्फिंक्स की उस विशालकाय मूर्ति और उसके पीछे छूट गए पिरैमिडों को काफी देर अपनी आंखों में भरने का प्रयास करता रहा और फिर यद्यपि मन तो नहीं भरा था किंतु समय हो रहा था इसलिए मैंने कार की तरफ चलने का विचार किया।

अगले अंक में चर्चा है घोड़े वालों के झगड़े, मिस्टर मैगदी की हरकत और उनके चंगुल से अपने बच निकलने की...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से काँच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।

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