मिस्र वालों ने पैपिरस यानी एक विशेष किस्म की लिखने योग्य शीट अब से लगभग 5000 वर्ष पहले बना ली थी

Update: 2024-10-04 12:05 GMT

सिंदबाद ट्रैवल्स-16

इजिप्ट-काहिरा:- नील नदी

मैंने मैगदी साहब से पूछा कि ये पैपिरस म्यूज़ियम क्या जगह है? इस पर मिस्टर मैगदी ने बताया कि मिस्र वालों ने पैपिरस यानी कि एक विशेष किस्म की लिखने योग्य शीट 3000B.C. के समय में यानी कि अबसे लगभग 5000 वर्ष पहले बना ली थी। ये विधा कागज़ का आविष्कार होने के बाद धीरे धीरे लुप्त हो गयी थी।

फिर इजिप्ट के एक वैज्ञानिक/इंजीनियर मिस्टर रगब ने इसकी फिर से खोज की और इसको बनाने और प्रदर्शित करने का संस्थान/म्यूज़ियम खोला। ये सुनकर मेरी भी उत्सुकता ऐसी जगह और ऐसी चीज को देखने की हो गयी और मैंने भी इसके लिए हां कर दी।

होटल से निकल कर हम लोग लगभग 7-8 किलोमीटर चले होंगे कि सामने दिखी विश्व की प्रसिद्ध और मिस्र की जीवन रेखा नील नदी। हां वही नील नदी जिसके लिए ‘हिरोडोटस’ ने कहा था कि “मिस्र ही नील है और नील ही मिस्र है।

नील शब्द ग्रीक के ‘नीलोस’ से आया है। नील संसार की सबसे लंबी नदी कही जाती है यद्यपि 2007 के बाद से कुछ लोगों के अनुसार संसार की सबसे लंबी नदी अमेजन है। खैर नील नदी का उद्गम अफ्रीका की प्रसिद्ध विक्टोरिया झील से है और ये दक्षिण से उत्तर को बहती हुई लगभग 11 देशों से होती हुई (युगांडा, इथियोपिया, बुरुंडी, सूडान आदि) उत्तर में भूमध्य सागर में मिल जाती है।

मैं ये सोचने लगा कि हमारे देश का भूगोल ऐसा है कि हमारी नदियां उत्तर से दक्षिण को बहती हैं जबकि यहां बिल्कुल उल्टा है मतलब कि नील नदी दक्षिण से उत्तर की तरफ बह रही है। इसका अर्थ ये भी हुआ कि इस भूगोल का असर यहां वास्तु पर भी पड़ेगा और यहां के वास्तु के नियम और हमारे यहां के वास्तु के नियमों में बहुत फर्क हो जाएगा। भूगोल का ही कारण था कि जैसे हमारे देश में मुसलमान लोग पश्चिम को (पवित्र काबा की ओर) मुख कर के नमाज पढ़ते हैं लेकिन यहां के लोग मैंने पूरब की ओर (यहां से पवित्र काबा पूरब की ओर है) मुख करके नमाज पढ़ते देखे।

अच्छा अब फिर से उसी बात पर आते हैं यानी कि नील नदी और उसको इतना महान मानने के कारणों पर। मिस्र की प्राचीन सभ्यता का विकास भी नील नदी की घाटी में ही हुआ है। प्राचीन मिस्र के लोगों ने अपना कैलेंडर भी नील नदी के पानी के बाढ़ आने, पानी उतरने और सामान्य रहने के मौसम के हिसाब से ही बनाया था। नील नदी में हर साल बाढ़ आती थी और जब पानी उतरता था तो अपने साथ लायी काली कचकची मिट्टी छोड़ जाता था जो बहुत ही उपजाऊ होती थी और यहां के लोग उसमें खेती करके लाभ कमाते थे/जीवन यापन करते थे।

अब मेरे सामने वो विशाल नदी थी जिसकी जीवनदायिनी शक्ति के कारण उसकी घाटी में पनपी सभ्यता का 5000 साल का प्रामाणिक इतिहास है। जरा कल्पना करिए एक ऐसे क्षेत्र की जहां की पहचान सिर्फ रेगिस्तान से होती यदि उस क्षेत्र के बीच ये निर्मल जल से कल कल करती बहती नील नदी नहीं होती। चौड़ा पाट, शांत जल और इस सबकी सुंदरता बढ़ाती अनेक किस्म की नाव थीं वहां। मैं देख तो नील नदी को रहा था और मन मेरा पहुंच गया था अपनी गंगा-यमुना के पास।पूरा का पूरा दो आबे का क्षेत्र ऋणी है इन नदियों का और इसीलिए तो हम गंगा और यमुना को केवल नदी नहीं अपितु मां का दर्जा देते हैं और उसी तरह पूजते हैं। जहां मैं था वहाँ देखने पर लगा कि नील नदी में बहुत पानी था और मुझे फिर अपनी जीवन दायिनी गंगा यमुना की दुर्गति याद आ गयी, याद आ गया कि दिल्ली के आगे यमुना में और कानपुर के आगे गंगा में तय करना मुश्किल है कि कितना स्वच्छ जल है और कितना नालों और औद्योगिक गंदगी से युक्त... हां नील नदी का पानी नीला नहीं लगा मुझको।

मिस्टर मैगदी ने बताया कि नील नदी पर शाम/रात को नौका विहार खूब प्रसिद्ध है(Boat cruise) इसमें मोटर बोट/नौकाओं पर खाना, पीना और मिस्र के प्रसिद्ध “बैली डांस शो” का आयोजन क्रूज में शामिल रहता है।

अगले अंक में चर्चा है प्राचीन इजिप्ट के कागज के अविष्कार और काहिरा के प्रसिद्ध पैपिरस इंस्टीट्यूट की...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।

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