पैपिरस इंस्टीट्यूट:- पपीरोज के रंग और मिस्र की अजीबोगरीब लिपि

Update: 2024-10-07 07:07 GMT

सिंदबाद ट्रैवल्स-17

इजिप्ट-काहिरा

नील नदी और उस से जुड़ी बातों को सोचता हुआ अब मैं मिस्र के प्रसिद्ध Papyrus Museum पहुंच चुका था। म्यूजियम में अंदर घुसे तो ऐसा लगा कि किसी बहुत बड़ी चित्र दीर्घा में आ गए हों। चारों तरफ न जाने कितने किस्म के अलग अलग साइजों के चित्र टंगे और रैकों पर लटके हुए भी थे। इतने सुंदर चित्र थे वो कि शब्दों में बयान करना मुश्किल ही नहीं अपितु नामुमकिन है।

मिस्टर मैगदी ने मुझको वहां एक महिला और एक पुरुष गाइड अथवा उस म्यूजियम के कर्मचारियों से मिलवा दिया। वो लोग बहुत ही सभ्य, सुसंस्कृत थे और उनकी अंग्रेज़ी भी ठीक थी। उन लोगों ने मुझको बताना शुरू किया कि इजिप्ट में हजारों वर्ष पहले सभ्यता इतनी उन्नति कर चुकी थी कि उन लोगों ने लिखने और चित्र आदि बनाने हेतु एक किस्म की वानस्पतिक शीट बनाने में सफलता प्राप्त कर ली थी और इसको पेपिरस कहा जाता था। पेपिरस शब्द लैटिन और ग्रीक के पौरोस से आया था। पेपिरस बनाने की विधि मिस्र वालों ने बहुत समय तक गोपनीय रखी और उसका लाभ उठाते रहे। ये पेपिरस नील नदी के डेल्टा में उपजने वाले प्लांट सायीप्रस पेपिरस के तने से बनता था। जब कागज बनने लगा तो धीरे धीरे पेपिरस लुप्त हो गया और फिर 1950 और 1960 के दशक में इजिप्ट के ही एक इंजीनियर डाक्टर रगब सूडान और इथियोपिया से पेपिरस प्लांट की जड़ें लाये और इसको इजिप्ट में फिर से उगाने में सफलता प्राप्त की, आज ये फिर से वहां उगाया जाता है और इससे बने पपीरोज के विस्मित कर देने वाले म्यूजियम को देखने हर वर्ष लाखों लोग आते हैं और इस से न सिर्फ मिस्र की प्राचीन संस्कृति का प्रचार होता है अपितु अच्छा खासा आर्थिक एवं व्यावसायिक लाभ भी होता है। 1968 में उन्हीं डाक्टर रगब ने ये पेपिरस म्यूज़ियम खोला था विश्व के लोगों को पेपिरस/पपीरोज बनाने की विधि दिखाने को।

ये सब बताते हुए ही उन लोगों ने मुझको इस प्लांट के तने आदि से पेपिरस शीट बनाने की और उस पर चित्रण अंकित करने या लिखने की पूरी विधि/प्रक्रिया दिखाई और समझाई। उन्होंने बताया कि ये जो शीट बनती है ये 100 वर्ष से अधिक समय तक सुरक्षित रहती है अर्थात खराब नहीं होती और इस पर जो चित्रादि बनाये जाते हैं उनकी स्याही भी कम से कम 30 वर्षों तक खराब नहीं होती है।

अब उन्होंने मुझको पैपिरस पर बने चित्र या पपीरोज़ दिखाने शुरू किए। कमाल की आर्ट थी। इतनी तरह के चित्र और इतने किस्म के रंगों का प्रयोग। कुछ रंग तो इतने चटकीले थे कि बरबस आपका ध्यान बार बार उनकी ओर जाता था। इन पपीरोज़ पर मिस्र के प्राचीन देवी,देवता, फराओ अर्थात राजा, रानी, मिस्र की प्राचीन घटनाएं, पिरैमिड, चिड़ियाओं, जानवरों और न जाने कितनी चीजों के चित्र अंकित थे। एक प्रकार से कहा जाए तो ये पपीरोज मिस्र के इतिहास और संस्कृति को दिखाने वाले और बताने वाले सचित्र उदाहरण के समान थे।

मिस्र की प्राचीन लिपि 'चित्राक्षर लिपि' (Hieroglyphic script) थी। ये काफी कठिन लिपि थी और इसको पढ़ने के प्रयास कुछ सौ वर्ष चलते रहे पर अंततः फ्रांस के 'जीं फ्रांसुआं चैंपोलियां Jean-François Champollion' ने 1822 में इसको पूर्णतः पढ़ने में सफलता पाई। इस लिपि में कुल मिलाकर लगभग 2000 चित्र या चित्रों से बने अक्षर थे।ये लिपि बाएं से दाएं, दाएं से बाएं और ऊपर से नीचे भी लिखी जाती थी। पढ़ने वालों को ये देखना होता था कि मनुष्य या जानवरों के चेहरे इस लिखावट में किस ओर देख रहे हैं या बने हैं जैसे यदि लिखे हुए में चेहरे दाहिने बने हैं/देख रहे हैं तो लिखा हुआ दाहिने से बाएं पढ़ा जाएगा इसी प्रकार किस ओर से पढ़ना है ये ज्ञात होता था। संभवतः इस लिपि की कठिनाई देखते हुए इसी विकास क्रम में आगे 'हाइरेटिक लिपि' का विकास हुआ जिसमें आगे चलकर मात्र 24 अक्षर रह गए और ये अपेक्षाकृत आसान भी थी। जब मुझको इस लिपि के विषय में जानकारी मिल रही थी तो अपनी आदत से मजबूर मेरा मन फिर पहुंच गया हड़प्पा-मोहन जो दड़ो (अब पाकिस्तान) और कालीबंगा, बनवाली (भारत) यानी कि सिंधु नदी की घाटी की सभ्यता के स्थलों पर और मैं सोचने लगा कि सिंधु घाटी की सभ्यता की लिपि को प्रमाणिक तौर पर अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है और मालूम नहीं हमारे अथवा पाकिस्तान के या विश्व में कहीं और के विश्वविद्यालयों और हमारी सरकारों के इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास चल भी रहे हैं कि नहीं। यदि सिंधु नदी की घाटी की सभ्यता की लिपि पढ़ ली जाए तो शायद हम लोग भी अपने इतिहास के विषय में बहुत सी बातें अधिक प्रमाणिक रूप से जान और बता सकेंगे।

अगले अंक में चर्चा होगी मिस्र के पपीरोज़ और इजिप्ट पुराने इतिहास तथा वहां के देवी देवताओं की...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।

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