ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट आदि इलाके

Update: 2024-11-13 11:57 GMT

सिंदबाद ट्रैवल्स-38

इंग्लैंड-लंदन

इंग्लैंड के इन शाही निवासों के आसपास घूम कर अब मैं आ गया था लंदन की विश्वप्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर। ये एक बहुत ही चहल पहल भरा शानदार बाजार है। ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट लगभग 2 किलोमीटर लंबी एक सड़क तथा उसके आसपास के इलाके का बाजार है। ये स्ट्रीट मार्बल आर्च से टॉटेनमकोर्ट रोड तक ऑक्सफोर्ड सर्कस से होती हुई जाती है। यहां पहुंच कर इस इलाके को देख कर मुझको अपने दिल्ली का कनॉट प्लेस याद आ गया। कहा जाता है कि कनॉट प्लेस इस ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट को ध्यान में रखकर ही बनाया गया था। जो कोई भी लंदन आता है ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट घूमे बिना उसकी लंदन यात्रा ऐसे ही अधूरी है जैसे कि संगम में डुबकी लगाए बिना तीर्थराज प्रयाग की यात्रा। ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट का स्थापत्य यानी कि architecture और वहां की lighting भी बहुत ही आकर्षक और लुभावनी थी।

कहा जाता है कि रोज लगभग 4-5 लाख लोग ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट घूमने और खरीदारी करने आते हैं इस से इसकी विशालता और भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है। खास बात ये थी कि यदि एक तरफ वहां बड़े बड़े विश्वप्रसिद्ध ब्रांडों की दुकानें, स्टोर्स जैसे Selfridges, HMV, John Lewis आदि थे तो दूसरी ओर कुछ छोटी रिटेल जैसी दुकाने भी थीं, खूब शोर शराबा और चहल पहल थी। कहा जा सकता है कि ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट में मानो विश्व की विभिन्न सभ्यताएं जीवंत सी हो उठी लगती थीं। मैंने भी ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट से स्वेटर, टाई, टी शर्ट्स आदि चीजे अपने और घरवालों के लिए खरीदीं और कह सकता हूं अनुभव अच्छा रहा।

वहां घूमते हुए मुझको भूख भी लगने लगी थी और तभी उसी इलाके के आसपास मैंने एक दुकान देखी जिसमें शीशे के काउंटर पर मुझको तंदूरी रोटी और रसेदार सी सब्जी भी दिखीं। मैं बता नहीं सकता कि रोटी और सब्जी देख कर मैं कितना उत्साहित हो गया और मेरी भूख कई गुणा बढ़ गयी क्योंकि ना तो मुझको इजिप्ट में रोटी सब्जी नसीब हुई थी और ना ही अभी तक लंदन में। मैं तुरंत उस दुकान में प्रविष्ट हुआ और मैंने दो रोटी और वो गोभी की सी दिखने वाली रसे की सब्जी खरीदी और एक तरफ खाने वाली मेज पर खड़ा हो गया खाना खाने के लिए। जहां तक मुझको याद है एक रोटी एक पाउंड की और सब्जी शायद 3 या 4 पाउंड की रही होगी। सब्जी शाकाहारी थी ये मैंने पूछ लिया था। जैसे ही मैंने रोटी का कौर तोड़ा और सब्जी में लगा कर मुंह में रखा मुझे अपनी नानी याद आ गयी। मैंने अपने पूरे जीवन में इतनी अजीब स्वाद की और बुरी सब्जी कभी चखी भी नहीं थी। खाने को छोड़ना या फेंकना मेरे स्वभाव में नहीं है और मेरे उसूलों के भी खिलाफ है किंतु अपने तमाम उसूलों को एक साथ याद करने पर और अपनी पूरी मन: शक्ति लगाने के बावजूद मेरी हिम्मत उसका दूसरा कौर मुंह में रखने की नहीं ही हुई। ये सब मुझको बहुत बुरा लग रहा था और मुझको वो रोटी भी बहुत महंगी (लगभग 57-58 रुपये की शायद एक रोटी) लग रही थी और वहां कोई दूसरी सब्जी उपलब्ध नहीं थी, आखिरकार मैंने थोड़ी बहुत रोटी ऐसे ही बिना सब्जी के रूखी खाने की असफल कोशिश की और अंत में क्षुधा शांत करने को सैंडविच और बर्गर की ही शरण ली। दरअसल विदेश में कुछेक स्थानों को छोड़ कर भारतीय स्वाद के खाने की समस्या मिलती ही है खास तौर हमारे जैसे लोगों को जिनको कभी घर का खीर-झोर-सिकिंद और भात याद आता है और कभी मट्ठे के आलू-अरवी और परांठे।

कुल मिलाकर आज का दिन लंदन की भव्यता से रूबरू होने का दिन रहा था, वहां की संस्कृति और संपन्नता से परिचित होने का दिन रहा था लेकिन अंग्रेजों के तौर तरीकों आदि से जो चीज मुझको सबसे ज्यादा सीखने वाली लगी वो ये थी कि भूतकाल की ऐतिहासिक चीजों को संजो के तो रखो लेकिन भूतकाल के विषाद में जियो मत अपितु भविष्य की ओर अपनी पूरी शक्ति और सामर्थ्य से बढ़े चलो। इतने बड़े साम्राज्य के खत्म होने के बाद भी उसको खोने की तकलीफ से पीड़ित मुझको कोई अंग्रेज नहीं मिला। दूसरी बात ये भी महत्वपूर्ण थी कि इन लोगों ने सारी दुनिया में अपनी कुटिलता, क्रूरता, चालबाजियों से अपना राज्य स्थापित किया और अपने मातहत वाले गुलाम देशों और उनके नागरिकों का हर प्रकार का और खूब शोषण किया किन्तु यहां के लोगों से मिलकर उनसे बात कर के हर बार यही लगा कि लोकतंत्र और मानव मूल्यों का इनसे बड़ा अलंबरदार कोई और नहीं है।

यही सब विचार करता हुआ मैं अपने ठहरने के स्थान यूथ हॉस्टल पहुंच गया था और जल्दी ही निद्रा देवी की शरण में जाने का प्रयास करने लगा

अगले अंक में विम्बलडन की यात्रा...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी। 

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