सिंदबाद ट्रैवल्स-39
अगला दिन मेरी इस इंग्लैंड यात्रा का अंतिम दिन था क्योंकि उसके अगले दिन मेरी पेरिस, फ्रांस यात्रा की टिकट थी। जल्द ही मैं वापिस यूथ हॉस्टल में अपने बिस्तर पर था। अगला दिन जो मेरी इस इंग्लैंड यात्रा का अंतिम दिन होना था सो इस दिन मेरा विम्बलडन जाने का इरादा था।
अगले दिन फिर सुबह उठ कर और तैयार होकर मैं चल दिया अर्ल्स कोर्ट स्टेशन की तरफ। Earl's Court स्टेशन से मैंने ट्यूब की District line लेकर Wimbeldon की यात्रा शुरू की। विम्बलडन दरअसल लंदन के बिलुकल पास ही है या ये भी कहा जा सकता है कि लंदन का ही हिस्सा है। लंदन से विम्बलडन की दूरी लगभग 11-12 किलोमीटर की है। अर्ल्स कोर्ट स्टेशन से विम्बलडन स्टेशन लगभग 40-45 मिनट का समय लगा और शायद उस लाइन पर ये अंतिम स्टेशन था। विम्बलडन स्टेशन पर उतर कर विम्बलडन ग्राउंड के लिए मुझको लगभग 10-15 मिनट थोड़ा चढ़ाई के रास्ते पर पैदल चल कर जाना पड़ा। बाद में ये भी मालूम पड़ा कि विम्बलडन कोर्ट जाने के लिए सबसे नजदीक का स्टेशन Southfields था।
चूंकि मैं लगभग 10 वर्ष की उम्र से ही पढ़ाई के लिए दूसरे शहरों अर्थात इलाहाबाद और लखनऊ के स्कूलों/यूनिवर्सिटी में पढ़ा और हॉस्टलों में रहा इसलिए मैं लगभग सभी प्रकार के खेलों में हाथ आजमा चुका था अर्थात मैं अपने यहां खेले जाने वाले सभी खेलों में भाग लेता रहा था और ये भी सच है कि मैं किसी भी खेल में बहुत अच्छा खिलाड़ी कभी नहीं था। लॉन टेनिस उन खेलों में से रहा है जो मुझको शुरू से बहुत अच्छा लगता था और मैं खेलता भी था। उस समय के विश्व टेनिस चैंपियनशिप के प्रमुख खिलाड़ी आंद्रे अगासी, बोरिस बेकर, मार्टिना नवरातिलोवा, जेनिफर कैप्रियाती, स्टेफी ग्राफ और गैब्रिएला सबातीनी का मैं जबरदस्त फैन भी हुआ करता था। यद्यपि वो अक्टूबर का महीना था और विम्बलडन चैंपियनशिप जून आखिर और जुलाई में खेली जाती थी किंतु फिर भी मेरा मन उस स्थान को देखने का था जहां ये सितारे खिलाड़ी खेलते थे। टेनिस के शौकीनों के लिए विम्बलडन का वही महत्व है जो क्रिकेट प्रेमियों के लिए लॉर्ड्स के मैदान का।
जैसा कि हम सभी जानते हैं विम्बलडन विश्व में टेनिस की खेली जा रही 4 प्रमुख चैंपियनशिप खिताबों में से विश्व की सबसे पुरानी प्रतियोगिता है। ये आल इंग्लैंड क्लब, विम्बलडन, लंदन में ईस्वी सन 1877 से खेली जा रही है। ग्रैंड स्लैम कहे जाने वाले अन्य तीन खिताबों की प्रतियोगिताएं यानी कि ऑस्ट्रेलियन ओपन, फ्रेंच ओपन और यू ऐस ओपन इसके बाद शुरू हुईं। यही सब बातें सोचता हुआ पैदल चलते हुए मैं विम्बलडन ग्राउंड पर पहुंच गया। वहां कुछ बच्चे रैकिट लिए घूम रहे थे। कुछ लोग ग्राउंड पर कुछ काम कर रहे थे। सामने शानदार हरी घास का मैदान सेंटर कोर्ट था जिस पर अपने समय के महान टेनिस खिलाड़ी खेलते हैं। मैं काफी देर वहीं खड़ा होकर उस ग्राउंड को बस निहारता रहा और सहसा मुझको लगा कि मैं 1991 के Women’s singles final में स्टेफी ग्राफ और गैब्रिएला सबातीनी को खेलते देख रहा हूं। स्टेफी ग्राफ की सर्विस और उस पर सबातीनी का जबरदस्त शॉट और दर्शकों का जबरदस्त शोर कि तभी विचार श्रृंखला और आगे बढ़ी और मुझको प्रतीत हुआ कि वहां सामने wimbledon Men’s final में बोरिस बेकर और माइकिल स्टिच खेल रहे हैं। हजारों लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच स्टिच ने अपना विजयी शॉट मारा लेकिन तभी एक व्यक्ति ने आकर मुझसे पूछा कि क्या आप भारत से हैं और जैसे मेरी तंद्रा भंग हो गयी। मैं वहां लगभग 1 घंटे वहां रुका लेकिन फिर भी उस स्थान से मेरा मन नहीं भरा। आगे फिर कभी यहां मैच देखने आऊंगा ये सोचते हुए मैं वहां से लौट चला लंदन के लिए।
अगले अंक में किस्सा पेरिस का...
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।