इजिप्ट: घोड़े वाले और मैगदी साहब

Update: 2024-10-21 13:17 GMT

सिंदबाद ट्रैवल्स-26

इस प्रकार स्फिंक्स को देखने के बाद मैं फिर से उन्हीं घोड़े वालों के साथ चल दिया गाड़ी की तरफ। जब मैं गाड़ी के पास पहुंचा तो ये घोड़े वाले मुझसे पैसों के लिए फिर लड़ने लगे और उनका शोर सुनकर मिस्टर मैगदी जो एक दुकान में बैठे थे वो उस दुकान के मालिक आदि के साथ बाहर आ गए। जब उन लोगों को घोड़े वाला मामला मालूम हुआ तो मिस्टर मैगदी ने मुझसे कहा कि गलती आपकी (यानी कि मेरी) ही है और आपको दोनों घोड़े वालों को पैसे देने ही होंगे, उनकी ये बात सुनते ही मैं चौंक गया और जब दुकानदारों ने भी उनके ही सुर में सुर मिलाया तो मुझको लगा कि मैं कहां फंस गया। बात पैसों की नहीं थी बल्कि परिस्थिति की थी, मिस्टर मैगदी जिनके साथ मैं यहां आया था वो खुद घोड़े वालों के पक्ष में थे। मुझको याद आया कि हमारे भारत में भी कई बार अखबारों में विदेशी पर्यटकों को परेशान करने की खबरें होती हैं और कई बार उनके साथ हो जाने वाले हादसों की भी। आगरा में ऐसे बदमाशों को “लपका” कहते हैं। ये पर्यटकों को घेर सा लेते हैं और उसके साथ बस कुछ भी हो सकता है। मुझे लगा कि आज मैं भी मिस्र के “लपकों” के बीच में ही शायद फंस गया हूं। मैं ये भी सोच रहा था कि जब किसी पर्यटक के साथ ऐसा होता होगा तो उसको कितनी तकलीफ होती होगी। वो पर्यटक तो अपने घर से बहुत दूर नितांत अपरिचित जगह में होता है उस स्थान को देखने और घूमने के लिए और वो और उस जैसे लाखों पर्यटक उस स्थान की आर्थिकी में भी अपने पर्यटन से योगदान देते ही हैं लेकिन जब वो किसी खराब अनुभव से गुजरते हैं तो उनका मजा भी खराब होता है और उस स्थान और वहां के लोगों की छवि भी। इसलिए हम लोगों को सदैव पर्यटकों से अच्छा और सही व्यवहार ही करना चाहिए ऐसा मैंने सोचा। घोड़े वालों का शोर जारी था और जिनके साथ मैं आया था वो मेरी बात और समस्या समझे बिना उन्हीं घोड़े वालों के साथ थे लेकिन भारत देश का वासी ये पर्यटक यानी कि मैं भी अब हार मानने वाला नहीं था।

सामने वाले शोरूम में, जिसमें मिस्टर मैगदी बैठे थे और अब उस दुकान के मालिक के साथ ही उन घोड़े वालों के पक्ष में मेरे विरुद्ध खड़े थे, उसमें घुसते हुए मैं बोला, "मिस्टर मैगदी, मैं तो यहां से बहुत सा सामान खरीदना चाहता था किंतु ये लोग मूड ऑफ कर रहे हैं। "मेरे इतना भर कहने ने मानो जादुई असर किया, मिस्टर मैगदी और दुकानदार के चेहरे और आंखें मानो चमक उठे और उन्होंने मुझसे कहा कि, "आप कोई चिंता मत करो, इन मक्कारों को हम देखते हैं" और ये लीजिए बस दो मिनट में बाहर का शोर शांत था, उन्हीं मिस्टर मैगदी ने दोनों मक्कार घोड़े वालों को संतुष्ट कर के भेज दिया था। मैंने भी दुकान में घुस कर कई किस्म के Egyptian handicrafts के सामान निकलवाये और पैक करने को कहा और इसके साथ ही अपनी जेब टटोलने का उपक्रम करते हुए मैंने मिस्टर मैगदी से कहा कि इस सामान लायक पैसे तो अभी मेरे पास हैं नहीं वो तो मैं होटल में रख आया हूं सो चलिए पैसे ले आते हैं। मिस्टर मैगदी खुशी खुशी मेरे साथ होटल की ओर चल दिये और उन लोगों के चंगुल से निकल कर मेरी भी जान में जान आयी। हम लोग होटल से थोड़ी ही दूर थे तभी गाड़ी का एक टायर पंक्चर हो गया, मिस्टर मैगदी की गाड़ी में मैं धक्का तो लगा ही चुका था मुझको लगा कि अब क्या घर से दूर काहिरा में इस EXPORTER को कार का टायर भी बदलना पड़ेगा लेकिन मेरी खुशकिस्मती थी कि कार में स्टेपनी थी जिसको मिस्टर मैगदी के ड्राइवर ने बदला।

होटल पहुंच कर मैं मिस्टर मैगदी को नीचे लॉबी में बैठा कर कमरे में आया और कमरा बंद करके आराम से लेट गया। कुछ देर में मिस्टर मैगदी का फोन आया तो मैंने कहा कि, "अभी मेरी तबियत खराब हो गयी है, उल्टी हो गयी हैं और सर दर्द है इसलिए कल चलेंगे सामान लेने।" इस पर मिस्टर मैगदी ने कुछ जिरह भी की लेकिन फिर अगले दिन सुबह 10 बजे का समय तय करके वो चले गए। मिस्टर मैगदी अपने और गाड़ी के आज के पैसे मुझसे पहले ले ही चुके थे। अब मैं अपने कमरे में लेट कर चैन की सांस ले रहा था।

असलियत ये है कि उस समय तक मैं मिस्टर मैगदी आदि के कारण बहुत परेशान हो चुका था और मुझको इजिप्ट में व्यापार का भी कुछ हिसाब किताब दिख नहीं रहा था इसलिए मैंने मन ही मन ये तय कर लिया था कि अब अपना कार्यक्रम परिवर्तित करके यहां से जल्दी ही आगे के लिए निकल देना उचित होगा। आज मुझको लगता है कि होटल बदल कर कहीं और चला जाना था किंतु उस समय मैं इतना परेशान हो गया था कि अब वहां और रुकने का मन नहीं था। थोड़ी देर में मैं नीचे होटल की लॉबी में गया तो मिस्टर मैगदी जा चुके थे। मैंने होटल वालों से अगली सुबह पूरे दिन के लिए एक टैक्सी मंगाने को बोला और कहा, "भाई देख लेना टैक्सी ठीक हो।" इस पर होटल वाला हंसते हुए बोला, "आप बिलकुल चिंता मत करिए, टैक्सी अच्छी ही होगी।" उस से आगे बातचीत में मालूम हुआ कि आज जिस और जैसी कार में मैं गया था वो टैक्सी नहीं अपितु पर्सनल कार थी, ये बात भी मुझको चौंकाने और दुःखी करने वाली ही थी।

अगले अंक में विश्व प्रसिद्ध सुएज नहर और सुएज शहर की यात्रा...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।

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