यात्रा संस्मरण में दुबई के अनुभव: जब लगा था कि मानो सारी दुनिया का बाज़ार सिमट कर आ गया हो

Update: 2024-09-17 09:23 GMT

सिंदबाद ट्रेवल्स-2

जहाज में मेरे बगल की सीट पर एक अरबी व्यक्ति बैठे थे। उनसे परिचय हुआ और मालूम पड़ा कि वो आबूधाबी की सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी थे। दोहा पहुंचते-पहुंचते उनसे काफी घनिष्ठता हो गयी और उन्होंने मुझको आबूधाबी आने पर मिलने को कहा।

दोहा के हवाई अड्डे पर पहुंच कर मुझको बड़ा अच्छा लगा क्योंकि उस जमाने में हमारी दिल्ली का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा इतना शानदार नहीं था जैसा कि आज है। थोड़ी देर में ही मैं दुबई के जहाज में था और फिर पहुंच गया दुबई।

दुबई में भारत से समय 1 घंटा 30 मिनट पीछे है। मुद्रा दिरहम जो इस समय लगभग 22 रुपये के बराबर 1 दिरहम है और उस समय लगभग 11 रुपये का एक दिरहम था। दुबई हवाई अड्डे पर उतर कर तो मैं चमत्कृत था।ये लगा कि किसी दूसरी दुनिया में आ गए हों। दुबई की प्रसिद्ध ड्यूटी फ्री शॉप जिसमें लग रहा था कि मानो सारी दुनिया का बाज़ार सिमट कर आ गया हो। ना जाने कितने किस्म की चीज़ें और ना जाने कितने सारे विभिन्न राष्ट्रीयता के लोग वहाँ खरीदारी कर रहे थे।मालूम होता था कि सारी दुनिया का representation वहाँ हो रखा था।

एयरपोर्ट पर वीसा के विषय में पूछने पर मालूम पड़ा कि एक तरफ सारे वीसा रखे होते हैं तो फिर उनमें से अपना वीसा खोज कर इ्मीग्रेशन पर गया और फिर बाहर निकला। बाहर निकलते ही शरद चतुर्वेदी जी ने,जिन्होंने मेरा वीसा करवाया था और जिनके साथ मुझको रुकना था,उन्होंने मुझको तुरंत पहचान लिया क्योंकि वो इस बीच हिंदुस्तान फोन करके पता कर चुके थे कि मैंने क्या कपड़े पहने हुए थे।

उस जमाने में मोबाइल और वीडियो कॉल्स तो होते नहीं थे तो ये ही रास्ता सबसे अच्छा था। शरद भाईसाहब बहुत ही गर्मजोशी से मुझसे मिले और फिर उनकी कार में बैठ कर हम लोग उनके घर को चल पड़े।उनके घर पर पहुँच कर शरद भाईसाहब और भाभी ने बहुत खातिर की और न जाने कितने प्रकार की चीजें खाने में थीं जिनको शरद भाईसाहब के इसरार के कारण खाना ही था।

थोड़ी ही देर में खाना आदि खाकर मैं तैयार था अपने लगभग 60-65 किलो सैम्पिलों के साथ व्यापारियों की खोज में निकलने को। शरद भाईसाहब ने मुझको बाज़ार का पता आदि बता दिया और मैं टैक्सी पकड़ कर चल पड़ा।पहले मैं बाज़ार में एक बहुत बड़े शो रूम में पहुँचा जिसमें भाँति भाँति के लैम्प्स और शैंडेलियर्स आदि थे।बहुत ही अच्छा शो रूम था। उसमें एक अरबी व्यक्ति थे उनसे मिला।जैसे ही उनको मालूम पड़ा कि मैं भारत से ये सामान बेचने आया हूँ तो उन महाशय ने मुझसे बात करने से भी मना कर दिया।उन्होंने कहा भारत के लोग सामान की क्वालिटी अच्छी नहीं देते हैं और उनको मुझसे काम नहीं करना है।मुझको बहुत ही अपमानजनक अनुभूति हुयी और निराशा भी लेकिन वो समय ऐसा ही था भारत की व्यापार के क्षेत्र में,खास तौर से इस प्रकार की वस्तुओं के लिए,इमेज उस समय बहुत अच्छी नहीं थी।मैं खराब मन और बोझिल कदमों से वापिस टैक्सी में बैठ आगे चला।मैंने भी ठानी थी कि अब तो मैं हिम्मत नहीं हारूँगा और एक्सपोर्टर बनके ही मानूंगा।खैर फिर दो तीन जगह और निराशा मिली और उसके बाद मुझको एक और शो रूम दिखा जिसका नाम था जैमिनी ट्रेडिंग। मैं उसमें घुसा,उसके मालिक एक भारतीय श्याम कपूर साहब थे और उनकी बातें भी शुरू में वैसी ही थीं जैसी मुझसे पहले शोरूमों के अरबी मालिकान कर चुके थे लेकिन फिर उन्होंने मुझको बैठाया और चाय ठंडा मंगवाया। बातचीत में उन्होंने कहा कि भाई बात ये है कि अपने यहाँ से विदेश के लोग काम करने में डरते हैं। हम लोग एक तो quality conscious नहीं हैं,दूसरे बहुत से लोगों का तरीका ये है कि माल दिखाते कुछ हैं और भेजते कुछ और हैं इस से भी पूरे देश का नाम खराब होता है। मैंने उनसे कहा कि मैं पूरी ईमानदारी से काम करूंगा क्योंकि मुझको तो इस व्यापार को करना ही है। कपूर साहब ने मेरा झाड़ फानूस वाला एलबम देखा और हँसते हुए बोले भाई शैंडलियर की फोटो तो सीधी कर लो तो मैं बहुत झेंप गया क्योंकि फोटो वाकई उल्टी लगी थी।वो बोले यदि तुमको इसका ऊपर क्या हिस्सा रहेगा और नीचे कौन सा वाला यही नहीं मालूम तो इसका काम कैसे करोगे।मैंने उनको धन्यवाद भी दिया और क्षमा याचना भी की तो कपूर साहब हँस पड़े और बोले निकालो अपनी order book.मुझको तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं अपने सपने को हकीकत में बदलते देख रहा था।थोड़ी देर में ही मेरे हाथ में मेरा पहला ऑर्डर था 800 डॉलर का और मेरी खुशी का पारावार नहीं था।मुझको लगा कि भगवान ने मेरी सुन ली।वो मेरे जीवन के सबसे खुशी के पलों में से एक पल था।

इन संस्मरणों के अगले अंक में चर्चा है दुबई के अल-गुरेर सेंटर, चोइथराम स्टोर की और साथ ही चर्चा होगी। दुबई की हरियाली रखने हेतु वहां की सिंचाई के तरीके की।

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी...

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