जनसंख्या समाधान फाउन्डेशन ने की जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू करने की मांग

Update: 2024-07-11 07:10 GMT

गाजियाबाद। जनसंख्या समाधान फाउन्डेशन ने आवश्यक चर्चा कराकर जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की प्रक्रिया जल्द से जल्द प्रारम्भ करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकीय असंतुलन पर कुशल एवं प्रभावी नियंत्रण भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व और समूची मानवता के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

जनसंख्या समाधान फाउन्डेशन के राष्ट्रीय संयोजक ममता सहगल, गाजियाबाद महानगर अध्यक्ष श्याम सुंदर त्यागी ने गुरुवार को एक विज्ञप्ति जारी कर कहा कि सरकार जनसंख्या के उचित समाधान के लिए ऐसा कानून बनाए जिसमें भ्रम की स्थिति ना रहे और जाति, धर्म, क्षेत्र व भाषायी बंधनों से ऊपर उठकर, राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए यह कानून देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो। इस कानून के सभी दंडात्मक प्रावधान कानून अधिसूचित होने की तिथि के एक वर्ष के पश्चात कानून तोड़कर दूसरी जीवित संतान से अधिक बच्चे की उत्पत्ति करने वाले जैविक माता-पिता पर लागू हों। कानून बनने के पूर्व में उत्पन्न दो से अधिक संतानों के मामले में किसी भी नागरिक पर किसी भी रूप में यह कानून लागू नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि जनसंख्या समाधान विषयक कानून अधिसूचित होने की तिथि के एक वर्ष के पश्चात कानून तोड़कर दूसरी से अधिक संतान उत्पन्न करने वाले दंपत्ति को सरकार द्वारा मिलने वाली सभी प्रकार की सहायता एवं अनुदान आदि समाप्त किए जाने का प्रावधान कानून में किया जाए। वर्तमान में राजकीय सेवा में नियोजित, दो या दो से अधिक बच्चों वाले माता-पिता सरकार द्वारा कानून अधिसूचित होने की तिथि के एक वर्ष के पश्चात कानून तोड़कर अगली संतान की उत्पत्ति करने पर अपने पद पर नहीं बने रह सके तथा भविष्य में नियोजित किए जाने की पात्रता भी समाप्त हो जाए, ऐसा प्रावधान कानून में किया जाए। कानून अधिसूचित होने की तिथि के एक वर्ष के पश्चात कानून तोड़कर दूसरी से अधिक संतान उत्पन्न करने वाले जैविक माता-पिता व संतान को जीवन पर्यन्त मताधिकार एवं किसी भी प्रकार की चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित किया जाए।

उन्होंने कहा कि कानून का एक बार उल्लंघन करने के बाद दोबारा उल्लंघन करने अर्थात चौथी संतान की उत्पत्ति की स्थिति में पिछले प्रावधानों के साथ-साथ ऐसे दंपत्ति (पति-पत्नी दोनों) की अनिवार्य नसबंदी करके उनको 10 वर्ष की जेल की सजा का प्रावधान किया जाए ताकि चौथी संतान के बारे में कोई नागरिक स्वप्न में भी ना सोच सके। दंपत्ति को प्रथम बार में जुड़वां संतान उत्पन्न होने की स्थिति में परिवार पूर्ण माना जाए और अगली संतान की उत्पत्ति कानून का उल्लंघन मानी जाए। दूसरे बच्चे के समय जुड़वां संतान होना एक अपवाद मानकर ऐसी स्थिति में कानून प्रभावी ना हो। जाति, धर्म व संप्रदायों से ऊपर उठकर यह प्रावधान स्पष्ट रूप से रहे कि पहली शादी से दो जीवित संतानों के साथ तलाक होने की स्थिति में स्त्री या पुरूष में से कोई भी दूसरा शादी के बाद संतानोत्पत्ति के अधिकारी नहीं रहेंगे, भले ही दूसरे जीवनसाथी को पहले अथवा पहली शादी से कोई संतान ना हो। अगर एक बच्चा हो तो केवल एक बच्चे की उत्पत्ति का अधिकार रहे।

उन्होंने कहा कि बहुविवाह (एक से अधिक पत्नी) एवं बहुपतित्व विवाहों के मामले में कहीं कोई भ्रम की स्थिति नहीं रहनी चाहिए। अगर कानूनन भी कोई पुरुष एक से अधिक पत्नी रखता है और उन्हें तलाक देकर अदल-बदल करते हुए अपने जीवनकाल में अनेक शादियां करता है तो उसे सभी पत्नियों के माध्यम से अलग अलग दो-दो बच्चे पैदा करने की छूट नहीं दी जा सकती। किसी एक अथवा दो पत्नियों से कुल दो बच्चों की उत्पत्ति पर (पत्नियों अथवा पतियों की संख्या जो भी हो) परिवार पूर्ण माना जाए। कुल मिलाकर पत्नियों अथवा पतियों की संख्या कितनी भी क्यों ना हो, उसे एक परिवार मानते हुए बच्चों की कुल संख्या 2 से अधिक होना कानून का उल्लंघन माना जाए। पूर्वोत्तर भारत के राज्यों- असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, मेघालय एवं त्रिपुरा तथा बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा एवं छत्तीसगढ सहित सभी आदिवासी राज्यों की मूल धार्मिक जनजातियों की जनसंख्या अवैध घुसपैठ के कारण अनुपातिक रूप से घटते जाने के कारण कुछ निश्चित समय के लिए वहां की मूल धार्मिक जनजातियों को जनसंख्या नियंत्रण कानून की परिधि से बाहर रखा जाए। अवैध घुसपैठ के पश्चात स्थानीय लड़कियों से शादी करके वहीं बस जाने वाले किसी भी बाहरी व्यक्ति / घुसपैठियों को किसी प्रकार की छूट नहीं मिलनी चाहिए। उपरोक्त प्रावधानों के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक होने पर संविधान में उपयुक्त संशोधन किया जाए।

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