मनोज तिवारी को क्या हरा पाएंगे कांग्रेस के प्यारे कन्हैया, क्या कहता है उत्तर पूर्वी दिल्ली का सियासी गणित?

Update: 2024-04-15 13:34 GMT

नई दिल्ली। कांग्रेस ने उत्तर पूर्वी दिल्ली से प्यारे कन्हैया को उतार कर मुकाबला दिलचस्प बना दिया। कन्हैया कुमार दिल्ली और बिहार में खांसा दबदबा रखते हैं लेकिन फिर भी मनोज तिवारी को शिकस्त देना उनके लिए लोहे के चने चबाने जैसे हो सकते हैं।

क्या कहते हैं समीकरण

दिल्ली में कुल सात लोकसभा सीटें हैं। जिसमें एक सीट उत्तर पूर्वी दिल्ली की है। इस क्षेत्र में करावल नगर, मुस्तफाबाद, सीलमपुर, घोंडा, रोहतास नगर, बाबरपुर, करावल नगर, तिमारपुर समेत 10 विधानसभा हैं और ज्यादातर सीट पर आप पार्टी का दबदबा है। हालांकि, यहां की लोकसभा सीट से भाजपा ने लगातार दो बार अपनी जीत दर्ज की है। अब यहां से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की वजह से चर्चा में आए कन्हैया कुमार कांग्रेस से उम्मीदवार हैं। यहां का सियासी गणित कन्हैया के लिए फायदेमंद नहीं है क्योंकि मनोज तिवारी ने दो बार जीत दर्ज कर अपने पैर जमा लिए हैं, जो मनोज तिवारी को वोट डालते आए हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बदला गणित

दरअसल, इस सीट से 2009 में जयप्रकाश अग्रवाल ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2014 में मोदी लहर में कांग्रेस को इस क्षेत्र से भी हार का सामना करना पड़ा। अब भाजपा का 400 पार का नारा है, जो कहीं ना कहीं कन्हैया के लिए चुनौती साबित होगा। कांग्रेस उम्मीदवार कन्हैया 2019 में बेगूसराय से चुनाव लड़े थे लेकिन वह भाजपा के गिरिराज सिंह से हार गए थे। नतीजों से पहले कायस लगाए जा रहे थे कि कन्हैया अपने गृह क्षेत्र से भारी मतों से जीत दर्ज करेंगे। हालांकि, ऐसा नहीं हो पाया।

देश विरोधी नारे लगाने का लगा था आरोप

2016 में कन्हैया कुमार पर जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने का आरोप लगा था। इस मामले में उन्हें जेल में भी रहना पड़ा, लेकिन उन पर आरोप साबित नहीं हुआ और वह न्यायिक हिरासत से बाहर आ गए थे। जेल से आने के बाद कन्हैया ने कम्युनिस्ट पार्टी का दामन था और 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ा। इसके कुछ साल उन्होंने कांग्रेस पार्टी में जाने का मन मनाया। हालांकि, वह अभी भी खुद को कम्युनिस्ट विचारधारा से अलग करके नहीं देखते हैं। जिसका उन्हें लोकसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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