MP Election: क्या कांग्रेस के इस दांव से फंस जाएगी भाजपा? इस सियासी चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए ये 60 सीटें अहम
मध्यप्रदेश की 230 सीटों में 136 सीटों पर भाजपा ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। भाजपा ने जो सीटें घोषित की हैं, उसमें 31 फ़ीसदी सीटें सवर्ण के कोटे में गई हैं, जिसमें 48 सीटें शामिल हैं, जबकि 40 सीटें ओबीसी के हिस्से में गई हैं, जो कि अब तक के दिए गए टिकट में 29 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है। अब तक के दिए गए टिकटों में 22 फ़ीसदी टिकट यानी की 30 सीटें आदिवासी समुदाय के हिस्से में आई हैं। जबकि 13 फीसदी सीटें यानी 18 सीटें दलितों के हिस्से में आई हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि अब तक जितनी भी सीटें भाजपा ने घोषित की हैं, वह सोशल इंजीनियरिंग के लिहाज से तो ठीक हैं। लेकिन जिस आधार पर कांग्रेस सियासत को आगे बढ़ा रही है, उस लिहाज से यह भाजपा के लिए किसी न किसी स्तर पर ये विपरीत और सियासी रूप से असहज करने वाली परिस्थितियां भी पैदा कर रही हैं।
राजनीतिक जानकार निर्मलकांत शर्मा कहते हैं कि मध्यप्रदेश में अब सिर्फ 94 सीटों पर ही टिकट दिए जाने बाकी हैं। इन 94 सीटों में 34 सीटें तो सुरक्षित श्रेणी की हैं। फिर बचती हैं 60 सीटें। अब इन 60 सीटों में ही भाजपा को अपने सियासी समीकरण और जातीय जनगणना के आधार पर घेरे जाने वाले सवालों का जवाब देते हुए टिकटों का बंटवारा करने का दबाव है। शर्मा कहते हैं कि वैसे तो भाजपा जिस तरीके से टिकटों का बंटवारा कर रही है, वह अपने परंपरागत वोट बैंक को साधते हुए ही कर रही है। उनका कहना है कि भाजपा का ठाकुर और ब्राह्मण वोट बैंक शुरुआत से ही रहा है। भले ही वोट प्रतिशत में सवर्ण का अन्य जातीय समीकरणों के आधार पर मध्यप्रदेश में कम हो। लेकिन जो टिकट बंटवारा हुआ है, उसमें 48 सीटें ठाकुर, ब्राह्मण और जैन को दी गई हैं।
सियासी जानकारों के मुताबिक तकरीबन 15 फीसदी आबादी मध्यप्रदेश में सवर्ण की हैं। जबकि अब तक दिए गए टिकटों के हिसाब से यह 31 प्रतिशत के करीब पहुंचता है। मध्यप्रदेश में ओबीसी की आबादी करीब 49 फ़ीसदी के करीब है। भाजपा की ओर से अब तक दिए गए टिकटों के लिहाज से 29 फ़ीसदी ही रहा है। राजनीतिक विश्लेषक दीपांकर चौधरी कहते हैं कि यह जो 20 फ़ीसदी का गैप अभी ओबीसी के सीटों का है, इसलिए अब जो 60 सीटें मध्यप्रदेश में दी जानी हैं उनका जातीयता के आधार कैसे वितरण होगा यह देखा जाना जरूरी होगा। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग की पिच पर तो टिकटों का बंटवारा अपनी सियासी रणनीति के हिसाब से ही किया है। लेकिन जिन मुद्दों पर कांग्रेस राजनीतिक पिच तैयार कर रही है उस लिहाज से भाजपा फिलहाल टिकट बंटवारे में बैक फुट पर नजर आ रही है। क्योंकि मध्यप्रदेश में अभी भी 49 फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले ओबीसी समुदाय को महज 29 फ़ीसदी की टिकट मिले हैं। जबकि 15 फ़ीसदी हिस्सेदारी रखने वाले सवालों को 31 फ़ीसदी टिकट मिले हैं।
वहीं कांग्रेस भाजपा को घेरने की पूरी तैयारी कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस लगातार जातीय जनगणना के बाद से इस मामले को न सिर्फ आगे बढ़ा रही है, बल्कि इन्हीं आधार पर टिकटों के बंटवारे और अपनी सियासत को धार देने की तैयारी में लगी है। राजनीतिक जानकार दीपांकर चौधरी कहते हैं कि कांग्रेस ने जिस तरीके से जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया है, उससे मध्यप्रदेश में बची हुई 60 सीटों पर जातीयता के प्रतिशत के मुताबिक भाजपा पर टिकट देने का दबाव तो बना है। लेकिन यही बात कांग्रेस के लिए भी लागू होनी तय है। वह कहते हैं अगर कांग्रेस अपने टिकटों का बंटवारा अपनी तैयार की गई सियासी रणनीति के मुताबिक करती है, तो निश्चित तौर पर मध्यप्रदेश में उसके लिए सियासी पिच आसान हो सकती है। वह कहते हैं कि अगले कुछ दिनों में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के टिकटों का बंटवारा हो जाएगा और बची हुई सीटों पर भी भाजपा अपने प्रत्याशी घोषित कर देगी। उसके बाद मध्यप्रदेश के सियासी समीकरणों में जातीयता के प्रतिशत के लिहाज से दिए गए टिकटों का आकलन और स्पष्ट हो सकेगा।