अतुल चतुर्वेदी: ब्रज और आस-पास के क्षेत्र का खान-पान एवं व्यंजन.

Update: 2023-06-10 12:44 GMT

आजकल यूट्यूब,टी वी चैनल्स,मैगज़ीन्स, समाचार पत्र सारी जगहों पर रेसिपीज और खाने पर काफी चर्चा और शो देखने-पढ़ने को मिलते हैं।इनके माध्यम से हमको विभिन्न देशों और खुद अपने देश के विभिन्न इलाकों के खाने के इतिहास,खाने की संस्कृति और खाने की चीज़ों के विषय में जानकारी मिलती है जो काफी अच्छी और रोचक भी होती है।अगर हम केवल अपने देश की बात करें तो कह सकते हैं कि जितना हमारे देश में विभिन्न इलाकों के मौसम, जलवायु और क्षेत्रीय संस्कृतियों में फर्क है उतना ही हर क्षेत्र के खाने में और जैसे इतनी विभिन्नताओं के बाद भी हम सब एक हैं यानी कि भारतीय वैसे ही इतनी विभिन्नताओं के बाद भी हमारे सभी खानों का मूल स्वाद और भाव एक ही है यानी कि हिंदुस्तानी-विशुद्ध भारतीय!

आज अपने इस लेख के द्वारा मैं चर्चा करना चाहूंगा एक क्षेत्र विशेष यानी "ब्रज क्षेत्र" और उसके आगे भी आस-पास के परंपरागत खान-पान की।इनमें से अधिकतर व्यंजन इस इलाके में अधिकांश लोगों के खान-पान का हिस्सा सदियों से रहे हैं और कुछ चतुर्वेदी समुदाय के विशेष रूप से।

जब मीडिया या सोशल मीडिया में हम भारतीय खान-पान की चर्चा देखते-सुनते-पढ़ते हैं तो हमको दक्षिण भारतीय,उत्तर-पूर्व,राजस्थानी,गुजराती, मुगलई,बंगाली,काश्मीरी और न जाने कितने किस्म के खानों की चर्चा सुनने को मिलती है किंतु जिस इलाके का खान-पान बिल्कुल सादा होते हुए भी अद्भुत है,बिल्कुल सात्विक होते हुए भी तमाम राजसी भोजनों को मात देने वाला है,जहाँ से ही 56 भोग की शुरुआत हुयी उस इलाके यानी "ब्रज-क्षेत्र" के खाने का जिक्र कुछ अपवादों को छोड़ कर अधिकतर चर्चाओं में दिखता-मिलता ही नहीं है।

सच ये है कि खाना तो हर जगह का अच्छा ही है किंतु सुबह जलेबी-बेड़ई/कचौड़ी साथ में शानदार रायता और आलू की सब्जी का नाश्ता हो या दोपहर में गेहूं के अलावा बेझर/बेसन/की रोटी साथ में उड़द की दाल हो या बाजरा की रोटी और गुड़ सर्दी के मौसम में।शाम की चाट-पकौड़ी हो,मूंग की दाल के मंगोड़े हों या चाय के संग भीमसेन या पंछी की दालमौठ। रात के भोजन की बात हो तो परांठे और सब्जी इन सभी का स्वाद अलग ही होता है और साथ में विविध किस्म के मिष्ठान और फिर बाद में भरपूर मेवा युक्त औटाया हुआ दूध वो भी कुल्हड़ में।पर इसमें से तो अधिकांश चीजें तो हम जानते ही हैं इसलिए अब बात कुछ उन खान-पान की चीजों की जो खाते तो हम रोज़ रहे हैं किंतु धीरे-धीरे उनका इलाका सिमटता जा रहा है और आजकल के ग्लैमर भरे चर्चा-प्लैटफॉर्म्स पर उनकी चर्चा लगभग न के बराबर होती है।

सुबह बासी परांठे और मट्ठे के नाश्ते के बाद हमारे इलाके में दोपहर के भोजन में दाल-रोटी आदि के अलावा खीर,मीठा भात,धोई,भात, झोर,मीठी मूंग,पालक का रसे वाला बेसनयुक्त साग,आलू-बरी, भट (बैंगन) बरी,मीठी सिकिंद आदि का प्रचलन रहा है और ये व्यंजन कई बार किसी विशेष आयोजन का अंग भी होते हैं जैसे श्री माथुर चतुर्वेदी समुदाय के लोगों में कतरों के झोर की जन्मदिन-वर्षगांठ पर बनाने की परंपरा रही है और मूंग-भात-झोर शादी में घुड़चढ़ी के दिन।

यहाँ जो झोर है यह है तो बेसन की ग्रेवी का ही किंतु इसके आयुर्वेदिक औषधियों के गुण युक्त मसाले,खास तौर पर गरम मसाले इसको अन्य इलाकों की कढ़ी से भिन्न बनाते हैं।झोर में बेसन के कतरों का झोर, मटर-बरी का झोर,आलू-बरी का झोर,पकौड़ी का झोर आदि।इसके अतिरिक्त विशेष अवसरों पर या मौका लगते ही पूरी-कचौड़ी,सब्जी, रायता, सौंठ आदि।रायता मौसम के अनुसार बून्दी, बथुआ,पुदीना,आलू,टमाटर,बैंगन या फलों का मीठा रायता भी हो सकता है।

धोई धुली हुयी पीली मूंग की दाल की सूखी (थोड़ी सेमी सॉलिड किस्म की) नमकीन चीज है जबकि मीठी मूंग छिलके सहित गुड़ से मीठी की गई मूंग की दाल का व्यंजन है।

जब खीर की बात करें तो मथुरा में बहुत सी जगहों पर गाढ़ी या सेमी सॉलिड किस्म की फीकी चावल की खीर बनती है और पत्तल में परोस कर उसमें बूरा मिला कर उसको स्वादानुसार मीठा करके खाया जाता था।अच्छी खीर वो है जो सामने दीवाल पर फेंक कर मारें तो चिपक जानी चाहिए।मथुरा की इस खीर के अलावा घुटे चावल की खूब औटायी हुयी किंतु सेमी-लीक्विड किस्म की खीर अन्य स्थानों पर प्रचलित है ही जिसमें से सौंधी महक आती हो।चावल की खीर के अतिरिक्त सिवइयों की खीर,गणेश चौथ के व्रत के दिन शकरकंदी की खीर,सिंघाड़े के आटे की लप्सी,कूटू की पकौड़ी और पूड़ी, अन्य व्रतों में मखाने-छुआरे की खीर का भी प्रचलन रहा है।सिकिंद दही को घोल कर पिसी हुयी इलायची के फ्लेवर का एक रायता नुमा पेय है जिसमें चावल डाल कर भी खाते हैं।इसके अलावा शरद पूर्णिमा की रात को बनने वाली बासौन्धी।

वृंदावन के पवित्र-पावन स्थल तटीय स्थान पर श्री राधा-अष्टमी को बनने वाली सूखी अरवी की सब्जी का दिव्य स्वाद जिसने चखा है वही जानता है।

मथुरा की गरम मसाले युक्त तेज मसालेदार स्वाद की आयुर्वेदिक गुणों से युक्त आलू की चटपटी रसे की सब्जी और सर्राटे का रायता जिन्होंने खाया है वो ही उसका स्वाद जानते हैं।ऐसे ही डुबकी वाले आलू की सब्जी बहुत प्रसिद्द है।

सर्दी के मौसम में इस इलाके में मलीदा यानी कि बाजरे की रोटी और गुड़ को घी में मीज कर-पका कर बनाया जाता है।

इसके अतिरिक्त अन्नकूट के दिन और नव-दुर्गा के दिनों में सभी सब्जियों-फलों के गड्ड की सब्जी और पूरी के प्रसाद का प्रचलन है। अन्नकूट के दिन गड्ड का साग,सूखे तले जिमीकन्द की सब्जी,लौंग की छौंक की रतालू की मट्ठे वाली रसेदार सब्जी,उबले सिंघाड़े आदि व्यंजनों की तो बात ही अलग है।

जहाँ तक शाम के खाने का सवाल है तो अभी कुछ दशक पहले तक इन इलाकों में शाम को कटौरिया जिसको आप बोलचाल की भाषा मे परांठे कहते हैं और साथ में मट्ठे/दही के आलू,अरवी/घुइयां,रतालू,कच्चे केले,कच्चे पपीते के रसे और साथ में सूखी हरी सब्जी के खाने का प्रचलन रहा है।उल्लेखनीय बात यह है कि ये परांठे तले हुए पंजाबी परांठे न होकर तवे पर घी में सिके हुए परतों वाले परांठे होते हैं।यहाँ एक और उल्लेखनीय बात ये है कि इस इलाके का ये सारा भोजन परंपरागत तरीके से पूर्णतः शाकाहारी और प्याज-लहसुन रहित होता है।

गर्मी में आम का पना, नींबू-मिर्च की चौर्च, मूली का हत्था आदि भी हैं गर्मी के ताजे पड़े अचारों के अतिरिक्त।

जहाँ तक मिठाइयों की बात है तो सादी खड़पुरी और गिन्दोरा तो अब लुप्तप्राय हैं लेकिन खोए के पेड़े जिनकी मथुरा में ही एक से अधिक किस्म हैं,जो आपको बृजवासी की दुकान से लेकर मथुरा-वृंदावन-गोवर्धन में हर जगह मिल जाएंगे;एक ओर भुने खोए के पेड़े तो दूसरी ओर बूरे में लिपटे सूखे स्वादिष्ट पेड़े।मथुरा से निकलें तो फिर फिरोजाबाद के रतन लाल या प्यारे लाल के पेड़े, इटावा के कुंज बिहारी के पेड़े, बाह की खोए की गुझिया,कानपुर का सफेद मुंडा पेड़ा और यही पेड़ा मलवां जाकर कच्चे खोए का और इलाहाबाद के फाफामऊ में लाल भुने खोए का पेड़ा हो जाता है।

पेड़े के अतिरिक्त खुरचन,रबड़ी, आगरा का पेठा, हाथरस,मैनपुरी और इटावा की बलदेव (अब अलका स्वीट्स),फिरोजाबाद की जलेसर वाले,प्यारेलाल,हाथरस वाले और गोपाल स्वीट हाउस की सोन पपड़ी,फिरोजाबाद का सोन-हलुवा (दिल्ली का सोहन हलुवा नहीं बल्कि उससे भिन्न), इटावा की पतंगा लाल की हेशमी, सादाबाद और हाथरस की बालूशाही, फिरोजाबाद-इटावा के दनदाने, कपूरकन्द, मक्खन के समोसे, मक्खन की पान की गिलौरी, इमरती, मलाई पूड़ी, सिंघाड़े के सेव, कई किस्म के लड्डू, अलग-अलग किस्म की गजक जिसमें फिरोजाबाद की जैन की चमकनी गजक बहुत अनोखी और प्रसिद्ध है।

वैसे है तो बंगाली मिठाई किंतु वृंदावन के गाय के दूध के रसगुल्ले और फिरोजाबाद का सूखा खीरमोहन, राया के आसपास के रसगुल्ले और बंगाली मिठाइयों के वैरिएंट्स और न जाने कितनी मिठाईयां हैं जो इस इलाके में आज भी बहुत प्रचलित हैं और उनकी क्वालिटी भी अच्छी है।शुद्ध देसी मिठाई में बलदेव की माखन मिश्री के क्या कहने हैं।सर्दी के मौसम में घरों में बनने वाली सौंठ वाली घीयुक्त बर्फी,मकर संक्रांति पर बनने वाले लाई, चने,ज्वार के लड्डू,निशास्ता के लड्डू, तिल के गुड़ वाले तिलवा,गुड़ और खोए के तिलकुटा लड्डू,मूंग के लड्डू आदि।

चूँकि यह वो इलाका है जो भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ाए जाने वाले 56 भोग से सीधे जुड़ा है अतएव यहाँ के व्यंजनों को एक लेख में समेटना सम्भव ही नहीं है किंतु मेरा इस विषय में लिखने का आशय मात्र इतना है कि हम जिन व्यंजनों के बारे में देखते-पढ़ते-सुनते हैं उनके अलावा भी खाने की दुनिया में और भी बहुत सी चीजें हैं और वो भी बहुत स्वादिष्ट हैं बस जरूरत उनको भी सही प्लैटफॉर्म्स पर स्थान मिलने की है।आज जब आप दुनिया के किसी भी कोने में जाएं तो आपको बहुत से स्थानों पर मनचाहा खाना मिल सकता है और अब तो स्विगी,जोमैटो जैसे अनेकों ऐप्स-डिलीवरी के माध्यम से घर बैठे ही तो हमको सोचना होगा कि हमारे इस ब्रज इलाके के व्यंजन जो स्वादिष्ट भी हैं,आयुर्वेदिक दृष्टि से कई व्यंजन लाभदायक भी हैं,परंपराओं से जुड़े हुए हैं,शाकाहारी हैं और सात्विक भी, वो किसी भी हालत में समय के साथ लुप्त न हों अपितु सारे विश्व में इनकी भी धूम मचे।

अतुल चतुर्वेदी

उद्योगपति, निर्यातक, इतिहासकार, लेखक, ब्लॉगर, समाजसेवी

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