गठबंधन के लिए सीट शेयरिंग मोदी से भी बड़ी चुनौती क्यों है?
INDIA गुट के भीतर कई नेता हैं जिनके बीच तिकरम बाज़ी खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं है। लेकिन किसी सीट पर यदि INDIA गठबंधन की दो पार्टि की जीत की संभावना एक जैसी है, तो उस सीट का बंटवारा कैसे होगा? खासतौर पर ऐसे समय पर जब तमाम विपक्षी दल सरकार बनाने को लेकर एकसाथ मंच पर है। 3 बैठकों में संयोजक भी तय नहीं करने वाले नेता कैसे सुलझाएंगे अपनी पहाड़ जैसी समस्याएं?आखिर इसकी चिंता क्यों हो रही है इससे समझते है दरअसल इंडिया गठबंधन की मुंबई में हो रही तीसरी बैठक का दूसरा दिन समाजवादी पार्टी के एमपी और देश के मशहूर वकील कपिल सिब्बल दिख जाते हैं. कांग्रेसियों को इस बात से नाराजगी हो जाती है कि बिन बुलाए मेहमान क्यों आ गए.ये घटना इंडिया गठबंधन के भविष्य को लेकर चिंता करने के लिए काफी
दरअसल कपिल सिब्बल कभी कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं .आज भी उन्हें एक कांग्रेसी के तौर पर ही पूरा देश पहचानता है. सिब्बल ने कभी कांग्रेस में रहते हुए असंतुष्टों का ग्रुप 23 जॉइन कर लिया था.यही उनके लिए काल बन गया. जिस कारण पार्टी में उन्हें भाव नहीं मिला और वे राज्यसभा में जाने के लिए समाजवादी पार्टी ज्वाइन ली . यही कारण था कांग्रेस के लिए वो इंडिया गठबंधन के मंच पर अछूत बन गए थे. जब कि यह सभी जानते हैं कि कपिल सिब्बल वो शख्स हैं जो अंतर्आत्मा से कांग्रेसी हैं. कपिल सिब्बल ने कभी खुले मंच पर कांग्रेस के विरोध में नहीं बोला . इसके साथ देश भर बीजेपी के सबसे बड़े विरोधियों में एक है. कहने का मतलब है कि जब कांग्रेसियों को कपिल सिब्बल से इतनी दिक्कत हो सकती है तो अलग विचार वाले दलों के साथ वो कैसे निभाएंगे.जबकि यह तय है कि कांग्रेस ही इंडिया की धुरी बनने वाली है,इसलिए उसे बड़ा दिल दिखाना होगा.इंडिया गठबंधन के आगे सबसे बड़ी समस्या बीजेपी के कैंडिडेट के आगे वन टू वन कैंडिडेट खड़ी करने में आने वाली है.जिसके लिए अभी गठबंधन की ओर से कोई इशारा नहीं किया गया है.
अटकलें हैं कि 2019 में जो पार्टी जो सीटें जीती थी, वो सीटें उसे दी ही जाएं. साथ ही जिन सीटों पर जिस पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे, वो सीटें भी उसी पार्टी को दी जाएं.इस तरह रनरअप फॉर्मूले से कांग्रेस पार्टी को 261 सीटें देनी मजबूरी होंगी. जबकि ममता बनर्जी कहती रहीं हैं कि कांग्रेस 200 सीटों पर लड़े, जाहिर है कि ममता बनर्जी को ये पसंद नहीं आएगा.दूसरी ओर इस फार्मूले को अप्लाई करने पर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को केवल एक सीट मिल पाएगी और वाम दलों को तो वह भी नहीं. आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है पर उसे केवल तीन ही सीट मिल पाएंगी.इंडिया गठबंधन के अभिन्न- भिन्न विचारों वाली पार्टियों के बीच गंभीर मुद्दों पर आम सहमति कैसे बनेगी? यूसीसी और महिला आरक्षण और मंदिर के मुद्दे पर आपस में सर फुटोव्वल की नौवत आने की हमेशा आशंका बनी रहेगी. दरअसल यूसीसी पर आम आदमी पार्टी का हमेशा से सपोर्ट रहा है. इसी तरह शिवसेना का मंदिर आंदोलन से गहरा नाता रहा है. बाबरी मस्जिद गिराने का श्रेय शिवसेना लेती रही है.महिला आरक्षण का खुलकर तो नहीं पर अंदर ही अंदर विरोध करने वाले दल भी गठबंधन में हैं.आने वाले दिनों में बीजेपी ऐसी चालें चलेंगी कि इन दलों को इन मुद्दों पर अपना स्टैंड सार्वजनिक करना पड़ेगा.
किसी खास चुनाव में मिले वोटों को आधार बनाकर सीटों की शेयरिंग कई राज्यों में बहुत मुश्किलें पैदा करेगी. खासकर उन स्टेट में जहां पिछले 2 चुनावों से कोई नई पार्टी उभर रही है.2022 के विधानसभा चुनावों में गुजरात में कांग्रेस को 27.28 फीसदी वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 52.50 फीसदी वोट मिले.पांच सीटें आम आदमी पार्टी ने जीतकर करीब 15 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही थी.जाहिर है कि आम आदमी पार्टी कभी नहीं चाहेगी कि गुजरात में सीट शेयरिंग का फार्मूला 2019 के चुनावों को बनाया जाए. आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 2019 के मुकाबले 2022 में तेजी से बढ़ रहा है. इसका मतलब तो यही है कि 2024 में भी उसे ज्यादा वोट मिलने की उम्मीद होगी.ऐसी दशा में कोई भी पार्टी क्यों सीटों से समझौता करेगी? ऐसा ही पेच कई राज्यों में दिखने वाला है.कम से कम पश्चिम बंगाल,गुजरात और महाराष्ट्र और पंजाब में तो बहुत मुश्किल होगी.|