अमेरिका नहीं अब यह देश होगा अगली महाशक्ति, शनिवार को रखी गई इसकी पहली नीव

डॉलर की मांग को देखते हुए उसके कीमतें इंटरनेशन मार्केट में बढ़ते जाती है। जिसका फायदा तो अमेरिका को होता है लेकिन नुकसान बाकी सभी देशों को होता है। यही देखते हुए भारत ने पिछले काफी समय से अलग-अलग देशों से अपने-अपने चलन में व्यापार करने की बातें रखी थी। उसी क्रम में आज UAE को भी भारत ने साथ ले लिया है। भारत के साथ फ़िलहाल सिंगापुर, श्रीलंका, बोत्सवाना, फिजी, जर्मनी, मलेशिया, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड,ओमान, सेशेल्स, तंजानिया, युगांडा और यूनाइटेड किंगडम यह देश अपने चलन में व्यापर करते है।

Update: 2023-07-16 06:21 GMT

भारत की दिन-ब-दिन बढ़ती व्यापार नीतियों को बाकी सभी देशों के तरफ से धीरे-धीरे समर्थन मिलते जा रहा है।  इस सबसे भारतीय रुपयों को भी काफी महत्व मिलता जा रहा है। अब तक जहां 18 देश भारत के साथ उनके मुद्राओं में यानी करेंसी (currency)में व्यापार करने के लिए तैयार हो गए थे अब उन्हें एक और देश शामिल हो गया है। इस देश के साथ भारत तकरीबन 800 अरब रुपयों का ट्रेड करने का लक्ष्य रख आगे बढ़ रहा है। इस देश का नाम है UAE  दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) शनिवार को यूएई के दौरे पर थे। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में उन्होंने कारोबार के लिए अपनी-अपनी मुद्राओं का इस्तेमाल करने पर चर्चा की जिसे यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नहायान ने खुशी-खुशी कबूल किया। इसे अगर आप इस तरह से देखें तो भारतीय मुद्राओं (Indian currency) को हर स्तर पर फायदा दिलाने की कोशिश कही जा सकती है।

अक्सर व्यापार करने के लिए सभी देश डॉलर (Dollars) यूरो ऐसे विदेशी मुद्राओं का इस्तेमाल करते हैं। यह करते समय कई बार करेंसी एक्सचेंज के लिए फॉरेन करंसी कन्वर्जन फीस देनी होती है। जो रुपए या किसी और स्थानीय मुद्राओं से काफी महंगे होते हैं। जिस कारण दोनों ही देशों को काफी नुकसान होता है। पर आप जब भारत और उसके साथ जुड़े हुए 19 देश अपने अपने मुद्राओं में व्यापार करने के लिए तैयार हो गए हैं। तो इससे ना सिर्फ भारत को बल्कि उन सभी देशों को फायदा मिलेगा जो भारत (India) के साथ व्यापार करेंगे अभी चालू वित्तीय वर्ष में भारत और अरब अमीरात के बीच 44 अरब डॉलर का व्यापार हो चुका है।

जो पिछले वर्ष 2022 तक 73 अरब डॉलर था। और दिन-ब-दिन यह व्यापार बढ़ता नजर आ रहा है। इन हालातों में अगर व्यापार अपने रुपयों या दिरहम में हो तो दोनों ही देशों को काफी फायदा मिलेगा। साथ ही साथ डॉलर की बढ़ती कीमतों पर भी अंकुश लगाया जा सकता है। इसे ऐसे समजा जा सकता है की जब कभी एक देश दूसरे देश से व्यापार करता है तो वह तीसरे देश यानी अमेरिका का राष्ट्रीय चलन डॉलर में व्यापार करता है। अभी अगर किसी को $1 खर्च करना है तो उसके लिए उन्हें अपने करेंसी में के 80 या ₹90 देने पड़ते हैं। पूरी दुनिया में ज्यादातर देश डॉलर में व्यापार करते हैं। जिस वजह से डिमांड और सप्लाई की चैन डिस्टर्ब होती है और दिन-ब-दिन बढ़ते डॉलर की मांग को देखते हुए उसके कीमतें इंटरनेशन मार्केट में बढ़ते जाती है। जिसका फायदा तो अमेरिका को होता है लेकिन नुकसान बाकी सभी देशों को होता है। यही देखते हुए भारत ने पिछले काफी समय से अलग-अलग देशों से अपने-अपने चलन में व्यापार करने की बातें रखी थी। उसी क्रम में आज UAE को भी भारत ने साथ ले लिया है। भारत के साथ फ़िलहाल सिंगापुर, श्रीलंका, बोत्सवाना, फिजी, जर्मनी, मलेशिया, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड,ओमान, सेशेल्स, तंजानिया, युगांडा और यूनाइटेड किंगडम यह देश अपने चलन में व्यापर करते है। वार्ता 24 से बातचीत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन देशों के साथ हमारी अपनी मुद्रा में व्यापार करने के लिए एक द्विपक्षीय शुरुआत की गई है और समय के साथ इन देशों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती नजर आएगी।  इससे फायदा यह होगा कि डॉलर की मांग कम होती जाएगी। साथ ही साथ व्यापार करना सभी देशों के लिए ज्यादा सुविधाजनक हो पाएगा क्योंकि उन्हें व्यापार अपने खुद के चलन में करने का मौका मिलेगा।

इससे पहले के मुकाबले कम खर्च में ज्यादा व्यापार करने का मौका सभी देशों के पास होगा इसे इस तरह से भी देख सकते हैं।  इसकी शुरुआत भारत ने की है इस वजह से आने वाले समय में भारत एक मजबूत स्थिति में आ सकता है। भारत दुनिया में सबसे युवा देशों में से एक होने के कारण और सबसे ज्यादा लोकसंख्या होने के कारण सभी बड़े व्यापारियों की नजर में है। ऐसे में हर कोई भारत में इन्वेस्ट करना चाहता है। ऐसे में जब अपने चलन में व्यापार करने का मौका मिलेगा तो दुनिया का सबसे बड़ा बाजार होने का फायदा भारत को भी जरूर मिलेगा। इसी से भारत को सबसे बड़ी ताकत बनने का रास्ता भी खुल सकता है।  इसलिए आज की स्थिति में यह 18 देश जो आज एसआरबीए खोलने के लिए भारतीय रुपयों में भुगतान करने के लिए तैयार हो गए हैं। इसका फायदा सबसे ज्यादा भारत को होने वाला है। इससे जहां एक तरफ महाशक्ति कहलाने वाला अमेरिका और उसके चलन की मांग धीरे-धीरे कम हो जाएगी और आज जिस तरह से हम $1 के लिए बड़ी रकम अदा करते हैं वह हालात सुधरेंगे। जिससे ना सिर्फ भारतीय रुपए बल्कि भारतीयों की भी परिस्थिति में बदलाव हो सकता है। तो कह सकते हैं कि शनिवार को दो देशों के बीच जो करार हुए हैं। वह भविष्य के लिए रखी गई एक बेहद महत्वपूर्ण नीव साबित होने जा रही है। 

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