दक्षिण की जंग पर टिकी निगाहें, जानें भाजपा-कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की क्या है तैयारी
पूरब, पश्चिम और उत्तर में संघर्ष कर रही कांग्रेस के लिए दक्षिण ही मजबूत आसरे की तरह है। वहीं, 370 सीटों के नारे के साथ मैदान में उतरी भाजपा का सपना भी दक्षिण से मिलने वाली दक्षिणा के बिना पूरा नहीं होगा।
लोकसभा चुनाव के रण में दक्षिण भारत के सात राज्य व केंद्र शासित प्रदेश मुख्य केंद्र होंगे। यहां कई क्षेत्रीय दल अस्तित्व की लड़ाई लड़ेंगे, तो कई दलों के सामने अपनी प्रासंगिकता कायम रखने की चुनौती होगी। देश की तीन दिशाओं पूरब, पश्चिम और उत्तर में संघर्ष कर रही कांग्रेस के लिए दक्षिण ही मजबूत आसरे की तरह है, तो 370 सीटों के नारे के साथ मैदान में उतरी भाजपा का सपना भी दक्षिण से मिलने वाली दक्षिणा के बिना पूरा नहीं होगा।
दक्षिण भारत के राज्यों आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, पुडुचेरी और लक्षद्वीप में राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस के अलावा दर्जनभर क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में हैं। वे चुनावों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं, मगर सबके सामने अलग-अलग चुनौतियां हैं। इनमें से कई क्षेत्रीय दलों के लिए अस्तित्व का सवाल है। एक असफलता इनके लिए वानप्रस्थ का रास्ता तैयार कर देगी। वहीं, यहां मिली असफलता कांग्रेस को फिर से खड़ा होने के अरमान पर पानी फेर देगी। इसके इतर कर्नाटक में कमजोर प्रदर्शन भाजपा की लगातार तीसरी बड़ी जीत हासिल करने के सपने पर ग्रहण लगा सकती है।
दक्षिण भारत अब भी भाजपा के लिए अभेद्य दुर्ग है। बड़ी मशक्कत से कर्नाटक में खड़ा किया गया पार्टी का दक्षिण का किला बीते विधानसभा चुनाव में ढह चुका है। पार्टी अपना प्रभाव कर्नाटक और तेलंगाना से बाहर नहीं बढ़ा पाई है। पार्टी की कोशिश इन राज्यों में अपनी सीटों की संख्या 29 से आगे बढ़ाने की है। इसके लिए पार्टी को न सिर्फ कर्नाटक (25 सीटें) में पुराना प्रदर्शन दोहराना होगा, बल्कि तेलंगाना (4 सीटें) में भी अपना विस्तार करना होगा। फिर मिशन 370 के लक्ष्य के आसपास जाने के लिए केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश में भी उपस्थिति दर्ज करानी होगी।
सनातन क्यों चर्चा में है दक्षिण?
दक्षिण भारत से जुड़े क्षेत्रीय दलों के ही नहीं, कांग्रेस के कुछ नेताओं के विवादास्पद बयान चर्चा में रहे हैं। इससे संदेश गया है कि कांग्रेस और उससे जुड़े क्षेत्रीय दल स्थानीय भावनाओं को भुनाने के साथ सियासी जंग को दक्षिण बनाम उत्तर बनाने की कोशिश में हैं। तमिलनाडु में डीएमके नेता और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि की सनातन धर्म विरोधी टिप्पणी के साथ ए. राजा की ओर से भारत को देश की जगह उपमहाद्वीप बताने पर विवाद हुआ। तेलंगाना के कांग्रेसी सीएम ने पूर्व सीएम केसीआर के बिहारी जीन का होने का दावा किया। इन बयानों के मद्देनजर भाजपा ने कांग्रेस और उसकी सहयोगियों पर सियासी लाभ के लिए देश की संघीय ढांचे से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया।
कांग्रेस: करो या मरो की लड़ाई
कांग्रेस वर्तमान में जिन तीन राज्यों में सत्ता में है, उसमें दो कर्नाटक और तेलंगाना दक्षिण भारत में ही हैं। इसी दक्षिण भारत में पार्टी तमिलनाडु में सत्ता की भागीदार है, तो केरल में मुख्य विपक्षी दल। सम्मानजनक नतीजे के लिए कांग्रेस के पास दक्षिण में चमत्कार करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व का सवाल
इस बार के नतीजे कई क्षेत्रीय दलों का भविष्य भी तय करेंगे। उपस्थिति दर्ज करने में नाकाम रहने पर केरल में वाम दल, आंध्रप्रदेश में टीडीपी, तेलंगाना में बीआरएस, तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक को बड़ी कीमत चुकानी होगी। केरल तक सिमटे वाम दल अगर बेहतर प्रदर्शन से चूके तो उनके सामने इकलौते राज्य को भी गंवाने का खतरा पैदा हो जाएगा।
किसकी क्या है तैयारी
भाजपा: कर्नाटक में संभावित सियासी घाटे से बचने के लिए भाजपा ने जदएस से हाथ मिलाया है। आंध्र प्रदेश में पुरानी सहयोगी टीडीपी के साथ जनसेना को साधा है। तेलंगाना में बीआरएस से बातचीत चल रही है। तमिलनाडु और केरल में पार्टी ने एक दर्जन सीटें चिह्नित कर पूरी ताकत झोंकने की तैयारी की है। दक्षिण के सभी सात राज्यों में ब्रांड मोदी पर भरोसा है।
कांग्रेस: कांग्रेस का मुख्य फोकस केरल, तेलंगाना और कर्नाटक पर है। तेलंगाना और कर्नाटक में पार्टी की सरकार है। बीते चुनाव में केरल को छोड़कर दोनों राज्यों में कांग्रेस ने बेहद बुरा प्रदर्शन किया था। केरल में पुराना प्रदर्शन दोहराने के लिए पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर से वायनाड सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि तमिलनाडु में पार्टी अपनी सहयोगी डीएमके के भरोसे है।