सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी मुफ्त सुविधाओं की प्रथा की निंदा की, कहा- लोग काम करने के इच्छुक नहीं
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों से पहले मुफ्त सुविधाओं की घोषणा करने की प्रथा की आलोचना करते हुए कहा कि लोग काम करने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि उन्हें मुफ्त राशन और पैसा मिल रहा है। अदालत ने राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले मुफ्त के वादों पर नाराजगी जाहिर की।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शहरी इलाकों में बेघर लोगों को आश्रय देने की याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
पीठ ने कहा, "हम इनके प्रति आपकी चिंता की सराहना करते हैं। लेकिन मुफ्त राशन और पैसा देने के बजाय क्या यह बेहतर नहीं होगा कि इन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जाए और देश के विकास में योगदान देने का अवसर मिले?"
सरकार का जवाब और अगली सुनवाई
इस पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पीठ को बताया कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है। इस मिशन के तहत शहरी बेघरों के लिए आश्रय की व्यवस्था समेत अन्य मुद्दों का समाधान किया जाएगा।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन कितने समय में लागू किया जाएगा। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते के लिए टाल दी।