डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट! जानें कैसे तय होती है मुद्रा की कीमत?

Update: 2025-01-14 12:50 GMT

नई दिल्ली। हाल ही में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत 86 के पार पहुंच गई है। यह सवाल उठता है कि किसी भी देश की मुद्रा की कीमत कैसे तय होती है और इसमें उतार-चढ़ाव क्यों आता है।

कैसे तय होती है मुद्रा की कीमत?

मुद्रा की कीमत मुख्य रूप से डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करती है। यदि किसी मुद्रा की मांग अधिक है, तो उसकी कीमत बढ़ जाती है और यदि मांग कम है, तो कीमत घट जाती है। उदाहरण के लिए जब भारत अमेरिका से कच्चा तेल, दवा के कच्चे पदार्थ या अन्य उत्पाद आयात करता है, तो भुगतान अमेरिकी डॉलर में किया जाता है। इस बढ़ती मांग के कारण डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले बढ़ जाती है।

अब अगर विदेश से किसी चीज का आयात किया जा रहा है तो आमतौर पर जिस भी देश से वह चीज मंगाई जा रही है, उसे भुगतान रुपये में नहीं बल्कि उस देश की मुद्रा या डॉलर में किए जाने का चलन है। एक तरह से देखें तो अमेरिकी डॉलर एक केंद्रीय मुद्रा है, जिसके जरिए बाकी देशों को भुगतान करने का चलन है। इसके अलावा ब्रिटेन से मंगाए उत्पादों का भुगतान पाउंड में, यूरोप के किसी भी देश से मंगाए गए उत्पादों का भुगतान यूरो में करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसी तरह चीन को किसी उत्पाद के लिए भुगतान उसकी मुद्रा येन या फिर डॉलर में किया जा सकता है।

डॉलर की मजबूती का असर:

-महंगाई: आयात महंगा हो जाता है।

-विदेश यात्रा महंगी: विदेश यात्रा और शिक्षा के खर्च बढ़ जाते हैं।

- निर्यातकों को फायदा: भारतीय उत्पाद विदेशों में सस्ते हो जाते हैं, जिससे निर्यात बढ़ सकता है। मुद्रा की विनिमय दर वैश्विक आर्थिक स्थितियों, व्यापार संतुलन और केंद्रीय बैंक की नीतियों पर भी निर्भर करती है।

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