सास-बहू के रिश्ते की अनोखी मिसाल: 60 वर्षीय सास ने बहू को अपनी किडनी देकर बचाई जान

Update: 2025-01-27 15:40 GMT

गाजियाबाद। सास-बहू के रिश्ते को लेकर अक्सर कहा जाता है कि इनमें नोकझोंक बनी रहती है, लेकिन यशोदा सुपर स्‍पेशलिटी हॉस्टिपटल कौशांबी में एक ऐसा वाकया सामने आया जो आपकी सोच को बदल देगा। मेरठ की 60 वर्षीय पुष्पा देवी ने इस धारणा को पूरी तरह बदल दिया। उन्होंने अपनी 32 वर्षीय बहू रीना को किडनी दान कर यह साबित कर दिया कि यह रिश्ता सिर्फ तकरार का नहीं, बल्कि त्याग और स्नेह का भी हो सकता है।

परिवार की जिम्मेदारियों में खुद को भूल गई रीना

मेरठ के वालिदपुर गांव की रहने वाली रीना दो बच्चों की मां हैं। मई 2024 से वह एंड स्टेज किडनी डिजीज (ESRD) से जूझ रही थीं और डायलिसिस पर थीं। रीना की व्यस्त दिनचर्या और परिवार की जिम्मेदारियों के कारण उनकी बीमारी का पता देरी से चला। रीना ने यशोदा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल की मेरठ ओपीडी में डॉक्टर प्रजीत मजूमदार और डॉक्टर इंद्रजीत जी. मोमिन से परामर्श किया। जब डॉक्टर्स ने किडनी ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय बताया, तो परिवार में कोई भी डोनर मैच नहीं हुआ। माता-पिता अयोग्य थे, पति और भाई का ब्लड ग्रुप भी नहीं मिला। इसके अलावा, रीना को पहले कई बार रक्त आधान (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) हो चुका था और उन्हें हेपेटाइटिस सी भी था, जिससे ट्रांसप्लांट की जटिलताएं और बढ़ गईं।

सास ने बढ़ाया मदद का हाथ

जब रीना के लिए कोई उपाय नहीं बचा, तो उनकी सास पुष्पा देवी आगे आईं और अपनी किडनी दान करने का फैसला किया। यह निर्णय लेना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन बहू को बचाने के लिए उन्होंने अपनी सेहत की परवाह किए बिना यह बड़ा कदम उठाया।

सफल रहा ऑपरेशन, बनी प्रेरणा

यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कौशांबी में डॉक्टर प्रजीत मजूमदार, डॉक्टर आईजी मोमिन (नेफ्रोलॉजी टीम) और डॉक्टर वैभव सक्सेना, डॉक्टर निरेन राव व डॉक्टर कुलदीप अग्रवाल (किडनी ट्रांसप्लांट टीम) की देखरेख में यह ऑपरेशन सफलतापूर्वक किया गया। अब सास और बहू दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं।

यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कौशांबी के सीएमडी डॉक्टर पीएन अरोड़ा ने कहा कि यह सिर्फ एक सफल किडनी ट्रांसप्लांट नहीं, बल्कि त्याग और मानवता की अद्भुत मिसाल है। पुष्पा देवी का निर्णय समाज के लिए प्रेरणादायक है और यह दर्शाता है कि रिश्तों की गहराई सिर्फ खून के संबंधों तक सीमित नहीं होती। हमारी अनुभवी मेडिकल टीम ने हर चुनौती को पार करते हुए इस जटिल ट्रांसप्लांट को सफल बनाया। यशोदा हॉस्पिटल में हम मरीजों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

महिलाओं के लिए सबक और प्रेरणा

यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कौशांबी के यूरोलॉजिस्ट और सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर वैभव सक्सेना का कहना है कि रीना का केस काफी जटिल था, लेकिन उनकी सास के निःस्वार्थ प्रेम और मेडिकल टीम की मेहनत से यह ट्रांसप्लांट सफल हो सका।

भारत में हर साल करीब 2,20,000 मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 7,500 ट्रांसप्लांट ही हो पाते हैं। महिलाओं के लिए यह चुनौती और भी बड़ी होती है, क्योंकि 70% डोनर महिलाएं होती हैं, जबकि ज्यादातर किडनी पाने वाले पुरुष होते हैं। ऐसे में पुष्पा देवी का यह कदम समाज के लिए एक प्रेरणा है कि जरूरत पड़ने पर महिलाएं भी प्राथमिकता पा सकती हैं और उनका स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

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