शीतल देवी: जन्म से नहीं, दोनों हाथों से कर रही हैं कमाल की तीरंदाजी, पढ़ें कश्मीरी लड़की की हैरान कर देने वाली कहानी
शीतल का कहना है कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह तीरंदाज बनेंगी। यह अब भी उन्हें एक सपने जैसा लगता है. डेढ़ साल पहले जब शीतल ने तीरंदाजी शुरू की थी तो वह बिना हाथों वाली दुनिया की पहली महिला तीरंदाज बन गई थीं, लेकिन अब पूरी दुनिया में कुल छह बिना हाथों वाली तीरंदाज हैं।किश्तवाड़ (जम्मू-कश्मीर) जिले के दूरदराज के गांव लोई धार की शीतल देवी के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं हैं। इसके बावजूद 16 साल की इस बेटी के लिए दिव्यांगता अभिशाप नहीं बनी। डेढ़ साल पहले सेना के एक अधिकारी ने कटरा स्थित माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड तीरंदाजी अकादमी के कोच कुलदीप वेदवान को शीतल के बारे में बताया। यहीं से शीतल की जिंदगी बदल गई. उनके लिए एक विशेष धनुष तैयार किया गया था, जो हाथों से नहीं बल्कि पैरों और छाती से चलता है। छह महीने के भीतर ही शीतल ने इसमें महारत हासिल कर ली और पिल्सेन (चेक गणराज्य) में खेले जा रहे विश्व पैरा तीरंदाजी के फाइनल में पहुंचने वाली दुनिया की पहली बिना हाथ वाली महिला तीरंदाज बन गईं।
विश्व की पहली बिना हाथ वाली महिला तीरंदाज बनीं
शीतल का कहना है कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह तीरंदाज बनेंगी। यह अब भी उन्हें एक सपने जैसा लगता है. डेढ़ साल पहले जब शीतल ने तीरंदाजी शुरू की थी तो वह बिना हाथों वाली दुनिया की पहली महिला तीरंदाज बन गई थीं, लेकिन अब पूरी दुनिया में कुल छह बिना हाथों वाली तीरंदाज हैं। शीतल के साथ पिलसेन में श्राइन बोर्ड अकादमी की कोच अभिलाषा का कहना है कि उन्हें तीरंदाजी में शुरुआत कराना एक चुनौतीपूर्ण काम था। जब शीतल यहां आईं तो उन्होंने अकादमी में अन्य पैरा तीरंदाजों को तीरंदाजी का अभ्यास करते देखा, तो वह इस खेल को अपनाने के लिए तैयार हो गईं। अकादमी में उनके लिए एक खास धनुष तैयार किया गया था. छह महीने के भीतर ही वह एक कुशल तीरंदाज बन गयीं। यहां तक कि उन्होंने पैरा के अलावा आम तीरंदाजों के साथ भी खेलना शुरू कर दिया.
पेरिस पैरालिंपिक के लिए टिकट मिला
अभिलाषा के मुताबिक, उन्होंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पैरा टूर्नामेंट दो महीने पहले चेक गणराज्य में खेला था, जिसमें उन्होंने दो रजत और कांस्य पदक जीते, लेकिन पेरिस पैरालंपिक के लिए क्वालीफाइंग विश्व चैंपियनशिप में उनका प्रदर्शन प्रभावशाली रहा है। उन्होंने बुधवार को 720 में से 689 अंक हासिल कर कंपाउंड तीरंदाजी के फाइनल में जगह बनाई, जहां शनिवार को उनका मुकाबला 697 अंकों के साथ अपने ही देश की विश्व रिकॉर्ड धारक सरिता से होगा। दोनों तीरंदाजों ने पेरिस पैरालंपिक का टिकट भी हासिल कर लिया है. अगर वह फाइनल जीत जाती हैं तो खिताब जीतने वाली दुनिया की पहली बिना हाथ वाली महिला तीरंदाज बन जाएंगी। शीतल बहुत ही गरीब परिवार से हैं. उनके पिता एक किसान हैं और मां बकरियों की देखभाल करती हैं।
बिना हाथों के आर्चर मैट का सबसे पहले दिखाया गया वीडियो
अभिलाषा के मुताबिक शीतल को तीरंदाजी सिखाना आसान नहीं था. उन्हें यह बताना मुश्किल था कि तीर कैसे चलाया जाए। इसके लिए कुलदीप और उन्होंने शीतल को दुनिया के पहले आर्मलेस तीरंदाज अमेरिका के मैट स्टुट्ज़मैन का वीडियो दिखाना शुरू किया। इससे काफी मदद मिली. मैट भी यहां खेलने आए हैं. वह शीतल से मिलने आये थे और उन्होंने शीतल का धनुष भी देखा. उन्होंने इसमें कुछ बदलाव के सुझाव दिये हैं. पैरालंपिक पदक विजेता मैट ने यहां 685 का स्कोर बनाया, जबकि शीतल ने 689 का स्कोर किया।
फाइनल से पहले हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया
शीतल को शुक्रवार को टीम स्पर्धा में भी हिस्सा लेना था, लेकिन गुरुवार को उनकी तबीयत खराब हो गई। अभिलाषा के मुताबिक उन्हें यहां अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. रात दो बजे वह अस्पताल से आई हैं. इसके चलते उन्हें आज के मैच से रिलीज कर दिया गया. अब इन्हें शनिवार को फाइनल मुकाबला खिलाने की तैयारी है।