मृत महिला का फर्जी अंगूठा निशान व दस्तावेज बनाकर हड़पी थी प्लॉट, दो लोग दोषी करार; यह है पूरा मामला

Update: 2023-07-13 12:41 GMT

राउज एवेन्यू कोर्ट ने एक मृत महिला के नाम पर फर्जी दस्तावेज बनाकर उसका प्लॉट हड़पने के मामले में दो लोगों को दोषी ठहराया है, जबकि तीसरे आरोपी, डीडीए के तत्कालीन डीलिंग असिस्टेंट को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।दोषियों ने महिला की मौत के बाद उसके फर्जी अंगूठे के निशान, डीडीए अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर और अन्य दस्तावेजों के जरिए प्लॉट पर दावा किया था।


पूरा मामला क्या है

कोटला मुबारकपुर थाने में 9 फरवरी 2010 को पश्चिम विहार निवासी प्रमोद गर्ग, मेरठ रोड, बागपत निवासी बिजेंद्र सिंह और द्वारका निवासी चरण सिंह सोलंकी के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था। भ्रष्टाचार अधिनियम, धोखाधड़ी, जाली दस्तावेज तैयार करने समेत आईपीसी की धाराएं लगाई गईं।

आरोप है कि प्रमोद गर्ग ने रत्नी देवी नाम की महिला की मौत के बाद उसके नाम पर फर्जी दस्तावेज बनाए. फिर उन्होंने डीडीए अधिकारियों के साथ मिलकर एक महिला के नाम पर रोहिणी द्वारका सेक्टर 8 के बी ब्लॉक में एक प्लॉट हड़प लिया। जबकि यह भूखंड रत्नी देवी के पति अमर को आवंटित थाअमर सिंह की मृत्यु के बाद सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद 18 जून 1992 को संबंधित भूखंड को रत्नी देवी के नाम पर स्थानांतरित कर दिया गया।

शर्तों के मुताबिक, वह प्लॉट को बेच, ट्रांसफर, आवंटन या अलग नहीं कर सकती थी। विशेष न्यायाधीश संजीव कुमार मल्होत्रा की अदालत ने तमाम सबूतों का अवलोकन करने के बाद आरोपी प्रमोद गर्ग और चरण सिंह सोलंकी को आईपीसी की धारा 471 और 120बी के तहत दोषी ठहराया, जबकि बिजेंद्र को बरी कर दिया।अदालत ने कहा कि आरोपी बिजेंद्र ने संपत्ति को लीजहोल्ड से फ्रीहोल्ड में बदलने के प्रस्ताव की सिफारिश नहीं की थी।डीडीए में डीलिंग असिस्टेंट के पद पर कार्यरत बिजेंद्र सिंह ने प्रमोद गर्ग से रिश्वत की मांग भी नहीं की थी. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष बिजेंद्र सिंह पर लगाए गए आरोप को साबित करने में विफल रहा है. इसलिए उसे बरी कर दिया गया है.

प्लॉट को फ्री होल्ड करने के लिए आवेदन का खुलासा हुआ था

28 नवंबर, 2005 को आरोपियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर डीडीए अधिकारियों की मिलीभगत से रत्ना देवी के नाम पर प्लॉट को फ्री होल्ड करने के लिए आवेदन किया। जबकि रत्ना देवी की मौत 26 अक्टूबर 2004 को हो गई थी. तब उनके परिजनों को पता चला कि कुछ लोग जमीन हड़पने में लगे हैं.

शिकायत के बावजूद डीडीए ने कोई जहमत नहीं उठाई

पूरे फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद मृतक के परिजनों ने डीडीए में आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. इसके बावजूद डीडीए की ओर से कार्रवाई करने की कोई कोशिश नहीं की गई. तब पीड़ित पक्ष ने कोर्ट में अर्जी दाखिल कर न्याय की गुहार लगाई.

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