'पेड़ों की छांव तले रचना पाठ' की 120वीं राष्ट्रीय गोष्ठी "कवि और उसकी किताब" को समर्पित रही

Update: 2025-02-24 13:18 GMT

गाजियाबाद। "पेड़ों की छांव तले रचना पाठ" की 120वीं राष्ट्रीय गोष्ठी आभासी पटल पर "कवि और उसकी किताब" विषय को समर्पित रही। इस गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में ख्यात कवि एवं व्यंग्यकार डॉ. लालित्य ललित, संपादक नेशनल बुक ट्रस्ट उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रसिद्ध गजलकार राकेश भ्रमर ने सारस्वत सहभागिता निभाई।

गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के उपसचिव डॉ. देवेंद्र देवेश ने की, जबकि संचालन वरिष्ठ कवि अवधेश सिंह 'बंधुवर' ने किया। इस आयोजन में वरिष्ठ नवगीतकार जगदीश पंकज, कवि रणविजय राव के साथ-साथ कवयित्रियां पल्लवी मिश्र शिखा, पूनम समर्थ और शशि किरण ने भावपूर्ण एवं सरस काव्य पाठ किया।

इस गोष्ठी में साहित्यकारों ने अपनी किताबों के संबंध में संक्षिप्त जानकारी साझा की और समाज की विषमताओं एवं प्रेम भाव से परिपूर्ण अपनी प्रकाशित रचनाओं का वाचन किया।

हाल ही में विश्व पुस्तक मेले में सर्व-भाषा ट्रस्ट द्वारा लालित्य ललित रचनावली (भाग 1 से भाग 25 तक) प्रकाशित कर लोकार्पित की गई। इसी संदर्भ में डॉ. लालित्य ललित ने इसे यादगार लम्हा बताया, जिसमें नए और पुराने कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। उन्होंने कहा कि आज के तनाव भरे समय में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है और इस प्रकार की कविताएं तनाव को कम करने में ईंधन का कार्य कर सकती हैं। इस अवसर पर डॉ. लालित्य ललित ने प्रेम और स्नेह से ओत-प्रोत सामयिक रचनाओं का पाठ किया।

उनकी कविता "मैंने जिंदगी से कह दिया/कि आहिस्ता-आहिस्ता देखेंगे सपनों के शहर/जल्दबाजी कभी भी अच्छी नहीं लगती" को विशेष सराहना मिली।

नवगीतकार जगदीश पंकज ने अपनी पुस्तक 'साक्षी हैं हम समय के' से शीर्षक गीत प्रस्तुत किया:

"चल रहा अभियोग सच पर/हम खड़े देने गवाही/हर अराजक संतुलन में/साक्षी हैं हम समय के'। इसके अलावा, उन्होंने समाज की वास्तविकताओं को दर्शाते हुए गीत पढ़ा:

"जितना दीख रहा/उतना ही सत्य नहीं अनदीखा, उससे ज्यादा सच कहता है।

बंजर धरती पर भी फसल उगाने को, जाने कितना बहा पसीना सांसों का/कितनी आंतों ने ऐंठन देखी होंगी/कितना भजन किया होगा चौमासों का"।

कवि रणविजय राव ने अपनी नई पुस्तक "जब तुम नहीं होती" की जानकारी साझा करते हुए अपनी कविताएं "दादी तो बेचारी डर ही जातीं" और "मां को पाती बेटे के नाम" का पाठ किया।

गजल और काव्य में सामाजिक चेतना गजलकार राकेश भ्रमर ने अपनी किताब "शबनमी धूप" की चर्चा करते हुए कई गजलें तरन्नुम में प्रस्तुत कीं। उनकी गजल: "रोजी भी ले गए, मेरी शोहरत भी ले गए / ऐसे थे मददगार कि हसरत भी ले गए। हश्र ओ नसीब की उन्हें ज्यादा ही फिक्र है/आई जो मौत, मौत से फुर्सत भी ले गए"।

कवयित्री पूनम समर्थ ने अपनी किताब "अहसासों की पंखुड़ियां" पर चर्चा करते हुए प्रेम और अध्यात्म में डूबी कविताएं पढ़ीं: "तिश्नगी, सोचते रहते हैं अक्सर/ये जिंदगी क्या है?

कल क्या है, आज क्या है, कल क्या है, सभी समय की परतों में आबद्ध/नदी सा मन के भीतर बहता, किसी भी आयाम में कहां ठहरा हुआ है!"

कवयित्री शशि किरण ने अपनी पुस्तक "तुम साथ हो" का परिचय देते हुए प्रेम की मासूमियत और नारी समाज पर सामाजिक दबावों को दर्शाने वाली कविता पढ़ी:

"लड़की समझदार है/सामंजस्य रखती है/विचारों में मर्यादा/नजरों में हया/वाणी में नम्रता

पर पानी यदि सर से ऊपर हो जाए/तो आंसू बहाने से पहले/याद करा देती है छठी का दूध"।

कवयित्री डॉ. पल्लवी मिश्र शिखा ने अपनी नई पुस्तक "धूप छांव" पर चर्चा करते हुए संग्रहित कविताओं का पाठ किया।

गोष्ठी का संचालन और समापन

गोष्ठी का संचालन कर रहे संयोजक वरिष्ठ कवि अवधेश सिंह 'बंधुवर' ने अपनी नई प्रकाशित काव्य पुस्तक "अफसोस का अमृतकाल" की चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान समय पीड़ाओं और समस्याओं की अमरता को प्राप्त कर चुका है, जिससे छुटकारा पाना मुश्किल हो गया है। उन्होंने अपनी कविताएं "डरो, डरना जरूरी है" और "सर पर एक छत का सवाल" का पाठ किया। देर रात तक चली इस राष्ट्रीय गोष्ठी को बहुसंख्यक कविता प्रेमियों ने सराहा और प्रशंसा की।

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