लौट आया बड़े परदे का बाहुबली, कमजोर दिल के लोग इसे न देखें, आई काइंडली रिक्वेस्ट

By :  SaumyaV
Update: 2023-12-22 08:50 GMT

देवी पूजा करने वाले देश में बच्चियों के बलात्कार की घटनाएं तकरीबन रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों की सुर्खियां बनती हैं। ये शैतान अब तो दिन के उजाले में निकलते हैं। अपने झुंड के साथ, बच्चियों का शिकार करने। हवस की पतंग बनाकर उड़ाते हैं। जहां ये पतंग गिर गई, वहां की बच्ची उनका शिकार बन जाती है। बच्चियां भी पूजा कर करके थक जाती हैं। काली मां आती नहीं है, लेकिन फिर आता है एक सलार, एक वेदा जो लिखित कानूनों को नहीं मानता है। वह इन आततायियों की बलि चढ़ाता है और बन जाता है एक ऐसा नायक जिसके लिए भाषा, प्रांत और परंपराओं की सीमाएं टूट जाती हैं। फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ का ये एक इकलौता दृश्य प्रभास को मर्दानगी के उस उत्कर्ष पर ले जाता है, जहां इससे पहले वह सिर्फ ‘बाहुबली’ में पहुंचे थे। एक मां और मामा यहां भी हैं। एक काल्पनिक राजकुमारी भी यहां है। लेकिन, इस बार कहानी में एक दोस्त भी है, जिस पर हाथ डालने वाले का, वेदा हाथ ही नहीं काटता। वह काटता है, उसका गला। 




 


रक्तरंजित कथाओं का नया अध्याय

रक्तरंजित कथाओं के विश्वसिनेमा में बढ़ते चलन का दौर अब भारतीय सिनेमा में भी असर दिखा रहा है। फिल्म ‘एनिमल’ को कोसने वालों को फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ सोशल मीडिया पर अपनी पहुंच बढ़ाने का एक और मौका देने जा रही है। फिल्म केवल वयस्कों के लिए हैं। हालांकि, ‘एनिमल’ की तरह यहां कोई नग्न दृश्य नहीं है। पूरी फिल्म एक ऐसी कहानी कहती है जिसके सिरे 1917 से 2017 तक के कालखंड में फैले हुए हैं। भूगोल इसका उस खानसार का है जिसे 1947 में इसमें रहने वालों ने ही भारत के नक्शे से मिटा दिया। लेकिन, कल्पनाओं के घोड़े इस फिल्म को लिखने वालों ने ऐसे खोले हैं कि ये इस कहानी को अमेरिका से ले जाकर पूरे देश में फैला देते हैं। तिनसुकिया, असम में अपनी शिक्षक मां के साथ रह रहा वेदा अपनी मां को दिया वचन निभाने को हिंसा से दूर है। लेकिन, एक दिन एक युवती अमेरिका से आकर 25 साल से शांत पड़ी इस कहानी में हलचल मचा देती है। उधर, खानसार में सत्ता संघर्ष जारी है। कुर्सी पर बैठा राजा मन्नार एक खुफिया सूचना की पुष्टि के लिए कुछ दिनों के लिए बाहर जाता है तो उसकी बेटी राजसत्ता संभालती है, और फिर यहां शुरू हो जाते हैं जानलेवा षडयंत्र। ये साम्राज्य चलता है, बलैदेव राज्यम्, बलैदेव आसनम्, के सूत्र से और बल तो वेदा में काली के बेटे जैसा है। 




 


वीडियो गेम जनरेशन की फिल्म

फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ अपनी मेकिंग में ‘एनिमल’ से भी ज्यादा भयावह, उससे ज्यादा हिंसक और उससे भी ज्यादा वीभत्स है। वीडियो गेम जनरेशन को ऐसी ही फिल्में बड़े परदे पर चाहिए। वे मोबाइल, कंप्यूटर यहां तक कि घर के बड़े टीवी पर भी ये हिंसक वीडियो गेम खेल खेलकर बोर हो चुके हैं। वे इन अनुभवों को अब आईमैक्स परदे पर जीवंत होना देखना चाहते हैं। ‘केजीएफ’ सीरीज की फिल्में बनाकर लेखक, निर्देशक प्रशांत नील ये तो समझ ही चुके हैं कि इतिहास में कल्पनाओं की कहानियां ले जाकर भारतीय दर्शकों को रिझाया जा सकता है। खासकर तब, जब इसमें ‘एंग्री यंगमैन’ जैसा एक तड़का हर भाषा के प्रांतों में खूब पसंद किया जाता रहा है। प्रशांत नील ने इस बार ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ जैसी कहानी रची है। ये ‘केजीएफ’ की कहानी से कम से कम इस फिल्म में न तो मिलती दिखाई देती है और न ही ‘केजीएफ’ स्टार यश ही फिल्म में कहीं दिखते हैं लेकिन, ये कहानी अभी लंबी चलने वाली है। फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ के अंत में ही प्रशांत नील इसकी सीक्वेल फिल्म ‘सलार पार्ट टू शौर्यांग पर्वम्’ की भी घोषणा करते हैं, बिना किसी पोस्ट क्रेडिट सीन के। 

लौट आया बड़े परदे का ‘बाहुबली’

‘बाहुबली’ सीरीज की दोनों फिल्मों के बाद से प्रभास के सितारे गर्दिश में ही रहे हैं। उनकी तीन फिल्में ‘साहो’, ‘राधेश्याम’ और ‘आदिपुरुष’ इसके बाद कतार से फ्लॉप रहीं। फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ उनका बॉक्स ऑफिस पर पुनर्जीवन है। रिलीज से पहले ही करीब 50 करोड रुपये सिर्फ एडवांस बुकिंग में कमा लेने वाली फिल्म ये भी इशारा करती है कि प्रभास के तिलिस्म में अगर किसी काबिल निर्देशक का जादू मिल जाए तो वह अब भी एक बड़े दर्शक वर्ग के दुलारे अभिनेता बने हुए हैं। जो काम निर्देशक ओम राउत फिल्म ‘आदिपुरुष’ में न कर पाए, वह काम निर्देशक प्रशांत नील ने उनके लिए फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ में किया है। दो दोस्तों की कहानी को अपनी कहानी का बीज बनाते हुए प्रशांत ने एक इतना विशाल बरगद तैयार किया है कि इसकी क्षेपक कथाओं की शाखाएं गिनते गिनते फिल्म की हीरोइन भी हांफ जाती है और रुककर दो घूंट लेना चाहती है। प्रभास की बड़े परदे पर आमद के समय बजने वाली सीटियां उनकी लोकप्रियता का असली प्रमाण हैं और प्रभास ने भी एक शांतचित्त लेकिन खूंखार किरदार को निभाया भी बहुत सलीके से हैं। लेकिन, फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ अकेले प्रभास की फिल्म नहीं है। 

पृथ्वीराज, जगपति और श्रिया का परचम

फिल्म के मुख्य किरदार वेदा के बचपन के दोस्त वर्धा की इस मूल कहानी में पृथ्वीराज सुकुमारन ने बड़े वर्धा का किरदार निभाया है। वह खानसार के राजा की दूसरी पत्नी की संतान है। वेदा की मां की लाज बचाने के लिए दी गई कुर्बानी के चलते वह दर बदर होता है लेकिन बुढ़ापे में राजा को इस राजकुमार की याद आ ही जाती है। और, राजा के इस एक फैसले से पूरे खानसार के सिपहसालार और सरदार बौखला जाते हैं। सलार का शाब्दिक अर्थ भी सरदार ही है। वर्धा की जान मुश्किल में होती है तो उसे बचाने उसका बचपन का सलार देवा फिर लौटता है। प्रभास ने यदि एक बेटे के तौर पर कई दृश्यों में बढ़िया भावनात्मक अभिनय किया है तो पृथ्वीराज सुकुमारन पहले एक लाचार राजकुमार और फिर दोस्त का साथ पाकर बने शूरवीर के रूप में खूब प्रभावित करते हैं। जगपति बाबू जितनी देर भी परदे पर दिखते हैं, उनका रुआब काबिलेगौर होता है। श्रुति हसन का किरदार कहानी के इस पहले हिस्से में सिर्फ उत्प्रेरक का काम करता है। और, फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ के महिला किरदारों की कमान संभाली है श्रिया रेड्डी ने। श्रिया रेड्डी ने सियासत की चौसर पर तमाम पुरुष किरदारों के बीच एक महिला किरदार को बहुत ही दमदार तरीके से स्थापित किया है। 

शानदार प्रोडक्शन डिजाइन और काला कलर पैलेट

फूजी कलर और ईस्टमैन कलर से होते हुए यहां तक पहुंचे सिनेमा में अब कलर पैलेट भी कहानी का रंग जमाने में मददगार होने लगा है। फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ का कलर पैलेट काला है। और, वह इसलिए क्योंकि इसके सारे मुख्य किरदार स्याह हैं। वे काले और सफेद में बंटे हुए नहीं हैं। स्याह किरदारों को कहानियों का आधार बनाना इन दिनों सिनेमा को खूब रास आ रहा है। अब न ‘एनिमल’ के रणविजय सिंह को अपने परिवार के लिए खून खराबा करते समय जमाने की पड़ी है और न ही ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ के वेदा को अपने दोस्त के लिए कत्लेआम मचाते हुए। ये संवेदनाओं का सिनेमा है। इसमें गुडी गुडी सिनेमा तलाशने वाले धीरे धीरे हाशिये पर जा रहे हैं। टी एल वेंकटचलपति ने फिल्म की डिजाइनिंग बहुत ही भव्य तरीके से की है। 

दर्शनीय सिनेमैटोग्राफी, सांसें रोक देने वाला एक्शन

फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ में भुवन गौड़ा की सिनेमैटोग्राफी यहां प्रशांत नील के तरकश का सबसे कामयाब तीर बनती है। अंबारिवू के सांसें रोक देने वाले एक्शन निर्देशन में एक अलग सोच नजर आती है। विदेशी लोकेशनों की हवाई फोटोग्राफी को सेट पर शूट किए गए दृश्यों में पिरोकर एक काल्पनिक दुनिया का हिस्सा बना देने में फिल्म का संपादन करने वाले उज्ज्वल कुलकर्णी का कौशल भी तारीफ के काबिल है। फिल्म की हिंदी डबिंग भी काफी प्रभावशाली है और ये बात फिल्म ‘सलार पार्ट वन सीज फायर’ को हिंदी पट्टी की भी लोकप्रिय फिल्म बनाने का पूरा दमखम रखती है। हां, अगर फिल्म में दिया रवि बसरूर का संगीत भी कर्णप्रिय होता तो फिल्म पूरे चार स्टार पाने लायक ‘एनिमल’ जैसी एडल्ट फिल्म जरूर बन जाती। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म का जरूर जोरदार है।




 


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