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महाशक्ति के युद्ध में पिछड़ता अमेरिका, कौन होगा अगला महाशक्ति ?
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अमेरिका से चीन की तनातनी लंबे समय से चल रही है। ताइवान सहित कई देशों से इसके संबंध ठीक नहीं हैं। यूक्रेन वॉर में चीन जिस तरह रूस के साथ खड़ा हुआ है, और अब चीन यूक्रेन–रूस के बीच मध्यस्थता करने के लिए अपना दूत भेज रहा है। इन सबको देखते हुए सवाल उठता है क्या आने वाले समय मे चीन अमेरिका को पिछड़ते हुए खुद महाशक्ति बनने की कोशिश तो नही कर रहा।
यूरोप के देश चीन में निवेश करने से कन्नी काट रहे हैं। वैसे भी कोविड से जुड़े सख्त लॉकडाउन के चलते कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन पर निर्भरता घटाने लगी हैं। पर ये बहुत छोटी सी पहल है।
कोविड़ जैसा वायरस बनाने पर भी सब चुप
देखा जाय तो चीन ने जिसतरह दुनिया को कई साल पीछे छोड़ने वाला वायरस बनाकर लोगों की जान से खेल खेला इसके बावजूद किसी देश में इतनी हिम्मत नही की उसे कुछ कह सके। आज भी चीन अपनी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती जा रही है। इसके बावजूद आईएमएफ के अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि चीन और अमेरिका की खेमेबंदी अगर इसी तरह बढ़ती गई तो साल 2030 तक चीन के जीडीपी को 8 प्रतिशत का झटका लग सकता है।
अगर चीन पांच-साढ़े पांच प्रतिशत के रेट से तरक्की करता रहे, तो हो सकता है कि अगले 10-12 वर्षों में वह अमेरिका को पीछे छोड़ दे। लेकिन अगर उसकी ग्रोथ इससे कम रही तो उसके लिए अमेरिका के आसपास पहुंचना भी मुश्किल होगा। अभी चीन का जीडीपी अमेरिका के लगभग दो तिहाई पर है। इस बीच, दूसरे देशों से तनाव बढ़ रहा है। कामकाजी आबादी घट रही है। आर्थिक सुधारों के बजाय जिनफिंग राष्ट्रवादी तेवरों वाली सख्ती दिखा रहे हैं।
अमेरिका से आगे निकलता चीन
टेक्नॉलजी जैसे ज्यादा ग्रोथ वाले सेक्टरों में सरकारी दखलंदाजी बढ़ रही है। और इन सबके बीच कर्ज भी बढ़ रहा है। रुचिर शर्मा के मुताबिक, ऐसे में आने वाले वर्षों में ढाई प्रतिशत जीडीपी ग्रोथ भी कायम रह सके तो बड़ी बात होगी। शर्मा का कहना है कि अमेरिका अगर डेढ़ प्रतिशत की दर से भी बढ़ता रहे तो साल 2060 तक चीन उससे आगे नहीं निकल पाएगा।
अगर ऐसा होता है तो दुनिया को तानाशाही बर्दाश्त करने के लिए तयार रहना चाहिए।अमेरिका लंबे अरसे से चीन के व्यवहार को आक्रामक बताता आ रहा है। चीन की चुनौतियों को संबोधित करने के मुद्दे पर चर्चा के लिए प्रतिनिधि सभा में हाल ही में ‘हाउस सलेक्ट कमेटी ऑन द चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी’ नाम की एक समिति का गठन किया गया है। इन सबके बावजूद चीन दिन ब दिन हर खेमे पर अमेरिका को दबाते हुए खुद को शक्तिशाली साबित करने में लगा है।