जब मैं इजिप्ट में गीज़ा के पिरैमिड को देखने निकल पड़ा...
सिंदबाद ट्रैवल्स-23
मिस्र के संग्रहालय से निकल कर अब हमारी गाड़ी चल पड़ी थी काहिरा के उपनगर गीज़ा की ओर जहां मेरा होटल भी था। हम जा रहे थे विश्व के प्राचीन सात अजूबों (7 Wonders of world) में से एक और वर्तमान में प्राचीन सात में से एकमात्र मौजूद अजूबे यानी कि मिस्र/गीजा के पिरैमिड को देखने। हमारी शानदार गाड़ी हांफती, कराहती आखिर गीज़ा पहुंच गयी और जहां मिस्टर मैगदी ने गाड़ी रुकवायी वहां हैंडीक्राफ्ट्स के बहुत सारे शो रूम्स बने हुए थे और दाहिने हाथ पर सामने ऊंचाई पर पिरैमिड भी नजर आये। पिरैमिडों की झलक होटल से भी दिखती थी लेकिन अब तो विश्व का अजूबा मेरी आंखों के सामने ही था। सामने तीन पिरैमिड दिख रहे थे जिनमें एक सबसे बड़ा था। यदि पिरैमिड की ओर सीधे मुंह करके खड़े हों तो दाहिने हाथ पर कुछ नीचे प्रसिद्ध स्फिंक्स भी दृष्टव्य था। ये दृश्य जीवन के यादगार दृश्यों में था और आज भी जब ये लिख रहा हूं तो वो दृश्य जैसे साक्षात मेरे सामने उपस्थित सा हो गया है।
गाड़ी से उतर कर मिस्टर मैगदी ने मुझसे कहा कि वो वहीं रुकेंगे और मैं पिरैमिड देख आऊं।
मैंने आगे बढ़कर देखा तो मालूम पड़ा कि पिरैमिडों तक पहुंचने हेतु एक रेतीली पहाड़ी सी पर ऊपर जाना था और कुछ लोग ऊंट तथा कुछ घोड़ों पर जाते दिखे हांलांकि जहां हमारी गाड़ी रुकी थी उस से थोड़ा आगे बढ़कर वो रेगिस्तानी पहाड़ी शुरू थी। मैं आगे बढ़ते हुए सोचने लगा कि बड़े कमाल की बात है कि विश्व की इतनी प्रसिद्ध जगह देखने को सिर्फ ऊंट या घोड़े पर जाना पड़ता है अन्य कोई साधन यहां से दिख नहीं रहा था लेकिन ये तो सामने दिख ही रहा था कि यहां की व्यवस्था शायद ऐसी ही है। मुझे लगा कि शायद लोगों को एक अलग सी प्राचीन काल की अनुभूति हो इसलिए यहां ऐसी व्यवस्था की हुयी है। खैर मैंने एक ऊंट वाले से बात की, न मैं उसकी भाषा समझा और न वो मेरी लेकिन पैसा एक ऐसी चीज है जिसकी भाषा सब समझ जाते हैं। तो अंततः पैसे कितने देने थे और कितने लेने थे वापिसी तक के ये हम दोनों में तय हो गया और मैं ऊंट पर बैठ गया। मेरे पास एक स्टिल कैमरा था, एक वीडियो कैमरे का बड़ा सा बैग था और पानी की बोतल भी थी। दोनों कैमरे गले से लटके थे। अब जैसे ही ऊंट खड़ा हुआ तो मैं तो जैसे पूरा हिल ही गया, पहले वो अगले घुटनों पर आया तो मैं पीछे झुका फिर उसने अपने पिछले पैर हिलाए और पहले पूरा पिछले पैरों पर खड़ा हुआ तो मैं अब आगे झुक गया और फिर उसने अपने अगले पैर भी पूरे खड़े किए तो मेरी पूरी कसरत हो गयी।
अब जब वो चला तो मुझको बड़ा असहज सा लगा सारी कमर और पेट का बुरा हाल हुआ और मैंने वहां का माहौल देख कर सोचा कि यदि किसी ने मेरा कैमरा छीना तो इस ऊंट पर से तो मैं कुछ कर भी नहीं पाऊंगा इसलिए मैंने ऊंट वाले को रोका और उस ऊंट पर से उतर गया। उतारने को जब वो ऊंट बैठा तो फिर पूरी कसरत हो गयी। अब मैंने एक घोड़े वाले से बात की जो उम्र में लगभग 15-16 वर्ष का ही रहा होगा। उस से भी इशारों से आने जाने का तय हुआ और मैं उसके घोड़े पर बैठ गया। ये घोड़ा था तो अरब देश में ही लेकिन इसकी इतिहास प्रसिद्ध अरबी घोड़ों से कोई रिश्तेदारी नहीं थी अपितु ये गर्धवराज के निकट के वंश का रिश्तेदार प्रतीत हो रहा था। मैंने भी सोचा कि अब अरब देशों के तेल से तेल के घोड़े चलने लगे हैं तो यहां घास खाने वाले अरबी घोड़ों की इसलिए शायद कोई कदर नहीं रही है। खैर तो अब वो तथाकथित घोड़ा धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था और उसके प्रत्येक कदम से मैं पिरैमिडों के नजदीक पहुंच रहा था और रेतीले टीले पर चढ़ते हुए आखिर हम पिरैमिड के सामने पहुंच गए। घोड़े वाले ने मुझको उतार दिया और इशारों में कहा कि जब मुझको वापिस चलना होगा तो वो वहीं पर मिलेगा और स्फिंक्स दिखाते हुए मुझको वापिस कार तक ले चलेगा। जब मैं पिरैमिड के सामने पहुंचा तो मैंने देखा कि सामने एक अच्छी सी सड़क थी और लोगों की गाड़ियां उस सड़क से पिरैमिडों की तरफ आ रही थीं। मुझको मिस्टर मैगदी पर बहुत क्रोध आया कि वो मुझको सीधे रास्ते से क्यों नहीं लाये। ये मामला कुछ ऐसा था कि आपको आगरा में ताजमहल देखना हो तो बजाय इसके कि आप सीधे रास्ते से जाएं आपको यमुना जी के तट पर छोड़ दिया जाए कि उधर से ताजमहल के पास जाओ लेकिन अब मैं इसमें झल्लाने के अतिरिक्त क्या करता। हांलांकि ये भी सत्य है कि यदि मिस्टर मैगदी ने मुझको पहले से बताया होता कि पिरैमिड तक पहुंचने के दो तरीके हैं एक कार से और दूसरा ऊंट या घोड़े से और मैं अपनी मर्जी से घोड़े या ऊंट से आया होता तो मैं ना तो ठगा हुआ महसूस करता और साथ ही enjoy भी खूब करता।
अगले अंक में चर्चा गीजा के पिरैमिडों की चर्चा है और अंदर के माहौल की चर्चा भी...
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।