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दुनिया

तब बहुत खुशी हुई जब फाइनल हुआ कि दोहा कतर में बिकेंगे "Raghav India" ब्रांड से झाड़ फानूस, ऐश ट्रे, आगरा के handicrafts के आइटम

Tripada Dwivedi
25 Sep 2024 9:36 AM GMT
तब बहुत खुशी हुई जब फाइनल हुआ कि दोहा कतर में बिकेंगे Raghav India ब्रांड से झाड़ फानूस, ऐश ट्रे, आगरा के handicrafts के आइटम
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सिंदबाद ट्रैवल्स-9

अब दोपहर हो चली थी तो इस्माइल शेख ने मुझको वापिस होटल छोड़ दिया और कहा कि 4 बजे उनकी कार मय ड्राइवर के मुझको लेने आएगी और उनका एक मैनेजर आएगा जो मुझको और व्यापारियों के पास ले जाएगा और फिर शाम को 7:30 बजे के लगभग हम उनके ऑफिस पहुंचेंगे। होटल आकर मैंने दोपहर का भोजन किया और वहां के प्रचलन के हिसाब से थोड़ा आराम भी किया।

4 बजे उनकी गाड़ी आ गयी और साथ में उनके मैनेजर मिस्टर बालन थे जो केरल से थे।बालन साहब बहुत समय से दोहा में थे और इसी कंपनी में थे। उन्होंने बताया कि यहां के लोग बहुत ईमानदार और सीधी बात करने वाले हैं। उन्होंने बताया कि इस्माइल शेख और इनके पिता जी इब्राहीम शेख दोहा के बहुत बड़े लोगों में हैं और इनका कारोबार बहुत फैला हुआ और अच्छा है। हम लोग 2-3 शो रूम्स पर गए और मिस्टर बालन के साथ होने के कारण सबने बहुत अच्छे से बातचीत और व्यवहार किया किन्तु व्यापार नहीं बना। बालन साहब के साथ घूमने पर मुझको महसूस हुआ कि जैसे उनको दोहा में सभी लोग जानते थे। और हां लगभग हर व्यापारिक प्रतिष्ठान में अरबी मालिक के साथ मुख्य कर्ताधर्ता केरल के ही लोग मिले।शो रूम्स तो मैंने बहुत बड़े-बड़े और अच्छे देख लिए थे लेकिन मन निराश था क्योंकि काम कुछ बना नहीं था और अगले दिन सुबह यहाँ से चल ही देना था। यहां मुझको अपने नरेश मामा की याद आ रही थी। मैं सोच रहा था कि वो तो 1970 के दशक की शुरुआत से ही अरब देशों में खूब काम कर रहे हैं और यहां बहुत तरह का सामान बेचते रहे हैं वो। मैं यही सोच रहा था कि उन्होंने भी न जाने कितनी मेहनत करके कितने चक्कर काट कर यहां माल बेचने में सफलता पाई होगी। मुझको याद आ रहा था नरेश मामा का बातचीत में अक्सर ये कहना कि "I have worked very hard."अब उनके इस वाक्य का असली मतलब और महत्व मैं वास्तविकता में समझ पा रहा था।

7:30 बजते बजते हम लोग इस्माइल शेख के ऑफिस पहुंच गए। अब तक मैं और इस्माइल शेख काफी friendly हो चुके थे। इस्माइल शेख ने मुझको अपने वालिद साहब इब्राहिम शेख से मिलवाया जो उनके प्रतिष्ठान और व्यापार के मुख्य मालिक थे। इस्माइल शेख कद काठी से अच्छे व्यक्तित्व के थे और अरबी ड्रेस में तो उनकी पर्सनैलिटी और शानदार लगती थी लेकिन उनके पिताजी तो बहुत ही लहीम शहीम थे, लगभग 6 फुट लंबे और तगड़े। भारत से दोहा पहुंचते पहुंचते लोगों की शक्लों में भी परिवर्तन आने लगा था। दुबई, आबूधाबी और बहरीन में ये फर्क इतना महसूस नहीं होता था लेकिन दोहा, कतर के लोगों को देख कर आप ये पहचान सकते थे कि शक्लोसूरत कुछ फर्क हैं, कुछ भारी से चेहरे, भरे हुए बदन, चौड़े कंधे और थोड़ा फर्क नाक,नक्श,भवों और आंखों में भी दृष्टिगोचर होता था।

इस्माइल शेख ने मुझको सुस्त देखा तो पूछा कि क्या बात है my friend,दोहा में आपको कोई दिक्कत हुई क्या? तो मैंने कहा कि बात और कुछ नहीं है न कोई दिक्कत हुई बस व्यापार नहीं मिला इसलिए मन थोड़ा उदास है। इस पर उनके पिता इब्राहीम शेख ने उनसे अरबी भाषा में कुछ बात की तो इस्माइल शेख उठे और अलमारी से निकाल कर कुछ कागज़ात उन्होंने मेरे सामने रख दिये। मैंने कहा कि ये क्या है तो वो बोले कि हम भारत से जो सामान मंगाते हैं ये उनकी invoices हैं, आप इस में से जो भी चीज़ सप्लाई करना चाहो वो इन्हीं रेटों पर हमको सप्लाई कर दो। मैंने वो कागज देख कर उनसे कहा कि भाई ये तो सॉस, कैचअप, अचार, जैम चावल आदि चीज़ें हैं और कम से कम अभी तो मैं न इन वस्तुओं में डील करता हूं और ना ही इनके विषय में कुछ जानता हूं सिवाय इनको खाने के। ये सुनकर वो लोग हंसने लगे। फिर इस्माइल शेख ने कहा कि अच्छा अपने सैम्पिल निकालो।मैंने कहा परंतु आप लोग तो इन products में deal नहीं करते हैं इस पर इस्माइल शेख ने कहा अभी तक नहीं करते हैं पर अब करने लगेंगे। "Mizder.Adul you are a friend now and we will not let you go empty handed from Doha" और थोड़ी देर में 2500 USD का ऑर्डर लिखा जा चुका था।इस ऑर्डर में झाड़ फानूस, ऐश ट्रे, flower vases और आगरा के संगे-मर-मर के handicrafts के आइटम थे और वो हमारे ब्रांड "Raghav India" की लिखी हुई पैकिंग में लेना उन्होंने पसंद किया था। मतलब अब अपना सामान अपने brand name के साथ दोहा-कतर में भी बिकेगा ये बात मुझको काफी खुशी दे रही थी।

अगले अंक में शुरू होगी इजिप्ट की यात्रा जिसमें चर्चा होगी वहां के शानदार स्मारकों, पिरैमिड, म्यूज़ियम आदि की...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।

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