यात्रा संस्मरण: यह कहानी उन नौजवान की इच्छाओं और आकांक्षाओं की प्रतीक है जो आगे बढ़कर अपनी हिम्मत से कुछ नया करना चाहते हैं
सिंदबाद ट्रैवल्स-1
आज जब मैं अपने यात्रा संस्मरण आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ तो मुझको अति प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इन संस्मरणों में कहानी है एक नौजवान की जिसने अपने घरेलू व्यापार से इतर हटकर कुछ नया करने का स्वप्न देखा था। यह कहानी है उस कालखंड की जब भारत की अर्थव्यवस्था मुक्त अर्थव्यवस्था के शैशव काल में ही प्रवेश कर रही थी। यह यात्रा संस्मरण भारत के हर उस नौजवान की इच्छाओं और आकांक्षाओं के प्रतीक हैं जो आगे बढ़कर अपनी हिम्मत से कुछ नया करना चाहते हैं।
इन यात्राओं में आप देखेंगे कि एक नया व्यापार- निर्यात व्यापार कैसे शुरू किया गया। उसको शुरू करने में क्या समस्याएं आईं और उनको कैसे हल किया। यह संस्मरण आपको निर्यात व्यापार की बारीकियां भी बताएगा तो साथ में ही मध्य-पूर्व के देशों जैसे दुबई,बहरीन,कतर, अफ्रीकी महाद्वीप के देश मिस्र, अनेकों यूरोपीय देशों जैसे इंग्लैंड,फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, सिंदबाद ट्रैवल्स-1
आज जब मैं अपने यात्रा संस्मरण आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ तो मुझको अति प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इन संस्मरणों में कहानी है एक नौजवान की जिसने अपने घरेलू व्यापार से इतर हटकर कुछ नया करने का स्वप्न देखा था।यह कहानी है उस कालखंड की जब भारत की अर्थव्यवस्था मुक्त अर्थव्यवस्था के शैशव काल में ही प्रवेश कर रही थी।
इन यात्राओं में आप देखेंगे कि एक नया व्यापार- निर्यात व्यापार कैसे शुरू किया गया।उसको शुरू करने में क्या समस्याएं आईं और उनको कैसे हल किया।यह संस्मरण आपको निर्यात व्यापार की बारीकियां भी बताएगा तो साथ में ही मध्य-पूर्व के देशों जैसे दुबई,बहरीन,कतर, अफ्रीकी महाद्वीप के देश मिस्र, अनेकों यूरोपीय देशों जैसे इंग्लैंड,फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, धर्मस्थल वैटिकन के किस्से हैं तो अमेरिका के वर्ल्ड बैंक,व्हाइट हाउस और एटलांटिक सिटी के कैसिनो की चर्चा भी हैं।
मेरे इन संस्मरणों में एक तरफ फ्रैंकफर्ट के उन सरदार जी का किस्सा है जो भारतीयों से कन्नी काटते थे तो दूसरी तरफ स्विट्ज़रलैंड में अतुल भैया-कनक भाभी और वाशिंगटन डीसी में बीनू दादा-दीपा भाभी के द्वारा की गई जबरदस्त मेहमाननवाजी की बातें भी हैं।
इन संस्मरणों में मैंने यह भी बताने की कोशिश की है कि कैसे एक समय था जब न जानकारी थी न संसाधन और ना ही विदेश के लोग हमसे हमारे उत्पाद लेने को तैयार थे और हमसे अपनी दुकान में बैठा कर बात करने को भी तैयार नहीं थे और फिर कैसे समय बदला और हमारे भारत के व्यापारियों ने विदेशों में अपने लिए एक सम्मानजनक स्थान बनाया।एक तरह से यह मेरी,भारत के एक नौजवान के रूप में भारत की विदेश में व्यापार के क्षेत्र में एक स्थान बनाने की,एक सम्मान अर्जित करने की,एक अपनी पहचान बनाने की सफल यात्रा थी और कह सकता हूँ कि यह विदेश में तुम से आप बनने का सफर था।
इन यात्रा संस्मरणों में कहानी है एक ऐसे सफल सपने के हकीकत में बदलने की जो मैंने देखा था कि मेरे शहर,भारत के एक छोटे से शहर जहाँ काँच का काम होता है उसको सारी दुनिया में इस काम के लिए जाना जाए।
मेरा इन संस्मरणों को सबके सामने प्रस्तुत करने का एक उद्देश्य यह भी है कि आज के दौर में जब देश के नौजवान रोजगार के लिए परेशान हैं,वो सरकारी नौकरी या प्राइवेट सेक्टर में नौकरी के लिए भटकते हैं तो इन यात्रा चर्चाओं में उनके लिए यह संदेश भी है कि आप एक सपना देखिए उद्यमी बनने का,हमारे देश में ऐसे सपने सच होते हैं।अपना सपना पूरा करके आप जॉब सीकर के स्थान पर जॉब गिवर बनिये। तो आइए अब करते हैं शुरुआत उस यात्रा की जिसके फलस्वरूप मैं एक एक्सपोर्टर बना और फिरोजाबाद शहर से काँच के काम करने वालों ने सीधे निर्यात करने की शुरुआत करने की ओर अपना पहला कदम बढ़ाया।
यात्रा की शुरुआत दुबई से
जहाज में बैठे बैठे मैं सोच रहा था कि मैं एक बिल्कुल अनजान जगह,अनजान देशों को जा रहा हूँ।वहाँ से व्यापार करना चाह रहा हूँ लेकिन पता नहीं क्या होगा।कुछ माल बिकेगा भी कि यूँ ही खाली हाथ वापिस आना पड़ेगा।जीवन में एक नई राह की खोज में कदम तो बढ़ा दिया था अब अंजाम चाहे कुछ हो लेकिन साथ में ये बात भी मन को हौसला दे रही थी कि हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती और भगवान भी उद्यमी लोगों की मदद करते ही हैं। सन 1987-88 में जब मैं अपनी पढ़ाई करके और UPSC में अपने हाथ आजमा कर अपने घरेलू व्यापार में आया तो कुछ समय मुझको काँच के व्यापार को समझने में लगा।कुछ समय बाद मुझको ऐसा लगने लगा कि मुझको तो कुछ हटके और नया काम करना है और मेरा मन था कि मैं Export के व्यापार को करूं। मेरे शहर फ़िरोज़ाबाद में तब तक export का कोई व्यापार नहीं होता था।सिर्फ एक व्यक्ति थे कृष्णा बीड्स वाले वो जरूर मोतियों के export का कारोबार करते थे किंतु उस व्यापार का मूलतः फ़िरोज़ाबाद से कुछ सीधा लेना देना नहीं था।मेरे दो मामा जी लोग निर्यात के व्यापार से जुड़े थे और इसलिए मैं बस इतना जानता था कि एक्सपोर्ट का व्यापार होता है लेकिन फ़िरोज़ाबाद से एक्सपोर्ट क्या कर सकता हूँ ये पता नहीं था।
खैर,जब ये तय हो गया कि अब तो एक्सपोर्ट के व्यापार को शुरू करना है तो उसकी तैयारी शुरू हुई।मेरे माता,पिता,पत्नी और सभी घरवालों और अन्य सभी लोगों ने मेरा खूब उत्साहवर्धन किया और तैयारी में साथ भी दिया।
सबसे पहले मैंने फ़िरोज़ाबाद में इम्पीरियल ग्लास वालों से झाड़ फानूस (Chandeliers) के फोटो और उनकी कीमतें लीं।इम्पीरियल ग्लास के मालिक स्व0 राजेन्द्र गुप्ता जी मेरे पिताजी के घनिष्ट लोगों में थे।यामेरी तैयारी में उन लोगों ने बहुत सहयोग किया।फिर एक बीड्स के काम वालों से बीड्स के सैम्पिल और कीमतें लीं।उसके बाद आगरा के एक परिचित सदर बाजार वाले मुगल बुटीक के संगीत भाई से और क्राफ्ट्स पैलेस,आगरा वाले श्री नवीन जैन से संगमरमर और सोप स्टोन के handicrafts के सैम्पिल और कीमतें लीं, अलीगढ़ से पीतल की ढलाई के handicrafts के सैम्पिल और उनकी कीमतें लीं, फर्रुक्खाबाद से सिल्क के स्कार्फ और उनकी कीमतें लीं।बाद में इन सब चीजों का कैटलॉग बनाया।
एक्सपोर्ट के लिए फर्म बनाई जा चुकी थी।फ़िरोज़ाबाद से झाड़ फानूस के अलावा कुछ और एक्सपोर्ट कर सकते हैं ये समझ में था नहीं तो दूसरी कई जगहों से काफी सैम्पिल इकट्ठे किये जा चुके थे।
उस जमाने में नए आदमी के लिए विदेश जाने हेतु विदेशी मुद्रा का इंतज़ाम एक बहुत ही कठिन काम था।हमारी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण का दौर अभी शुरू होने को था और रिज़र्व बैंक के नियम और सोच बहुत ही कड़े और conservative किस्म के थे।जब मुझको लगा कि इसमें तो बहुत दिक्कत आ रही है तो मैंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के अपने हॉस्टल सर गंगानाथ झा छात्रावास के मेरे सीनियर रहे श्री के0के0तिवारी सर से मदद मांगी।श्री तिवारी सर उस समय कानपुर में आयकर विभाग में सहायक आयुक्त के पद पर थे।उन्होंने मुझको सही तरीके से गाइड किया और रिज़र्व बैंक में भी संबंधित अधिकारी से बात करके मेरी सहायता की और अंततः मुझको मेरी जरूरत भर की विदेशी मुद्रा मिल गयी।
अब बात ये तय करने की थी कि किस किस देश को जाना है तो इसमें मेरी मदद की फ़िरोज़ाबाद के ही मेरे बड़े भाई समान श्री अखिल चतुर्वेदी जी ने जिनका कि दिल्ली में travel & tours का व्यापार था।उन्होंने मेरी itinerary बनवाई दिल्ली से दुबई, आबूधाबी, दोहा(कतर),बहरीन, काहिरा (Egypt), लंदन(इंग्लैंड), जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड), पैरिस(फ्रांस) एवं फ्रैंकफर्ट (जर्मनी) से रोम (इटली) और फिर वापिस दिल्ली। करीब 5-6 सप्ताह का टूर बना था।अखिल भाईसाहब की गाइडेंस और मदद से सभी देशों के वीसा भी आराम से हो गए। दुबई का वीसा हमारे गुरूजी स्व0 डा0वासुदेव कृष्ण चतुर्वेदी जी जो मथुरा में रहते थे, उनके पुत्र श्री हरदेव कृष्ण जी के साले श्री शरद चतुर्वेदी जी दुबई में थे उन्होंने कराया।कतर का वीसा एक संभावित व्यापारी ने दिया जिसका संपर्क मुझको सुभाष मामा से मिला था,बहरीन का वीसा मेरे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के ही सीनियर और बड़े भाई के समान श्री रतन कपूर जी ने करवाया जो उस समय बहरीन में ही रहते थे।
अब सैम्पिल तैयार थे,पासपोर्ट था,वीसा, टिकट और पैसे भी थे मतलब लंबे सफर के लिए ये यात्री तैयार था। सन 1991 के सितंबर महीने के आखिरी सप्ताह में यात्रा का दिन भी आ गया।मेरी फ्लाइट दिल्ली से दोहा (कतर) और वहाँ से प्लेन चेंज करके दोहा से दुबई की थी।कुछ इत्तेफाक ऐसा था कि जिस एयरलाइंस से मैं जा रहा था वो उस दिन दिल्ली से दुबई via दोहा ही जाती थी,खैर फिर वो समय भी आ गया।एयरपोर्ट पहुँच कर सभी घर वालों से विदा ली तो मन अजीब सा हो चला क्योंकि वो मेरी पहली विदेश यात्रा थी।घर से सभी लोग हवाई अड्डे पर विदा करने आये थे। एक तरफ सबको छोड़ कर अकेले जाने के कारण मन कुछ अजीब सा हो रहा था तो दूसरी ओर पहली बार विदेश जाने और वो भी व्यापार शुरू करने के लिए जाने का उत्साह भी था। चैक-इन,इम्मीग्रेशन और सिक्योरिटी चैक के बाद बोर्डिंग और फिर जहाज उड़ चला अपने गंतव्य की ओर।
इन संस्मरणों के अगले भाग में आपको बताऊंगा दुबई के शरद भाईसाहब की खातिर और दुबई के व्यापारियों से अपने व्यापार के प्रयासों के विषय में...
(लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी...)