यात्रा संस्मरण: इस्माइल शेख का बेब्सी पिलाना, खातिरदारी और दोहा के भव्य शोरूम अदभुत थे
सिंदबाद ट्रैवल्स-8
दोहा-कतर
इस्माइल शेख यानी कि जिन्होंने मेरा दोहा का वीसा करवाया था वो अपनी बहुत बड़ी सी गाड़ी में मुझको साथ लेकर सीधे दोहा शेरेटन होटल की तरफ चल पड़े जहां उन्होंने मेरे ठहरने की व्यवस्था की थी। रास्ते में वो मुझसे मेरे व्यापार और products के विषय में बात करते रहे। उन्होंने ये भी बताया कि उनका व्यापार मूलतः खाने पीने की चीज़ों जैसे मसाले, गरम मसाले, केचअप सॉस, अचार आदि किस्म की चीज़ों का है और दुबई सहित कई अरब देशों में उनके ऑफिस हैं। आगे बातचीत में उन्होंने मुझको बताया कि दोहा के शेख/अमीर/राजा ने ये होटल बनवाया है और दाम भी ज्यादा नहीं रखे हैं ताकि लोग बिना किसी दिक्कत के रुक सकें। उस समय उस होटल का रेट 40 USD प्रतिदिन था और डॉलर लगभग 28 या 30 रुपये का था। इस्माइल शेख लगभग मेरी उम्र के अर्थात लगभग 28-29 वर्ष के रौबीले लेकिन शालीन व्यक्तित्व के मालिक थे। उन्होंने कहा अब मैं जा रहा हूँ, आप आज आराम करिये कल सुबह 8:30 बजे मैं आपको ले चलूंगा।
इस्माइल शेख के जाने के बाद मैंने अपने कमरे में जाकर सबसे पहले तो चाय पी और फिर कमरे की विंडो से ही दोहा का नज़ारा देखा। कमरा काफी ऊपर की मंज़िल पर था तो उस से नीचे के स्विमिंग पूल को देखा जो शायद 5वीं या और ऊपर की मंज़िल पर था (इतना समय हो जाने के कारण ठीक ठीक याद नहीं) जो कि बहुत ही सुंदर था। दोहा में चारों तरफ बिल्डिंग तो दिखीं लेकिन बहुत congested नहीं प्रतीत हुआ बल्कि थोड़ा दूर देखने पर खाली खाली सा ही लगा। रात हो चली थी सो अगले दिन के विषय में सोचते हुए न जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
सुबह मेरी नींद नई जगह के excitement में जल्दी ही खुल गयी और 8:30 बजे तक मैं स्नान ध्यान और ब्रेकफास्ट करके तैयार था और तभी इस्माइल शेख भी आ गए। उनके साथ अपने सैम्पिल लेकर मैं चल पड़ा।
पहले हम लोग एक व्यापारी के ऑफिस गए, इस्माइल शेख ने उनसे बात करके मेरा परिचय कराया और फिर मैंने उनको कुछ सैम्पिल दिखाए। उन्होंने बीड्स के सैम्पिल देखे लेकिन वो लोग ग्लास बीड्स जापान से मंगाते थे और हमारी क्वालिटी उस स्तर की नहीं थी तो बात नहीं बनी।
अब हम लोग वहां से निकले तो इस्माइल शेख मुझको एक रेस्टोरेंट में ले गए और बोले कुछ खा लीजिए। हम लोगों ने कुछ सैंडविच आदि खाया और इस्माइल शेख ने कहा बेब्सी भी ले लीजिए तो पहले तो मैं समझा नहीं पर दरअसल वो पेप्सी पीने को कह रहे थे। बाद में मालूम पड़ा कि अधिकतर अरबी लोग पेप्सी को बेब्सी ही कहते हैं क्योंकि उनकी भाषा में इसका उच्चारण बेब्सी ही है, जैसे रमज़ान का रमदान। मैंने ये भी नोट किया कि अरबी लोगों का बोलने का तरीका हम लोगों से कुछ अलग है और बोलने में वे लोग गले का उपयोग अधिक करते हैं।
अब हम लोग एक और शो रूम में पहुंचे। शो रूम में घुसते ही मेरी आंखें चौंधिया सी गयीं। शो रूम था कि पूरा शहर था, कम से कम 25 से 30 हजार वर्ग फुट में बना हुआ और वो भी 2 या तीन मंज़िल का शो रूम था। उसकी सीलिंग कम से कम 25 फिट की थी। उसमें जो chandeliers लगे थे ऐसे मैंने अपने जीवन में और फिल्मों तक में नहीं देखे थे। बीचों बीच पानी के जहाज की शेप का एक chandelier जो टँगा था वो बहुत ही विशाल था और उसका मेटल फ्रेम इतनी गजब की गोल्ड प्लेटिंग का था कि चारों तरफ चमकते सोने और उसमें बीच में क्रिस्टल के नगीनों की लड़ी और उसमें से चमकती हुई लाइट्स एक बहुत ही majestic किस्म का नज़ारा प्रस्तुत कर रहीं थीं और वो भी इतना आकर्षक कि निगाह हटाये न हटे और कीमत का तो पूछना ही क्या हम लोगों की सोच के भी बाहर की थी। उस जहाज के इर्द गिर्द बहुत से अन्य छोटे - छोटे झाड़ फानूस भी टँगे थे। यहां छोटे से मेरा तात्पर्य 10-12 फुट के डायमीटर से है। कोई फूल की शेप का तो कोई कार की शेप का तो कोई पुराने टाइप के झूमरों की शेप का लेकिन सब एक से एक आलीशान और सोने की चमक से दमकते हुए। उसी शोरूम में ऊपर के फ्लोर पर उन्होंने कई फर्निश्ड model बेड रूम्स और ड्राइंगरूम्स भी बना रखे थे उनमें ऐसा फर्नीचर और पलंग आदि पड़े थे जो मुझको यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि मैंने तो तब तक इतनी आलीशान चीज़ें अपने देश में कहीं देखी नहीं थीं। दरअसल तब तक भारत में economy open न होने के कारण विदेशी सामान जिसमें झाड़ फानूस भी शामिल है इतनी आसानी से हर जगह मिलते/बिकते/दिखते नहीं थे। मेरा कहने का मतलब ये है कि अपने देश में हो सकता है इस किस्म के झाड़ फानूस आदि कहीं रहे भी हों तो भी मैंने कहीं नहीं देखे थे। मेरी समझ में ये भी आ गया कि यहाँ मेरा तो कोई आइटम इस शो रूम के स्तर का है ही नहीं तो ये मुझसे क्यों खरीदेंगे।
अगले अंक में चर्चा है कि दोहा में कोई ऑर्डर मिला क्या?
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।