सिंदबाद ट्रैवल्स-30
इंग्लैंड-लंदन
अपना सामान लादे मैं यूथ हॉस्टल पहुंच गया था। ये एक पुरानी संभवतः महारानी विक्टोरिया के काल की बिल्डिंग थी। उसमें काउंटर पर पहुंच कर मैंने अपना नाम बताया और मेम्बरशिप कार्ड दिखाया तो उन्होंने कहा हां आपकी बुकिंग है और मुझको मेरे कमरे का बता दिया। ये एक डॉरमेट्रीनुमा कमरा था जिसमें लकड़ी के बहुत अच्छे कई बंक बैड पड़े हुए थे, उनमें से ही एक मुझे अलॉट हुआ था और जो बैड मुझको मिला था वो बंक बैड में नीचे वाला बैड था। उसके सिरहाने ही लकड़ी की एक छोटी सी अलमारी थी उसमें आप अपना कुछ सामान रख सकते थे और चाहें तो ताला भी लगा सकते थे। यूथ हॉस्टल में बाथरूम और टॉयलेट कॉमन थे किंतु चूंकि उस समय मुझको अपना यूनिवर्सिटी का हॉस्टल छोड़े बहुत समय नहीं हुआ था इसलिए इस बात से मुझको कोई समस्या नहीं थी हांलांकि आज के समय में ये मेरे लिए एक समस्या अवश्य होती। हॉस्टल में फर्श पर कार्पेट पड़ा हुआ था जिस से स्थान सुंदर प्रतीत होता था। हॉस्टल में पहुंच कर मैंने हाथ मुंह धोया और फिर अपने बैड पर बैठ कर अपना बैग खोला। मेरे साथ घर के बने मीठे शकरपाड़े और मठरी थे सो उनको खाया, कोका कोला पीया और स्वेटर, सूट, ओवरकोट और हां पैर में स्पोर्ट्स शूज पहन कर तैयार होकर हॉस्टल से निकल पड़ा। अभी तक अधिकतर मैं पैर में दुबई से खरीदे रीबॉक के स्पोर्ट्स शूज ही पहन रहा था क्योंकि अधिक पैदल चलने पर चमड़े के जूतों के मुकाबले यही आरामदेह लगते थे हांलांकि इन स्पोर्ट्स शूज को लेकर बाद में चलकर जर्मनी में एक ऐसा किस्सा हुआ जिसके कारण मुझको अपनी ये आदत बदलनी पड़ी थी लेकिन वो किस्सा बाद में कभी बताऊंगा। हॉस्टल के दरवाजे पर एक रैक में लंदन के नक्शे और अंडरग्राउंड ट्रेन के रूट के नक्शे रखे थे तो वहां से मैंने वो Maps ले लिए। विदेशों में खास तौर से यूरोप में शहर के maps का बड़ा अच्छा सिस्टम है और शहर या देश में कहीं भी आने जाने में इनसे बड़ी मदद मिलती है इसलिए कहीं भी पहुंचते ही ये नक्शा ले लेना चाहिए, ये बहुत उपयोगी चीज है। अपने देश में न तो इसका रिवाज है और ना ही व्यवस्था अलबत्ता अब गूगल मैप आदि से ये समस्या काफी हल हो चुकी है।
जब मैं हॉस्टल से निकला तो पास से ही सबसे पहले मैंने टेलीफोन का कार्ड लिया और पास के टेलीफोन बूथ से सबसे पहले घर फोन करके अपने ठहरने के स्थान आदि की जानकारी दी। हिंदुस्तान से चलते वक्त मेरे पास विभिन्न जगहों से जुटाए हुए कुछ विदेशी व्यापारियों के संपर्क थे। उनमें से लंदन के कुछ नंबरों पर मैंने फोन मिलाया तो एक नंबर पर फोन उठा। वो कोई क्रिश्चियन या अरबीनुमा नाम वाले कोई सज्जन थे उन्होंने मुझको अगले दिन का सुबह 11 बजे के लगभग का मिलने का समय दिया। फिर एक और नंबर पर बात हुई वो अंग्रेज से लगे उन्होंने मुझको दो दिन बाद का मिलने का समय दिया। मतलब दो appointment हो गए थे। मैंने सोचा कि अब कुछ लंदन देखने का कार्यक्रम भी कर लिया जाए।
अगले अंक में लंदन में पहला दिन...
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।