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लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आने जाने की स्वतंत्रता का सही महत्व तभी समझ में आता है जब आपके साथ दूसरे देश में ऐसा कोई पीड़ादायी अनुभव होता है
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सिंदबाद ट्रैवल्स-19
इजिप्ट-काहिरा
मिस्र देश का शहीद स्मारक
तो अब हम लोग उसी शानदार गाड़ी में बैठ कर फिर चल दिये थे काहिरा की सचमुच की बेहतरीन सड़कों पर। मौसम गर्म सा ही था इसलिए मैं आधी बांह की शर्ट पहने था हांलांकि मिस्टर मैगदी और गाड़ी का ड्राइवर दोनों ही पूरी आस्तीन की शर्ट पहने हुए थे। मैं काहिरा की सड़कों पर चारों तरफ देख रहा था कुछ पुरानी इमारतें थीं तो काफी नयी भी दिख रही थीं। मैं काहिरा की सड़कों के दृश्य एक विशुद्ध सैलानी की भांति अपने वीडियो कैमरे में कैद करता चल रहा था कि थोड़ी देर में ही गाड़ी के ड्राइवर ने अरबी में कुछ कहते हुए मेरी तरफ कुछ मना करने का इशारा किया जो मैं समझ नहीं पाया। मेरे पूछने पर मिस्टर मैगदी ने कहा कि आप ऐसे सड़कों पर वीडियो से फोटो मत खींचो। ये ड्राइवर कह रहा है कि पुलिस ने देख लिया तो आपका कैमरा ले लिया जाएगा और हम लोग भी परेशानी में होंगे। मैंने कहा कि भाई मैं तो टूरिस्ट हूं और सामान्य जगहों की फोटो ले रहा हूं लेकिन वो दोनों माने नहीं और उनलोगों ने मेरा कैमरा बन्द करके रखवा दिया। मुझको बहुत बुरा लगा और गुस्सा भी बहुत आयी लेकिन साथ ही मैं ये सोचने पर मजबूर था कि इसका मतलब ये हुआ कि इस देश का आम आदमी पुलिस और सरकार के भय के साये में जी रहा है। उसके मन में प्रताड़ित होने का भय और आतंक इतना अधिक होगा कि उसने मेरा कैमरा बन्द करके रखवा दिया और ये सब बहुत अजीब इसलिए भी था कि वहां न तो कहीं फोटो लेने की मनाही का कोई बोर्ड लगा था और न वो कोई sensitive area ही लग रहा था बल्कि वो तो एक सामान्य रास्ता था जिस पर लोग आ जा रहे थे। फिर मैंने सोचा कि मेरी ये मानसिक तकलीफ तो थोड़े समय की है परंतु ये लोग तो बिचारे अपना सारा जीवन ही इस भय के साथ काटने को मजबूर हैं। इस समय मुझको एक बार फिर ये गर्व महसूस हुआ कि हम उस देश के वासी हैं जहां सच्चा लोकतंत्र है और सरकार का जनता में ऐसा कोई भय नहीं है। लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आने जाने की स्वतंत्रता का सही महत्व तभी समझ में आता है जब आपके साथ दूसरे देश में ऐसा कोई पीड़ादायी अनुभव होता है।
गाड़ी कुछ ही आगे चली होगी कि हिचकोले ले कर रुक गयी। ड्राइवर ने उतर कर कुछ देखा और फिर मिस्टर मैगदी से कुछ कहा। मिस्टर मैगदी ने मुझको भी गाड़ी से उतरने का इशारा किया और फिर बोले “we will have to push the car for a while.” मेरा पारा तो सातवें आसमान पर था लेकिन मरता क्या न करता, मिस्टर मैगदी के अनुसार वहाँ दूसरी गाड़ी/टैक्सी मिलना संभव नहीं था इसलिए इस गाड़ी से ही काम चलाना था। तो फिरोजाबाद से जो अतुल चतुर्वेदी साहब बन कर exporter बनने निकले थे वो अब काहिरा की सड़क पर मिस्टर मैगदी के साथ कार में धक्का लगा रहे थे।
खैर ईश्वर मेहरबान थे और जल्द ही गाड़ी स्टार्ट हो गयी और हम लोग चल दिये अपने अगले पड़ाव की ओर।
कुछ किलोमीटर चल कर हम लोग एक खूबसूरत सी जगह पहुंचे वहां मुझे एक पिरैमिड की नकल की हुई नुमा कुछ अत्यन्त सुंदर structure सी चीज दिखी जो कुछ जानी पहचानी सी लगी। मैं गाड़ी से उतरते हुए उसी को देख रहा था कि मिस्टर मैगदी ने मुझसे मुस्कुराते हुए बहुत रहस्यात्मक स्टाइल में पूछा, आपको मालूम है कि ये क्या जगह है?” मेरे मुंह से भी जवाब बिल्कुल spontaneous तरीके से निकला कि, “लगता है ये वो जगह है जहां आपके/इजिप्ट के प्रेसीडेंट अनवर सादात की हत्या हुयी थी।
मिस्टर मैगदी तो मानो ऐसे चौंक गए जैसे मैंने कौन बनेगा करोड़पति के 1 करोड़ के सवाल का जवाब दे दिया था। बोले आपको कैसे पता? क्या आप पहले यहां कभी आये हैं? मैं जवाब में बस मुस्कुराता रहा, मिस्टर मैगदी को उलझन में देख मुझको बहुत खुशी हो रही थी। बात असलियत में ऐसी थी कि मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात की हत्या का वो दृश्य भारत में मैंने या तो दूरदर्शन न्यूज़ अथवा हमलोगों के यहां उस समय में फिल्म शुरू होने के पहले सिनेमाघरों में जो डाक्यूमेंट्री दिखाई जाती थी उसमें कभी देखा था और वह दृश्य मेरी स्मृति में था इसलिए मैं तुरंत उस स्थान को पहचान गया था।
अनवर सादात मिस्र के तीसरे राष्ट्रपति थे। 1973 के इस्राइल के साथ मिस्र के युद्ध में मिस्र ने इस्राइल से सिनाई का क्षेत्र वापिस छीन लिया था उसके बाद वो मिस्र में हीरो बन गए थे। इन्हीं राष्ट्रपति अनवर सादात ने 1977 में इस्राइल के साथ ऐतिहासिक “कैंप डेविड”शांति समझौता किया था जिसके बाद अनवर सादात और इस्राइल के प्रधान मंत्री मैनाखेम बेगिन को “नोबेल शांति पुरस्कार” मिला था। अनवर सादात नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले पहले मुसलमान व्यक्ति थे।
1973 के युद्ध के अज्ञात/अनाम शहीदों की याद में काहिरा के नासिर सिटी में पिरैमिड की शेप का यह शहीद स्मारक प्रेसीडेंट अनवर सादात ने बनवाया था और विधि का विधान देखिए कि एक सैन्य परेड के दौरान अक्टूबर 1981 में प्रेसीडेंट अनवर सादात की हत्या भी उसी स्थान पर हुई और उनका भी स्मारक वहीं बना जहां उन्होंने खुद शहीदों का स्मारक बनवाया था और जो हम लोग देख रहे थे। स्मारक बनवाते समय अनवर सादात को क्या पता था कि दरअसल ये स्मारक ही उनका भी स्मारक होगा ऐसा समय ने निश्चित कर रखा है।
ये स्मारक एक hollow pyramid की शेप का बना हुआ था और काफी सुंदर था। वहां एक पत्थर पर सब लिखा हुआ भी था और हरियाली भी थी। सबसे बड़ी बात ये थी कि मिस्र के आधुनिक इतिहास की ये एक महत्वपूर्ण जगह थी। वहां पर ड्यूटी पर मौजूद सिपाहियों/सैनिकों से मैंने हाथ मिलाया और बातचीत भी की और अब आश्चर्यचकित होने की मेरी बारी थी। ये सैनिक अंग्रेजी ना के बराबर जानते थे और हिंदी जानने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन उन्होंने बताया कि उनको अमिताभ बच्चन और श्री देवी बहुत पसंद थे और केवल उन्हीं को नहीं बल्कि इजिप्ट के बहुत से लोगों को अमिताभ बच्चन और श्री देवी बहुत पसंद थे और लोग इन दोनों की फिल्में बड़े उत्साह और चाव से देखते थे। मिस्टर मैगदी ने बताया कि उनको और उस टैक्सी के ड्राइवर को भी हिंदी फिल्में बहुत पसंद हैं और हिंदी सिनेमा के कई अभिनेता और अभिनेत्री यहां पसंद किये जाते हैं और अमिताभ बच्चन और श्री देवी तो पूरे मिस्र में बहुत ही अधिक popular हैं।जब मिस्टर मैगदी ने बताया कि वो भी अमिताभ बच्चन और श्री देवी के बड़े फैन हैं तो मैंने मन ही मन मिस्टर मैगदी के अभी तक के सारे गुनाह और हरकतों को माफ कर दिया।
अगले अंक में चर्चा है काहिरा के मृतकों के शहर city of dead और प्रसिद्ध इजिप्शियन म्यूज़ियम की...
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।