काहिरा का प्रसिद्ध इजिप्शियन म्यूज़ियम, वहां के प्रसिद्ध फराओ लोगों के अकूत खजाने और 4 हजार साल पुराने गुलाब के फूलों की पत्तियां
सिंदबाद ट्रैवल्स-21
हां तो मैं बता रहा था कि मिस्र के संग्रहालय में पहुंचते ही मैं तो मंत्रमुग्ध सा हो गया। नीचे घुसते ही एक बहुत बड़े हॉल जैसे ही मैं घुसा तो उसमें बहुत ही बड़ी बड़ी विशाल मूर्तियों से मेरा सामना हुआ। कुछ मूर्ति तो इतनी विशाल थीं कि यदि सिर पर टोपी लगी हो और मूर्ति का सिर देखने को आप अपना मुंह ऊपर की ओर करें तो सिर की टोपी ही गिर जाए।
ये मिस्र के 3 से 4 हजार वर्ष पुराने फराओ अर्थात सम्राटों/शासकों की मूर्तियां थीं। अधिकांश मूर्तियां पत्थर की थीं ऐसा गाइड ने मुझको बताया और ये मिस्र के अलग अलग समय के विभिन्न वंशों शासकों की मूर्तियां थीं। विशाल मूर्तियों के अतिरिक्त सिक्के, छोटी और मध्यम साइज की मूर्तियां, बहुत सी तरह के पपीरोज और न जाने कितनी प्राचीन किस्म की वस्तुएं थीं। गाइड ने मुझको ये भी बताया कि इस संग्रहालय में एक लाख से अधिक प्राचीन वस्तुएं संग्रहीत हैं। इस ग्राउंड फ्लोर पर कुछ स्थान/मूर्तियां ऐसे भी थे जहां फोटो/वीडियो खींचना मना था या संभव नहीं था किंतु Tip लेकर वहां के सुरक्षा कर्मी ये काम खूब करवाते दिखे। इस प्रकार की मूर्तियां और अन्य कलात्मक वस्तुओं को देख कर मैं यही सोच रहा था कि आज से लगभग 4500-5000 वर्ष पहले भी मिस्र की सभ्यता कितनी विकसित रही होगी। म्यूजियम में प्राचीन फराओ के समय के, ग्रीक समय के,रोमन राज्य काल और बाद के काल की भी वस्तुएं थीं।
काफी देर तक नीचे के परिसर में घूमने के पश्चात मैं ऊपर की ओर बढ़ा। म्यूज़ियम की पहली मंजिल पर पहुंचते ही मुझको एक क्षण को तो ये विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं इसी दुनिया में हूं या किस्से कहानियों और चमत्कारों की दुनियां में पहुंच गया हूं। संग्रहालय के इस तल पर मिस्र के महान फराओ/सम्राटों के पिरेमिडों/मकबरों से निकले सामान/खजाने मेरे सामने थे।
मिस्र के प्रसिद्ध फराओ जैसे हतशेपसुत, अमेनोफिस आदि के अकूत संपत्ति के खजाने यानी कि उनके पिरेमिडों से निकली वस्तुएं सामने थीं। उस जमाने के फर्नीचर, दैनिक उपयोग की चीजे आदि भी सामने प्रदर्शित थीं।
यहीं पर एक अलग कक्ष था मिस्र के इतिहास के प्रसिद्ध और रहस्यमय फराओ तुत अन खामुन के पिरैमिड से निकली वस्तुएं। तूतनखामन मिस्र के बहुचर्चित सम्राटों में थे। कहा जाता है कि केवल 9 वर्ष की उम्र में वो फराओ बने और एक मान्यता के अनुसार 19 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी थी। माना जाता है कि तूतनखामुन के पिता का नाम अखनातेन और मां संभवतः प्रसिद्ध रानी नेफरीतीती थीं जो रिश्ते में फराओ अखनातेन की बहिन भी लगती थीं। मिस्र में फराओ काल में राजपरिवारों में भाई बहिन की आपस में शादी का रिवाज भी था। यद्यपि फराओ ईश्वर के अवतार माने जाते थे किंतु मुझको भारतीय पुराणों का वो किस्सा याद आ रहा था जब सूर्य की पुत्री यमी ने अपने सहोदर यम से प्रणय निवेदन किया था किंतु यम ने इस निवेदन को अनैतिक बताते हुए अस्वीकार कर दिया था जबकि यहां भी राजा सूर्य के ही अवतार थे किंतु यहां भाई-बहिन की शादी में अनैतिकता का कोई पहलू नहीं था अपितु उसका रिवाज ही था।
सम्राट तूतनखामुन की ममी तीन स्वर्ण मुखौटों के पीछे थी और वो स्वर्ण के ही तीन ताबूतों में रखी थी। फराओ तुत अंख आमुन या तूतनखामुन की ममी पर लगे शुद्ध ठोस स्वर्ण के मुखौटे का वजन मात्र 11 किलो था, जी हां केवल ग्यारह किलो!!! ये सारी और ऐसी बहुत सी चीजे वहां प्रदर्शित थीं। पूरा सोने का बना कमरा और कमरे के अंदर के छोटे कमरे जैसा भी कुछ लगा, सम्राट का शुद्ध सोने का पलंग, कुर्सी, मेज और सभी पूरा खालिस सोने का और उन पर क्या लाजवाब पच्चीकारी जैसा काम था, फराओ और उनकी साम्राज्ञीयों के पहनने के शुद्ध सोने के जूते, सोने की ही चप्पल, सैंडिल, स्वर्ण और हाथीदांत के अनेकों आभूषण, फर्नीचर और जो एक बहुत खास चीज थी वो थीं गुलाब के फूलों की काली सी पड़ गईं पत्तियां जो फराओ की ही एक रॉकिंग चेयर के सामने जमीन पर रखी थीं। बताया गया कि ये फूलों की पत्तियां भी उसी जमाने की थीं और उनके शव पर शायद चढ़ाई गयी थीं यानी कि लगभग 3500-4000 वर्ष पुरानी यद्यपि ऐसा प्रतीत होता था कि ये पत्तियां/गुलाब के फूल मानो अभी दो चार दिन पहले ही चढ़ाए गए हों, ये अविश्वसनीय सा था लेकिन प्रत्यक्ष था। वहां इतना सोने का सामान चारों तरफ प्रदर्शित था कि मैं ये सोचने को मजबूर था कि प्राचीन काल में ‘सोने की चिड़िया’ तो मिस्र नहीं बल्कि भारत कहलाता था तो जब मिस्र में सोने के इतने अम्बार थे तो हमारे भारत में कितना सोना रहा होगा।
अगले अंक में चर्चा है मिस्र की प्रसिद्ध ममियों की...
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।