काहिरा में अल-अज़हर यूनिवर्सिटी के बोर्ड को देख कर एक अंदरूनी खुशी सी महसूस हुई, मुझे मौलाना आज़ाद याद आ गए
सिंदबाद ट्रैवल्स-12
ये टैक्सी ऐसी नहीं थी जिसमें खाली हम लोग ही बैठे हों अपितु ये कुछ कुछ अपने यहां जैसी स्कॉर्पियो आदि गाड़ी हैं या पहले जैसी क्वालिस आती थी कुछ इस किस्म की थी लेकिन इसका दरवाजा आगे से पीछे स्लाइडिंग जैसा था जैसा अपने यहां की मारुति वैन के एक मॉडल में होता था और काहिरा की टैक्सी का ये स्लाइडिंग दरवाजा चलते में खुला ही रहता था। ये गाड़ी रास्ते भर सवारी बैठाती और उतारती चलती थी। जब हम लोग काहिरा शहर पहुंचे तो मैंने पाया कि यहां की सड़कें बहुत अच्छी थीं और उस समय तक हमारे देश में सड़कें इतनी अच्छी नहीं थीं। दुबई, आबूधाबी, बहरीन और दोहा की भांति यहां भी गाड़ियां सड़क के दाहिनी ओर चलती थीं यानी कि left hand drive था लेकिन एक फर्क ये था कि दुबई, आबूधाबी, बहरीन और दोहा में दुनिया की एकदम latest और खूब चमचमाती हुई बड़ी बड़ी cars चारों तरफ दिखतीं थीं, हमारे भारत में भी मारुति और कॉंटेसा अपना जलवा कायम कर चुकी थीं उसके विपरीत यहां गाड़ियां विदेशी यानी यूरोपीय तो जरूर थीं लेकिन models latest ज्यादा नहीं दिखते थे। खैर अपनी टैक्सी में बैठे हम लोग एक फ्लाईओवर पर चढ़े और मैं ये देख कर दंग रह गया कि ये कितना विशाल फ्लाईओवर था और इस पर एक ही पुल से आप कई दिशाओं में उतर सकते थे। उस समय तक हमारे हिंदुस्तान में ऐसे फ्लाईओवर बनना शुरू नहीं हुआ था और लौट कर मैंने देखा तो मुझको बहुत खुशी हुई कि हमारी दिल्ली में भी लाल किले से दिल्ली विश्वविद्यालय जाने पर एक फ्लाईओवर शाहदरा जाने को ऐसा बना था जिसकी कई भुजाएं थीं (और इस फ्लाईओवर का नाम युधिष्ठर ब्रिज रखा गया था)। जब हमारी गाड़ी काहिरा में फ्लाईओवर से उतर के उसके नीचे सड़क पर आई तो मुझको लगा कि मेरी पीठ पर दाहिने कंधे की तरफ किसी ने बहुत जोर से कुछ मारा या खींचने की कोशिश की। मैं टैक्सी में दाहिनी तरफ सबसे आगे से पीछे वाली सीट पर सबसे किनारे बैठा था और जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि गाड़ी का स्लाइडिंग डोर था और खुला था। मुझको लगा कि किसी ने मेरे कंधे से मेरा वीडियो कैमरा छीनने की कोशिश की है एक क्षण को तो मैं कुछ घबरा सा गया लेकिन मिस्टर मैगदी ने हंसते हुए मुझको दिखाया कि पुल के ऊपर से कुछ बच्चे नीचे लोगों को पानी भरे गुब्बारे मार रहे थे और हंस रहे थे और ऐसा ही एक गुब्बारा मेरी पीठ पर भी लगा था। ये देख कर मुझको सहसा अपने देश की याद आ गयी और मैंने राहत की सांस ली।
काहिरा की लोगों से भरी सड़कों पर से गुजरते हुए मैं मंत्रमुग्ध सा चारों ओर देख रहा था। रास्ता बताने वाले एक बोर्ड पर मैंने अल-अज़हर यूनिवर्सिटी लिखा देखा। इस विश्व प्रसिद्ध अल अज़हर यूनिवर्सिटी की स्थापना सन 970 के आस पास, यानी अबसे लगभग 1000 वर्ष पूर्व, हुयी थी और ये विश्व के प्रसिद्ध शिक्षा संस्थानों में अपना स्थान रखती है। अल अज़हर यूनिवर्सिटी विश्व में इस्लामिक शिक्षा के प्रमुख केंद्रों में से एक है। इस विश्वविद्यालय की तरफ जाने वाला road sign देख कर मुझे मौलाना आज़ाद याद आ गए जो हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में एक थे और उनकी विद्वता का सब लोहा मानते और सम्मान करते थे। मौलाना आज़ाद स्वतंत्र भारत के शिक्षा मंत्री भी रहे थे। मौलाना आज़ाद शायद इस अल-अज़हर विश्वविद्यालय के भी पढ़े हुए थे ऐसा मैंने कहीं पढ़ा था। ना मालूम क्यों मुझको इस अल-अज़हर यूनिवर्सिटी के बोर्ड को देख कर एक अंदरूनी खुशी सी महसूस हुई और कुछ लगाव सा भी प्रतीत हुआ, ऐसा लगा कि इस नाम को तो मैं न जाने कब से जानता हूं। वहां से जुड़े मौलाना आज़ाद हमारे स्वतंत्रता संग्राम के श्रद्धेय नायकों में से थे इसलिए ऐसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान के लिए मन में स्वतः ही श्रद्धा के भाव उमड़ पड़े।
अगले अंक में चर्चा होगी काहिरा के शताब्दियों पुराने खान-अल-खलीली बाज़ार की, एक हजार साल पुरानी अल मोइज़ स्ट्रीट की और काहिरा की संकरी गलियों की...
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।