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दुनिया

यहां कई बिल्डिंग देख कर ऐसा लगा जैसे हमने मुंबई में भी ऐसा कुछ देखा है...

Tripada Dwivedi
28 Oct 2024 6:47 PM IST
यहां कई बिल्डिंग देख कर ऐसा लगा जैसे हमने मुंबई में भी ऐसा कुछ देखा है...
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सिंदबाद ट्रैवल्स-31

इंग्लैंड-लंदन

लंदन देखने में एक बहुत खूबसूरत शहर है और हो भी क्यों नहीं आखिर ये उस देश की राजधानी है जिनके राज्य में एक जमाने में सूरज कभी नहीं डूबता था और फिर न जाने कितने देशों की बेबस जनता से लूटे हुए पैसे से यहां की समृद्धि और सुंदरता जुड़ी हुयी थी। लंदन शहर के कुछ इलाकों में हमारे देश के बड़े शहरों के समृद्ध इलाकों से कहीं कहीं साम्य प्रतीत हुआ जैसे कि यहां कई बिल्डिंग देख कर ऐसा लगता है कि हमने बम्बई (अब मुंबई) में भी ऐसा कुछ देखा है। जहां तक मौसम का सवाल है तो काफी ठंड महसूस हो रही थी। लंदन में मौसम बहुत ही चंचल या कहें कि unpredictable किस्म का होता है। अभी मौसम साफ है और अभी ही बारिश होने लगे और ठंड भी काफी हो जाये।

लंदन देखने के क्रम में मैंने Trafalgar Square चलने का मन बनाया और underground का map देख कर Earl's court station से Charing Cross station की मेट्रो या जिसको अंडरग्राउंड अथवा ट्यूब भी कहते हैं वो पकड़ी। Earl's Court से Charing Cross Station पहुंचने में लगभग 20-22 मिनट लगे और स्टेशन से बाहर निकल कर मैं पैदल चल कर प्रसिद्ध ट्रैफलगर स्क्वायर पर पहुंच गया। Trafalgar Square, Central London में City of Westminster में अवस्थित है। इसका निर्माण अंग्रेजों के नेपोलियन के समय फ्रांस और स्पेन की सेनाओं से लड़े गए और अंग्रेज नौसेना द्वारा जीते गए Battle of Trafalgar की याद में सन 1840 मैं पूरा हुआ था। इसके डिजाइनर सर चार्ल्स बैरी थे। रोचक बात ये थी कि यहां पर जो फव्वारे चल रहे थे उनका निर्माण सन 1937 से 1939 के बीच दिल्ली की लुट्यन्स जोन बनाने के बाद Sir Edwin Lutyens ने ही किया था। ये जानकर मुझको अपनी दिल्ली की Lutyens Zone की भव्य इमारतों और दिल्ली में इंडिया गेट के आसपास के फव्वारों की याद आ गयी।

ट्रैफलगर स्क्वायर पर सड़कों के बीच में एक बहुत बड़ा स्थान है और उस पर अनगिनत कबूतर बैठे दाना चुगते हुए टहल रहे थे। बहुत से लोग उन कबूतरों को दाना डाल रहे थे और कुछ लोग दाना बेच भी रहे थे। अन्य लोगों की देखा देखी मैंने भी कबूतरों को दाना खिलाया और ये करते हुए मुझको वाकई अच्छा लगा। हमारे देश में भी कई जगह लोग कबूतरों, चिड़ियाओं और बंदरों आदि को खिलाते हैं इसका भी एक अलग ही आनंद है। लोगों ने ये भी बताया कि इस स्थान का प्रयोग शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन, सामाजिक गतिविधियों के लिए इकट्ठा होने हेतु भी किया जाता है। बहरहाल मुझको तो वहां पर मेरे जैसे सैलानियों की भीड़ और दाना खाते कबूतर ही गुंटर गूं करते दिखे। ठंड का मौसम, सैलानियों की भीड़ और उनसे भी ज्यादा कबूतरों की चहल पहल इस सबसे वहां एक अद्भुत समां सा नजर आ रहा था। बताया गया कि महारानी विक्टोरिया के समय से कबूतरों को दाना खिलाने आदि का इस जगह पर प्रचलन रहा है, हांलांकि अब जब 2017 में ये संस्मरण लिख रहा हूं तो इस समय ट्रैफलगर स्क्वायर पर कबूतरों को दाना खिलाने पर सुना है बिल्कुल रोक लगाई जा चुकी है लेकिन उस समय ये एक कबूतर सैलानियों के लिए एक विशेष आकर्षण के केंद्र हुआ करते थे।

अगले अंक में लंदन ब्रिज और टावर ब्रिज की सैर...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।

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