Begin typing your search above and press return to search.
दुनिया

पिरैमिड बनाने में 23 साल लगे थे जबकि ताजमहल बनाने में 22 साल,दोनों का निर्माण मकबरे के प्रयोजन से ही हुआ था

Tripada Dwivedi
18 Oct 2024 12:47 PM GMT
पिरैमिड बनाने में 23 साल लगे थे जबकि ताजमहल बनाने में 22 साल,दोनों का निर्माण मकबरे के प्रयोजन से ही हुआ था
x

सिंदबाद ट्रैवल्स-24

अब विश्व के सात अजूबों में से एक अर्थात पिरैमिड मेरे सामने था और कुछ समय तक तो बस मैं पिरैमिड की तरफ देखता ही रहा उसको अपलक निहारता रहा, कितना विशाल structure था वो magnificent...

मैंने The great Pyramid में जाने का टिकट लिया जो 150 या 200 इजिप्शियन पाउंड का था शायद और चल पड़ा पिरैमिड के प्रवेश द्वार की ओर।

यहां मैंने यद्यपि गाइड नहीं किया था क्योंकि मेरा मूड भी नीचे की तरफ से आने के कारण कुछ खराब सा हो गया था किंतु वहां गाइड और लोगों को जो बता रहे थे वो मैं भी सुन रहा था। गाइड बता रहे थे कि मिस्र के पिरैमिडों में गीजा का ये विशाल पिरैमिड ही विश्व के प्राचीन सात अजूबों में शुमार है और इन सात अजूबों (Seven wonders) में से आज पृथ्वी पर सिर्फ यही अजूबा ऐसा है जो नष्ट नहीं हुआ है और आज भी मौजूद है। यहां ये भी स्पष्ट हुआ कि हमारा ताजमहल विश्व के प्राचीन प्रसिद्ध सात अजूबों का हिस्सा नहीं है अपितु मध्यकालीन/आधुनिक अजूबों में है। ये विशाल पिरैमिड लगभग 2560 ईस्वी पूर्व यानी कि आज से लगभग 4500 से भी अधिक साल पहले मिस्र के चौथे वंश के राजा खूफु द्वारा अपनी दफन स्थली के रूप में बनवाया गया था। इस पिरैमिड को बनाते समय इसकी ऊंचाई लगभग 488 फिट थी जो ऊपर का कुछ हिस्सा बाद में नष्ट हो जाने के कारण अब लगभग 455 फिट है। 19वीं सदी तक भी यह विश्व की सबसे बड़ी और ऊंची इमारत मानी जाती थी। लगभग 13 एकड़ में फैला इस पिरैमिड का आधार फुटबॉल के लगभग 16 फील्डों के बराबर का है और इसको बनाने में लाखों टन चूना पत्थर और हजारों टन ग्रेनाइट का प्रयोग हुआ था। आश्चर्य की बात ये भी है कि इनमें से प्रत्येक पत्थर का वजन लगभग 2 टन से 30 टन तक का था,जी हां 30 टन। इसके बनाने में कारीगरी की शुद्धता अद्भुत थी, इन पत्थरों को इतनी कुशलता से जोड़ा गया था कि इनके बीच में एक ब्लेड तक नहीं जा सकता था। इनको बनाने में माप की भी गजब की शुद्धता थी और होती भी कैसे नहीं, भला इतनी कमाल की शुद्धता के बिना इतनी बड़ी विशालकाय इमारत साढ़े चार हजार साल तक खड़ी ही कैसे रह सकती थी।

गाइड बताता जा रहा था कि मिस्र के इन पिरेमिडों का खगोलशास्त्र से भी यानी कि Astronomy से भी कुछ संबंध था और ये तीनों पिरैमिड आकाश के तारामंडल के "ओरियन राशि (Orion)" के तीन तारों की सीध में हैं। ये भी मालूम पड़ा कि पिरैमिडों के अंदर का तापमान पृथ्वी के औसत तापमान अर्थात लगभग 20 डिग्री सेल्सियस के आसपास ही रहता है। इन पिरैमिडों में कुछ ऐसा वातावरण होता था कि इनके अंदर वस्तु खराब नहीं होती या बहुत देर तक खराब नहीं होती और तभी तो पिरैमिडों में रखी ममी और अन्य चीज़ें खराब नहीं हुईं और मुझको इजिप्शियन म्यूजियम में रखी हुई गुलाब के फूल की पत्तियां भी याद आयीं जो प्रसिद्ध फराओ तूतनखामन की ममी पर चढ़ाई गयी थीं।

गाइड बोलता जा रहा था कि इन पिरैमिडों के कई रहस्य अभी भी अबूझ हैं और अभी भी कभी कभी पिरैमिडों में किसी पत्थर के पीछे कोई नई चीज/नया रास्ता अथवा नया कक्ष/नयी वस्तु निकल आती है। उसने बताया कि इस पिरैमिड को बनाने में लगभग 23 साल का समय लगा था। गाइड की बातें सुनते हुए मेरा मन पहुंच गया था भारत में आगरा के ताजमहल के पास। उसको बनाने में भी लगभग 22 वर्ष लगे थे और वो भी उत्कृष्ट मानवीय कारीगरी का अद्भुत नमूना है। ताजमहल का निर्माण भी मकबरे के प्रयोजन से हुआ था और पिरैमिड का भी हांलांकि ताजमहल इतना विशाल नहीं है जितने कि पिरैमिड लेकिन एक बात अवश्य थी कि ताजमहल को देख कर, उसकी सुंदरता और उसके बनाने के पीछे का प्रेम भाव देख कर मन में एक सात्विक सौंदर्य और प्रेम का भाव उमड़ता है जबकि पिरैमिड को निहार कर, उन लोगों की बातें सुनकर एक प्रकार के रहस्य और रोमांच के भाव जागृत हो रहे थे।

यही बातें सुनते हुए मैं पिरैमिड के प्रवेश द्वार पर पहुंच गया और वहां पर तैनात गार्ड ने मुझसे पूछा कि कैमरे का टिकट कहां है तो मैंने उस से कहा कि मैंने कैमरे का टिकट तो लिया नहीं है। इस पर वो गार्ड बोला कि फिर आप कैमरा यहीं मेरे पास छोड़ जाओ जिसके लिए मैं कतई तैयार नहीं था। आखिर में उसने कहा कि आप अपने कैमरे की बैटरी निकाल कर मुझको दे जाओ तो अंदर बिना बैटरी के वीडियो कैमरा लेकर जा सकते हो। इस बात पर मैं भी राजी था और वीडियो कैमरे की बैटरी निकाल कर, उसको सौंप कर मैं पिरैमिड के अंदर घुस गया।

पिरैमिड के अंदर घुस कर एक संकरी गैलरी जैसी थी जिसको grand gallery भी कहा जाता है उसमें बहुत भीड़ और एक किस्म की हल्की सी घुटन या suffocation जैसी थी। वहां कुछ भी बोला जाए उसकी आवाज़ बहुत देर तक गूंजती थी और कुछ लोग ऐसा कर भी रहे थे। पिरैमिड की इस गैलरी में बहुत मंद सी रोशनी थी और वातावरण अंधेरा सा, कुछ घुटन भरा और रहस्यमय सा प्रतीत हो रहा था। आगे बढ़ कर गैलरी की ऊंचाई कम हो चली थी, कुछ ऊपर की तरफ चढ़ाई सी पर चढ़ कर जाना था जो कि लकड़ी के पटरों से बना एक ढलवां रास्ता सा था। गैलरी काफी संकरी थी, उसमें दोनों तरफ लकड़ी की रेलिंग जैसी लगी थी और बहुत ही मद्धिम प्रकाश था, उसी से हम लोग ऊपर की ओर चढ़ रहे थे और नीचे आने वाले भी उसी रास्ते से आ रहे थे और लगभग सभी लोग बीच बीच में हांफ से भी रहे थे मय मेरे। उस गैलरी में दो लोग भी एक बराबर से सीधे मुश्किल से ही चल सकते थे। मुझको काफी उमस, गर्मी और घुटन सी महसूस हो रही थी, गैलरी में कुछ हिस्से में तो सीधे खड़े होकर चलना भी संभव नहीं था क्योंकि वहां गैलरी के उस हिस्से में ऊंचाई काफी कम थी।

कुल मिलाकर कह सकते हैं कि मैं अपने आप को comfortable महसूस नहीं कर रहा था लेकिन ये पिरैमिड देखने का उत्साह ही था जो मुझे ऐसे में भी आगे बढ़ाए ले जा रहा था। ऊपर पहुंच कर एक कमरा सा था जिसको लोग Kings chamber कह रहे थे। कमरा खाली था बस उसमें एक पत्थर का हौद सा था जिसको Sarcophagus यानी कि पत्थर का ताबूत बताया था। इस प्रकार के ताबूत में ही राजा की ममी रखी जाती थी जो लकड़ी/स्वर्ण आदि के अन्य ताबूतों में बंद होती थी और इस पत्थर के ताबूत को फिर एक बहुत ही कलात्मक किस्म के एक पत्थर के ढक्कन से ही बंद कर दिया जाता था। उस स्थान पर एक विचित्र किस्म की अजीब सी शांति थी। मैंने कहीं पढ़ा था कि पिरैमिडों के अंदर के हिस्से में माहौल कुछ ऐसा होता है कि मनुष्य गहरा ध्यान लगा सकता है और कुछ ऐसा ही यहाँ प्रतीत भी हो रहा था, कुछ दैवीय शांति सी थी।

अगले अंक में पिरैमिड की कुछ और बातें तथा स्फिंक्स...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।

Next Story