सिंदबाद ट्रैवल्स-29
हां तो मैं इजिप्ट एयर के जहाज में बैठा उनके लजीज शाकाहारी व्यंजनों का लुत्फ उठाते हुए अब लंदन, इंग्लैंड की ओर अग्रसर था। मैं सोच रहा था कि एक समय था जब ये अंग्रेज लोग हमारे देश में/से व्यापार करने आये थे और आज हमारे देश भारत से मेरे जैसे व्यापारी इनके देश से व्यापार करने जा रहे हैं। मैं ये सच भी कुबूल करना चाहूंगा कि चूंकि मैं इतिहास का विद्यार्थी भी रहा हूं और मैंने आधुनिक इतिहास भी पढ़ा था इसलिए अंग्रेजों की कारगुजारियों के कारण मेरे मन में उनके प्रति एक किस्म का पूर्वाग्रह भी था।
मैं सोच रहा था कि कैसे लोग होंगे ये अंग्रेज?
उनका मेरे जैसे एक भारतीय व्यापारी से कैसा व्यवहार होगा?
क्या वो बहुत दंभी और घमंडी होंगे?
क्या वो रूखे स्वभाव के और बदतमीज होंगे?
मुझको याद आ रहा था कि कैसे दुबई में एक अरबी शेख ने मुझसे भारतीय होने के नाते व्यापार की बात भी करने से इनकार कर दिया था। इस किस्म की अनेक शंकाओं ने मेरे मन में झंझावात पैदा किया हुआ था। इन सभी प्रश्नों के उत्तर भविष्य के गर्भ में ही थे।
खैर अब उस देश और उन लोगों से रूबरु होने का समय आ गया था जिन्होंने हमारे देश को लगभग 200 वर्ष अपना गुलाम बना कर रखा था। काहिरा से विमान को उड़े लगभग पांच घंटे हो चले थे और हमारा विमान अब जल्द ही लंदन, इंग्लैंड के हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरने वाला था।
इंग्लैंड के हीथ्रो हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद मैं इ्मीग्रेशन की लाइन में लगा, वहां उन्होंने बस मेरा वीसा देखा और पासपोर्ट पर entry की मुहर लगा कर क्लीयर कर दिया अर्थात कोई दिक्कत नहीं हुई हांलांकि न जाने क्यों लंदन हीथ्रो एयरपोर्ट पर सामान लेने की बेल्ट से सामान लेकर बाहर निकलते हुए anxiety के कारण मेरी छाती में काफी जोर से धक-धक हो रही थी। वहीं बूथ से मैंने अपने ठहरने के लिए यूथ हॉस्टल में बुकिंग करायी, ये यूथ हॉस्टल लंदन के earl’s court इलाके में था। सामान में मेरी अटैची, ब्रीफ केस एक पहियों वाली ट्रॉली पर बंधा था जो मैं अपने साथ लेकर चल रहा था, एक एयर बैग और एक वीडियो कैमरे का बैग और एक स्टिल कैमरे का छोटा बैग मेरे कंधे पर था और ये सब सामान लेकर मैं एयरपोर्ट परिसर में ही पहले टैक्सी वालों की तरफ पहुंचा और उनमें से एक से मैंने Underground Tube यानी कि मेट्रो का स्टेशन पूछा तो उन टैक्सी वालों ने मुझसे पूछा कि मुझको कहां जाना है मैंने कहा कि मुझको earl’s court जाना है तो वो बोले कि आप अंडरग्राउंड से न जाकर टैक्सी से चलिए। जब मैंने टैक्सी के चार्जेज पूछे तो मुझको वो पैसे बहुत ज्यादा लगे और मैंने उनको मना करते हुए कहा नहीं मैं तो अंडरग्राउंड से ही जाऊंगा। इस पर वो बहुत चिढ़ कर लगभग चिल्लाते हुए बोले कि, "ठीक है जाओ अंडरग्राउंड से। अच्छा है कोई तुम्हारे गले में लटके ये बैग छीन लेगा और अटैची ले जाएगा तब तुमको मालूम पड़ेगा।" खैर मैंने उनकी बात की कोई परवाह नहीं की और मैं अंडरग्राउंड स्टेशन की तरफ बढ़ चला।हां, यहां ये बताना भी जरूरी है कि वो टैक्सी वाले शक्लो सूरत से एशियन यानी हिंदुस्तानी या पाकिस्तानी ही लग रहे थे!
मैं अपने लगभग 62-65 किलो सामान के साथ अंडरग्राउंड में चढ़ गया। मैं पहले बम्बई (अब मुम्बई) में लोकल ट्रेन में जरूर चला था किंतु इस प्रकार की Underground (जैसी अब अपने मेट्रो चलती हैं) में चलने का ये मेरा पहला अनुभव था और मैं उस ट्रेन में बैठ कर बहुत रोमांचित महसूस कर रहा था। ट्रेन के दरवाजों का अपने आप खुलना और बन्द होना तथा स्टेशन आने की उद्घोषणा होना मेरे लिए बहुत रोमांचक करने वाला अनुभव था और होता भी क्यों नहीं आखिर उस जमाने में ये सब मैं तो पहली बार ही देख रहा था। जब ट्रेन जमीन के अंदर सुरंग में गयी तो ये भी इस प्रकार का मेरे जीवन का पहला ही अनुभव था। जब ट्रेन ground level पर चलती तो हरियाली और अपने यहां से अलग किस्म की बिल्डिंगों का एक अद्भुत नजारा भी दृष्टव्य था। विभिन्न स्टेशनों पर रुकते चलते लगभग आधे घंटे से कुछ अधिक समय में आखिर earl's court स्टेशन आ गया जहां मैं ट्रेन से उतर गया। स्टेशन से बाहर निकलने पर इतने सारे सामान के साथ सही पते पर पहुंचने के लिए मुझको ये उचित लगा कि अब टैक्सी ही कर ली जाए। लंदन में काले रंग की बहुत पुरानी गाड़ी के शेप की टैक्सी थीं और उसमें सवारी के पीछे बैठने की जगह और ड्राइवर के बीच में एक शीशा था जिसको हटा कर ड्राइवर बात करता। रास्ता खूब भीड़ भरा था, कार हम लोगों के देश की भांति Right hand drive थी जबकि अभी तक इस से पहले सभी जगहों पर कार left hand drive की ही मिली थीं। अंग्रेज ड्राइवर ने स्टेशन से मुश्किल से सौ डेढ़ सौ मीटर चल कर उसने गाड़ी रोक दी वहां से साइड की एक गली नुमा में जाकर वो यूथ हॉस्टल था। टैक्सी वाले को मुझको minimum charges of fare जो कि लगभग 8 पाउंड यानी कि 460 रुपये के लगभग थे (उस समय 1 ब्रिटिश पाउंड लगभग 57-58 रुपये का था शायद) वो देने पड़े जो इतनी कम दूरी के कारण मुझको अखर गए। खैर अपना सामान लादे मैं अब अपने लंदन में ठहरने के स्थान यूथ हॉस्टल पहुंच चुका था और अब यहां से मेरी लंदन और यूरोप की आगे की यात्रा की शुरुआत होनी थी।
अगले अंक में चर्चा है लंदन में मेरे पहले दिन की...
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति हैं। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।