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
सिंदबाद ट्रैवल्स-20
काहिरा का शहीद स्मारक देख कर अब हम लोग मिस्र के विश्वप्रसिद्ध प्राचीन संग्रहालय की ओर जा रहे थे कि मिस्टर मैगदी ने ड्राइवर से गाड़ी एक मिनट को रोकने को कहा। उन्होंने हाथ के इशारे से सड़क के दूसरी तरफ दिखाया तो उधर कुछ नीचाई पर मुझको एक बहुत पुरानी सी, अजीबो गरीब सी लेकिन बहुत बड़ी बस्ती नजर आई। मिस्टर मैगदी ने बताया कि ये जगह “मृतकों का शहर” अथवा The City of dead कहलाती है।
जब मिस्र में इस्लाम का प्रचलन/आक्रमण और मुस्लिम सुल्तानों/बादशाहों का शासन आरम्भ हुआ अर्थात 7वीं शताब्दी के बाद से, तो उन लोगों ने मृत्यु के पश्चात दफनाने को शहर से बाहर के रेगिस्तानी इलाके को चुना। अलग अलग राजवंशों के दफनाने के अलग अलग इलाके थे जिनको बाद में चहारदीवारी से एक कर दिया गया। इसको el-Arafa Necropolis भी कहा जाता है। शुरू में जो लोग कब्र खोदते थे या उन मकबरों की देखभाल करते थे वो वहीं रहते भी थे। धीरे-धीरे ये इलाका इजिप्ट के सबसे बड़े स्लम इलाकों में से एक बन गया और इसमें लाखों लोग रहने लगे। ताज्जुब की बात है कि यहां लगभग अधिकांश मकबरों की एक अपनी चहारदीवारी है और पानी और बिजली की सप्लाई भी है। उन मकबरों में बने कमरों और कब्रों के बीच ही लोग रहते हैं। मिस्टर मैगदी ने बताया कि बहुत सारे लोग यहां ऐसे भी हैं जो पुश्तों से सैकड़ों सालों से यहां रह रहे हैं और बाहर जाना नहीं चाहते। उन्होंने यह भी बताया कि इस इलाके में अपराधी, ड्रग्स आदि के बेचने और उपयोग करने वाले भी बहुत से लोग रहते हैं और यहां अकेले जाना कई बार बहुत सुरक्षित नहीं होता है। मिस्टर मैगदी के वहा चलने के विषय में पूछने पर मैंने कहा कि इस City of dead में मेरी इच्छा मरने के बाद भी जाने की नहीं है तो मैं भला जीते जी क्यों जाना चाहूंगा, मेरी बात सुन कर मिस्टर मैगदी और ड्राइवर अपनी चिरपरिचित रोती हुयी सी हंसी हंसे और हम लोग इजिप्शियन म्यूज़ियम की तरफ बढ़ दिए।
रास्ते में ही बातचीत में मिस्टर मैगदी से पता चला कि हवाई अड्डे पर मुझको जो मिस शिरीन मिली थीं वो मिस्टर मैगदी के भाई की दोस्त थीं और उन्होंने ही मिस्टर मैगदी को मेरे पास भेजा था अर्थात मिस्र की सरकार या किसी विभाग का मिस्टर मैगदी से कुछ लेना-देना नहीं था जैसा कि अब तक इन्होंने बताया था और मैं समझ रहा था।मिस्टर मैगदी के इस झूठ पर मुझको मन ही मन बहुत खराब लगा और रोष भी हुआ लेकिन अब क्या करता। ये सोच कि परदेस में विवाद तो बिल्कुल करना ही नहीं चाहिए और इतने समय साथ रहने से मैं मिस्टर मैगदी और उनकी सोच एवं हरकतों को शायद कुछ कुछ समझने भी लगा था इसलिए मैंने सोचा कि अब इनकी, जैसी भी सही, मदद से काम चलाया ही जाए।
इसी सब को सोचते हुए हम लोग इजिप्ट के प्रसिद्ध म्यूज़ियम पहुंच गए। वहां बहुत भीड़ थी मिस्टर मैगदी ने कहा कि आप म्यूज़ियम घूम लो मैं बाहर ही आपका इंतजार करूंगा। म्यूज़ियम में मुझको अपने अलावा कैमरों का टिकट भी लेना था तो मैंने सिर्फ वीडियो कैमरे का ही टिकट लिया। मेरा टिकट लगभग 60 या 70 इजिप्शियन पाउंड का था और जहाँ तक मुझे याद है वीडियो कैमरे का भी लगभग इतना ही या इस से कुछ अधिक था।
म्यूज़ियम में घुसते ही मैं आश्चर्यचकित था। मैंने अपने देश यानी भारत में बम्बई (अब मुंबई) और एकाध और जगहों के म्यूजियम ही अभी तक देखे थे लेकिन ये तो एक बिल्कुल दूसरी दुनिया थी। बाद में मैंने इंग्लैंड में लंदन, फ्रांस में पेरिस का लूव (Louvre Museum) आदि कई म्यूज़ियम भी देखे लेकिन उनकी बातें आगे चल कर होंगी।
अगले अंक में इजिप्ट के अद्भुत म्यूजियम का किस्सा है...
लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से कांच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति है। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।