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उत्तराखंड

दारुलसभा में फंसे रहे थे तीन दिन, खाने को मिले थे आधा प्लेट चावल... कारसेवक ने बताई 1992 की कहानी

Sanjiv Kumar
11 Jan 2024 7:22 AM GMT
दारुलसभा में फंसे रहे थे तीन दिन, खाने को मिले थे आधा प्लेट चावल... कारसेवक ने बताई 1992 की कहानी
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अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के दौरान कड़ी सुरक्षा के बावजूद विवादित ढांचा गिराने में कार सेवक डाॅ. गुलाब सिंह राणा सफल हो गए थे। उन्होंने बताया कि स्कूली जीवन के बाद से सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे 82 वर्षीय डाॅ. गुलाब सिंह राणा अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर गदगद हैं।

छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरने के दौरान जखोली विकासखंड के दूरस्थ पालाकुराली गांव (तब, टिहरी जनपद का हिस्सा था) के डाॅ. गुलाब सिंह राणा भी वहां मौजूद थे। डॉ. गुलाब ने बताया कि उस दिन सभी कारसेवक अंदर घुसे और विवादित ढांचे को गिराने में जुट गए थे।

इस दौरान हर ओर सिर्फ जय श्रीराम के जयकारे गूंज रहे थे। इस घटना में कई कारसेवक घायल भी हो गए थे। घटनास्थल पर दिनभर एंबुलेंस के सायरन बज रहे थे। स्कूली जीवन के बाद से सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे 82 वर्षीय डाॅ. गुलाब सिंह राणा अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर गदगद हैं। उन्होंने बताया कि दो दिसंबर 1992 को वह टिहरी जिले के अलग-अलग गांवों से अपने साथी ओम प्रकाश भट्ट, ज्योति गैरोला, चंद्र सिंह रावत, गोबरू लाल के साथ ऋषिकेश पहुंचे थे।

वहां से सभी लोग बस में सवार होकर फैजाबाद स्टेशन होते हुए अयोध्या जा पहुंचे। छह दिसंबर 1992 को सुबह से ही अयोध्या में विवादित ढांचे के आसपास भारी पुलिस फोर्स और अन्य सुरक्षा बल तैनात था। विवादित ढांचे की सुरक्षा के लिए तीन चरणों में बैरिकेटिंग की गई थी, लेकिन जैसे ही कार सेवकों का हुजूम वहां पहुंचा, सारी सुरक्षा व्यवस्था धरी की धरी रह गईं।

तीन दिन तक वहीं फंसे रहे

डॉ. गुलाब बताते हैं कि कार सेवकों ने अंदर घुसकर विवादित ढांचे को गिरा दिया था। इस दौरान कई कार सेवक घायल भी हो गए थे, जिन्हें एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया। घटना के बाद तो उस क्षेत्र में सिर्फ एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ी के सायरन सुनाई दे रहे थे। उन्होंने बताया कि वहां से वह अन्य कार सेवकों के साथ ईंट लेकर निकले। उस दिन पूरे अयोध्या क्षेत्र में कहीं भी खाने के लिए कुछ नहीं मिला। जैसे-तैसे दारुलसभा पहुंचे और कैंटीन में भोजन के लिए पूछा। लेकिन वहां भी सिर्फ पका हुआ चावल था। उसके साथ दाल, सब्जी तो दूर नमक भी नहीं था। इसके बाद हम लोगों ने आधा-आधा प्लेट पका चावल खाया। अयोध्या सहित अन्य क्षेत्रों में कर्फ्यू के कारण वह तीन दिन तक वहीं फंसे रहे।

प्रतीकात्मक कारसेवक दिया था नाम

डाॅ. राणा बताते हैं कि अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने वाले कारसेवकों को प्रतीकात्मक कारसेवक नाम दिया गया था। इस दौरान आंध्र प्रदेश के कार सेवकों को सबसे पहले भेजा गया था। इसके बाद अन्य राज्यों से पहुंचे कारसेवक गए थे।


निमंत्रण नहीं मिलने पर जताई नाराजगी

कार सेवक डाॅ. गुलाब सिंह राणा का कहना है कि वह प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बेहद उत्साहित थे, लेकिन उन्हें 22 जनवरी के आयोजन का निमंत्रण नहीं मिला है। इससे वह थोड़े निराश हैं, लेकिन उन्हें खुशी है कि आराध्य श्रीराम अपने मंदिर में विराजमान हो रहे हैं।

Sanjiv Kumar

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