उत्तराखंड : जोशीमठ में मानसून से दहशत में लोग, बड़ी आपदा के संकेत! फाइलों में दफन हो गयी जल निकासी योजना
आपदा प्रभावित जोशीमठ में मानसून के चलते दिक्कतें सामने आने लगी हैं। यहां नालों या नालियों की मरम्मत नहीं होने से बारिश के दौरान जमीन में पानी रिसने से जमीन और भवनों को खतरा बना हुआ है। स्थानीय लोगों की मानें तो दरारें बढ़ती ही जा रही हैं. जिसके कारण आगे खतरा ही खतरा है. लेकिन आपदा के छह माह बाद भी नालों की मरम्मत के लिए तैयार की गई कार्य योजना पर धनराशि आवंटित नहीं होने से मरम्मत कार्य नहीं हो सका है। आपदा प्रभावित जोशीमठ में आठ ऐसे बड़े नाले हैं जिनसे शहर का पानी निकलता है. लेकिन जनवरी में आई आपदा के बाद से नालियां या नालियां क्षतिग्रस्त हैं। ऐसे में इन दिनों बारिश का पानी जमीन में समाहित हो रहा है. जो भविष्य में खतरे की नींव साबित हो सकता है.
आपदा के बाद शासन-प्रशासन ने इस समस्या को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा था कि सुरक्षित जल निकासी जरूरी है। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया था कि भूस्खलन में पानी और सीवर की निकासी जरूरी है। यही कारण है कि कार्ययोजना बनाकर नाले-नालियों की मरम्मत और निर्माण की जिम्मेदारी नगर पालिका के बजाय सिंचाई विभाग को सौंपी गई।
फरवरी माह में ही शहर का सर्वे कर 73 करोड़ रुपये की कार्ययोजना बनाकर जिला प्रशासन के माध्यम से शासन को भेजी गई थी। मंशा थी कि बरसात से पहले यह काम पूरा कर लिया जाए। लेकिन कई बार अनुस्मारक देने के बाद भी इस कार्ययोजना पर शासन से कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई। और कोई वित्तीय मंजूरी नहीं मिली. ऐसे में नालों व नालियों की मरम्मत का काम शुरू नहीं हो सका है. अब मानसून के दौरान ये नाले औली से शहर तक पानी की सुरक्षित निकासी में सक्षम साबित नहीं हो रहे हैं।
इन्हीं आठ नालों में शहर के घरों का पानी भी बहता है। लेकिन आपदा प्रभावित क्षेत्र में घरों के आसपास की नालियां भी पहले से ही क्षतिग्रस्त हैं और भूस्खलन की आशंका बनी हुई है। जोशीमठ के आपदा प्रभावित लोगों का कहना है कि जगह-जगह जमीन के अंदर पानी समा रहा है. मकानों के आसपास की नालियां क्षतिग्रस्त होने से बारिश का पानी इमारतों की नींव में समा रहा है।
ऐसी स्थिति में इमारतों में दरारें बढ़ना स्वाभाविक है। सिंहधार में कोतवाली के पास रहने वाले आपदा प्रभावित देवेन्द्र सिंह का कहना है कि उनके मोहल्ले के सभी घर खाली करा लिये गये हैं। मॉनसून में जिस तरह बारिश का पानी घरों के आसपास पड़ी दरारों में समा रहा है. उन्हें एक बड़े खतरे का डर सता रहा है. जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती का कहना है कि ज्यादातर आपदा प्रभावित राहत शिविरों से अपने घरों को लौट चुके हैं। विस्थापन की व्यवस्था न होने के कारण आपदा प्रभावित लोगों को खतरनाक मकानों में रहना मजबूरी है। ऐसे में बरसात से पहले नाले-नालियों की मरम्मत न होना जोशीमठ में बड़ी तबाही का कारण बन सकता है.
क्या कहते हैं पदाधिकारी
शहर में नालों की मरम्मत के लिए शासन को 73 करोड़ की कार्ययोजना भेजी गई है। राशि आवंटित नहीं होने से निर्माण मरम्मत की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी है. (एके डीयूडी अधिशासी अभियंता सिंचाई विभाग चमोली)
शहर में नालों व नालियों की मरम्मत की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग को सौंपी गयी है. आपदा के दौरान भूस्खलन के कारण नाले एवं नालियां क्षतिग्रस्त हो गयी हैं। इनकी मरम्मत एवं पुनर्निर्माण करना आवश्यक है।