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उत्तराखंड

36 घंटे का मांगा था समय, महज 27 घंटे में ही दिला दी सफलता, ऐसे दिखाई टीम ने करामात |

SaumyaV
29 Nov 2023 6:58 AM GMT
36 घंटे का मांगा था समय, महज 27 घंटे में ही दिला दी सफलता, ऐसे दिखाई टीम ने करामात |
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सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने में रैट माइनर्स दल की भूमिका अहम रही। दिल्ली से आई रैट माइनर्स की टीम ने मैन्युअल ड्रिलिंग के लिए 36 घंटे का समय मांगा था। लेकिन महज 27 घंटे में ही इस टीम ने सफलता दिला दी।

दरअसल, बीते शुक्रवार शाम जब अमेरिकी ऑगर मशीन से ड्रिलिंग का काम केवल 12 मीटर बचा था तो मशीन का ऑगर सरियों में उलझकर फंस गया। जब इसे बाहर निकालने का प्रयास किया गया तो यह टूट गया। मशीन फंसने के कारण ड्रिलिंग का काम बंद होने से हर कोई हताश था।

ऐसे मुश्किल समय में दिल्ली की रॉक वेल इंटरप्राइजेस कंपनी के अंतर्गत काम करने वाले रैट माइनर्स दल को बुलाया गया। इस टीम में करीब 12 लोग शामिल थे। जिन्होंने गत सोमवार दिन में 3 बजे 800 मिमी के पाइप में बैठकर हाथों से खोदाई शुरु की। यह बिल्कुल भी आसान नहीं था।

इस दल के सदस्यों ने दिन-रात काम कर मंगलवार शाम 6 बजे मैन्युअल ड्रिलिंग को पूरा किया। जिसके माध्यम से 800 मिमी के पाइप के जरिए अंदर फंसे मजदूरों के बाहर निकालने के लिए रास्ता बनाया गया। जिससे सभी मजदूरों को बाहर निकाला गया।

कंपनी मालिक वकील हसन ने बताया कि दो लड़के पाइप के अंदर बैठकर मिट्टी काटते थे। जबकि चार से पांच लड़के बाहर रहकर मलबा बाहर खींचते थे। इस दल में फिरोज कुरैशी, मुन्ना, नसीम, मोनू, राशिद, इरशाद, नासिर आदि शामिल रहे।

रैट माइनर्स के लिए मलबा निकालने के लिए ट्रॉली दिल्ली के सुरेंद्र राजपूत ने तैयार की। उन्होंने बताया कि उन्हें जब इस हादसे की सूचना मिली तो वह यहां निस्वार्थ रुप से मदद करने आए। उन्होंने यहां विशेष प्रकार की ट्रॉली बनाई। जिसकी मदद से आसानी से मलबे को बाहर निकाला गया। बताया कि वर्ष 2006 में हरियाणा कुरुक्षेत्र के निकट एक बच्चा प्रिंस बोरवेल में गिरा था। जिसे बचाने के लिए भी उन्हाेंने मदद की थी।

सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के अभियान में अमेरिकी ऑगर मशीन भी कुछ घंटों में सामने आई बाधाओं के सामने हांफ गई। ऐसे में रैट माइनर्स की टीम ने अपनी करामात दिखाई। अंततः ऑगर मशीन पर मानवीय पंजे भारी पड़े और इनके दम पर 17वें दिन ऑपरेशन सिलक्यारा परवान चढ़ा।

17 दिन तक बचाव अभियान में जुटी टीमें मजदूरों का जीवन बचाने के लिए सभी विकल्पों पर काम शुरू कर चुकी थी। बड़कोट की ओर से माइनर सुरंग खोदने, वर्टिकल, मगर जहां ऑगर मशीन फंसी थी, वही विकल्प मजदूरों तक पहुंचने का सबसे करीब जरिया था।

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