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उत्तराखंड

Shardiya Navratri 2023: महिलाओं ने जब तोड़ी कुरीति, तो समाज में बनी नई रीति...पढ़ें शक्ति की ये नौ कहानियां

Abhay updhyay
18 Oct 2023 4:38 PM IST
Shardiya Navratri 2023: महिलाओं ने जब तोड़ी कुरीति, तो समाज में बनी नई रीति...पढ़ें शक्ति की ये नौ कहानियां
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महिलाओं ने जब भी समाज में बुराइयों के प्रति आवाज उठाई है, तो हमेशा नई रीति बनी है। किसी ने शराब तो किसी ने किसी ने पेड़ बचाने के लिए अपनी आवाज बुलंद की है। इस कारण समाज में जातिवाद, लिंगभेद समेत अन्य कुरीतियां कम हो रही हैं।

महिलाएं मुखर होकर आगे आ रही हैं। इसका परिणाम यह है कि समाज में जागरूकता और सामाजिक सुधार आ रहा है। नवरात्र के अवसर पर अमर उजाला अपने पाठकों को उन ''शक्तियों'' से परिचित करा रहा है, जिन्होंने राज्य में अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी ताकत से एक अलग मुकाम बनाया है। आज चौथे दिन पढ़िए ऐसी ही नौ महिलाओं की कहानी, जो समाज में अलग स्थान रखती हैं।


ऋषिकेश: वर्षों से शराब के खिलाफ अलख जगा रही हैं कुसुम

खदरी श्यामपुर की कुसुम जोशी वर्ष 2010 से पर्यावरण संरक्षण और समाज को नशा मुक्त करने की अलख जगा रही हैं। उन्हीं के प्रयास से समाज में अब तक करीब सात से आठ हजार शादी समारोह बिना शराब के संपन्न हुए हैं। शादी समारोह, जन्मदिवस आदि शुभ अवसर पर वह नव दंपती और परिजनों के हाथों में पौधरोपण करवा कर पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करती हैं। अब तक वह हजारों पौधे लगवा चुकी हैं। कुसुम जोशी ने बताया कि वर्ष 2010 से वह इस मुहिम में जुटी हैं। वर्ष 2015 में उन्होंने मैत्री स्वयंसेवी संस्था का पंजीकरण कराया। जिसके बाद उन्होंने गढ़वाल के सभी जिले में शराब मुक्त समाज की अलख जगाई। उनकी इस मुहिम से लोग उन्हें टिंचरी माई के नाम से पुकारने लगे हैं।

कोटद्वार: रामेश्वरी भाबर के झंडीचौड़ क्षेत्र में चला रही शराबबंदी आंदोलन

कोटद्वार भाबर क्षेत्र के पश्चिमी झंडीचौड़ निवासी 62 वर्षीय रामेश्वरी नेगी बीते कई साल से भाबर के गांवों में शराब के बढ़ते प्रचलन के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रही हैं। 1987 में वह महिला मंगल दल की अध्यक्ष बनी थीं। तब से वह शराब के सार्वजनिक रूप से पीने पिलाने का विरोध करती आ रही हैं। भाबर के गांवों में उन्होंने शादी में काकटेल पार्टी को बंद कराने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए। कई लोगों, संगठनों व महिलाओं ने उनकी बात का समर्थन कर सहयोग दिया। उनकी मुहिम इस कदर रंग लाई कि अब शादी बरात के साथ ही चौक चौराहों पर भी शराब पीने पिलाने का प्रचलन बंद हो गया है। इलाके की महिलाएं उन्हें कभी भी मदद के लिए फोन कर लेती हैं।

पीपलकोटी: बच्चों का निशुल्क उपचार करती हैं कनक शाह

पीपलकोटी में रहने वाली कनक शाह पिछले नौ सालों से बच्चों का निशुल्क आयुर्वेदिक उपचार करती हैं। उन्होंने यह चिकित्सा विधि अपनी सास से सीखी है, जिसे अब वह आगे बढ़ा रही हैं। कनक बच्चों के उल्टी-दस्त, बुखार, पेट दर्द, चेचक आदि होने पर जड़ी बूटी से बनी दवा देती हैं। उनकी दवा से बच्चे ठीक भी हो जाते हैं। पूरे बंड क्षेत्र में वह बच्चों के उपचार के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। उनके पास अक्सर बच्चों का उपचार कराने के लिए लोगों की लाइन लगी रहती है। कनक शाह ने बताया कि उनकी सास लीला देवी आयुर्वेदिक उपचार की जानकार थीं। उनके साथ काम करते करते वह खुद सीख गईं। उनका मानना है कि पैसे लेने से दवा का असर कम हो जाता है।

देहरादून: योग के जरिए निरोग बना रहीं लक्ष्मी शाह

जोशीमठ की लक्ष्मी शाह पंवार गांव-गांव में योग की अलग जगा रही हैं। लक्ष्मी रुद्रप्रयाग के दुर्गम विद्यालय कोटी मदोला में प्रधानाध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। उनकी योग कक्षाएं उनके विद्यालय तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे रुद्रप्रयाग, चमोली, पौड़ी सहित गढ़वाल-कुमाऊं के सैकड़ों गांवों में जाकर संचालित करती हैं। जन-जन तक योग पहुंचाने के उद्देश्य से लक्ष्मी ने वैन भी खरीदी है, जिसे वह खुद चलाती हैं। दसअसल, कई वर्षों तक वह माइग्रेन के दर्द से परेशान रहीं। किसी ने उन्हें योग की सलाह दी, जिससे उनको राहत मिली। वह 2008 में पतंजलि योग विद्यापीठ से जुड़ीं और योग सीखा। लक्ष्मी ने चमोली, रुद्रप्रयाग की महिलाओं की एक टीम बनाई है, जो रामलीला, पांडव लीला और महाभारत का अभिनय करती हैं। ब्यूरो

देहरादून: महिलाओं को हुनरमंद बना रही हैं सुषमा

विगत 20 सालों से शिक्षण कार्य में जुटी सुषमा काव्या अब न केवल वंचित बच्चों को शिक्षा एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने का कार्य कर रही है, बल्कि अंतरमन एनजीओ के माध्यम से जरूरतमंद महिलाओं को मुफ्त कौशल प्रशिक्षण देकर हुनरमंद भी बना रही हैं। क्लेमेनटाउन टर्नर रोड निवासी सुषमा इससे पहले माजरा स्थित एक निजी स्कूल में शिक्षक थीं। लेकिन उन्होंने जॉब छोड़ दी। वह पिछले डेढ़ साल से अंतरमन परिवार समिति का संचालन कर रही है। वह वर्तमान में करीब 35 निशक्त बच्चों को उचित शिक्षा एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध करा रही हैं। ये सभी बच्चे बड़े होकर अपने देश की सेवा करना चाहते हैं। उनका सपना है कि इन बच्चों के लिए भविष्य में एक स्कूल बने, जहां यह अपने सपनों को पूरा कर सकें।

सहसपुर: गीता बनीं नौ हजार महिलाओं की शक्ति

स्वयं सहायता समूहों के बीच सहसपुर निवासी गीता मौर्य एक जाना पहचाना नाम है। अपने नौ साल के संघर्षशील सफर के दौरान वह स्वयं भी सशक्त बनीं और अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाकर शक्ति दी। उन्होंने 947 स्वयं सहायता समूहों के गठन में अहम भूमिका निभाकर नौ हजार महिलाओं को रोजगार से जोड़ने का काम किया। आज वह प्रदेश में ही नहीं अन्य राज्यों में जाकर मास्टर ट्रेनर के रूप में महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं। वहीं शक्ति स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलाओं को जोड़ कर जूट बैग, एलईडी बल्ब, अचार, पापड़, रंग, टेक होम राशन आदि उत्पाद भी बना रही हैं। गीता बताती हैं कि वर्ष 2014 से पहले उनके पति की दुकान छिन गई और मकान बेचना पड़ा। तब बैंक से 25 हजार रुपये का ऋण लेकर उन्होंने सिलाई ट्रेनिंग सेंटर शुरू कर अपने सफर की शुरुआत की।

उत्तरकाशी: जनजाति परिवारों की बढ़ा रही आजीविका

नगर पालिका बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) के वार्ड सात ज्ञानसू निवासी शांति परमार जाड़-भोटिया जनजाति के परिवारों की आजीविका बढ़ाने के लिए कार्य कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने जाड़-भोटिया जनजाति बहुल डुंडा में सामुदायिक सुविधा केंद्र भी बनवाया। जिसमें ऊनी उत्पाद जैसे विंडी, मफलर, स्वेटर, शॉल, पंखी आदि मशीनों से तैयार किए जाते हैं। उन्होंने डुंडा में सरकारी कार्डिंग प्लांट बंद होने पर निजी प्रयासों से कार्डिंग प्लांट की स्थापना की है। उच्च शिक्षित शांति परमार वर्ष 2003 से सामाजिक सेवा में हैं। शांति ने सुदूरवर्ती 30 गांवों में लगभग 120 स्वयं सहायता समूहों के साथ किसान उत्पादक समूह बनाकर गरीब किसानों की आजीविका बढ़ाने के प्रयास किए।

लालढांग: नौकरी छोड़ जनसेवा में जुटीं राजेश्वरी देवी

नया गांव की राजेश्वरी देवी आंगनबाड़ी की नौकरी छोड़ जनसेवा में जुटी हैं। उन्होंने 2001 से सामाजिक संस्था में रहते हुए पोलियो पिलाने व टीकाकरण का काम 35 गांवों में किया और महिलाओं को जागरूक भी किया। 2003 में चमरिया में आंगनबाड़ी केंद्र में सहायिका और 2005 में नया गांव में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बन गईं, लेकिन उन्होंने 2022 में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जनप्रतिनि बनने को अपना हथियार बनाया। इसके लिए उन्होंने आंगनबाड़ी की नौकरी से इस्तीफा देकर क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा, उनकी समाज सेवा को देखते हुए लोगों ने उन्हें बंपर वोटों से विजयी बनाया। वह क्षेत्र में लगातार मूलभूत सुविधाओं के लिए कार्य करा रही हैं।


रुड़की: न्याय की देवी बनकर पूरा किया सपना

प्रधानाचार्य की बेटी ने जज बनकर न्याय की देवी के रूप में क्षेत्र का नाम रोशन किया है। साक्षात्कार में 300 प्रतिभागियों में 66वें स्थान पर रहकर सपने को साकार किया। मंगलौर क्षेत्र के निजामपुर स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य अरविंद कुमार दुबे की बेटी आयुषि ने हाल ही में यूपी के पीसीएसजे में सफलता हासिल की है। आयुषि ने रुड़की के सेंट ऐंस स्कूल से 12वीं की पढ़ाई पूरी की थी। इसके बाद जज बनने का सपना लेकर इलाहबाद यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल लेकर एलएलबी की डिग्री हासिल की। उनके पिता बताते हैं कि उनकी बेटी का लक्ष्य जज बनने का था और इसके लिए वह दिनरात मेहनत करती रही। उन्हें अपनी बेटी पर नाज है।

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