एम्स के अंकोलॉजी विभाग के चिकित्सकों ने कैंसर रोग का उपचार बीच में छोड़ने वाले 107 मरीजों पर शोध किया है।
इलाज के दौरान सामाजिक सहयोग न मिलने, उपचार के बारे में कम जानकारी होने व आर्थिक कमजोरी के कारण कैंसर के मरीज उपचार पूरा नहीं कर पा रहे हैं। अधिकांश मरीज बीच में ही उपचार छोड़ दे रहे हैं। उपचार बीच में छोड़ने वालों में प्राथमिक चरण के कैंसर के मरीज भी शामिल हैं। जबकि प्राथमिक चरण के कैंसर के मरीजों के उपचार के बाद ठीक होने की संभावना रहती है।
एम्स के अंकोलॉजी विभाग के चिकित्सकों ने कैंसर रोग का उपचार बीच में छोड़ने वाले 107 मरीजों पर शोध किया है। मेडिकल ऑफ अंकोलॉजी के डाॅ. दीपक सुंद्रियाल ने बताया कि कैंसर का उपचार बीच में छोड़ने वाले 107 मरीजों में 33 फीसदी मरीज ऐसे थे, जिन्हें प्राथमिक चरण का कैंसर था। जबकि इनके ठीक होने की अधिक संभावना थी। चिकित्सकों ने इन मरीजों से इलाज बीच में छोड़ने का कारण पूछा है।
शोध में 54 फीसदी मरीजों का कहना था कि इलाज के दौरान सामाजिक सहयोग न मिलने के कारण उन्हें अस्पताल आने में काफी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। परिवार में एक ही कमाऊ सदस्य है, जो उनके साथ अस्पतालों के चक्कर नहीं काट सकता।
22 फीसदी मरीजों ने आर्थिक तंगी और 16 फीसदी मरीजों ने अस्पताल तक आने के लिए यातायात साधन न होने के कारण कैंसर का उपचार बीच में ही छोड़ दिया। आठ फीसदी मरीजों ने कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव की भ्रांतियों और नीम-हकीम के चक्कर में उपचार बीच में ही छोड़ दिया। एम्स के चिकित्सकों का यह शोध वर्ष 2022 में अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लीनिकल अंकोलॉजी के वार्षिक सेमिनार में भी पढ़ा गया है।
सरकारी अस्पताल में नहीं विशेषज्ञ डॉक्टर
उत्तराखंड में एम्स को छोड़कर किसी भी मेडिकल कालेज में मेडिकल अंकोलॉजी विभाग और मेडिकल अंकोलॉजिस्ट नहीं हैं। अधिकांश मेडिकल कालेजों में रेडियोथैरेपी मशीन भी नहीं है। अधिकांश अस्पतालों में रेडिएशन स्पेशलिस्ट और सर्जन कीमोथेरेपी करते हैं। इसी तरह सर्जिकल अंकोलॉजी (कैंसर सर्जरी के डॉक्टर) का भी अभाव है।
चिकित्सक बोले, मेडिकल कॉलेज में हो इलाज की सुविधा
एम्स के चिकित्सकों का सुझाव है कि कैंसर के उपचार के लिए सरकार के स्तर पर ठोस नीति बनाई जानी चाहिए। राज्य के मेडिकल कॉलेज में सर्जिकल अंकोलॉजी विभाग स्थापित किया जाएं और चिकित्सकों की भर्ती की जाए। जिससे मरीज को घर के निकट के मेडिकल काॅलेज में कैंसर का इलाज मिल सके। कैंसर से संबंधित विशेष जागरूकता अभियान चलाया जाएं। कैंसर के गरीब मरीजों को इलाज के लिए वित्तीय मदद दी जाए। बिना साक्ष्य के कैंसर के सफल इलाज का दावा करते वाले नीम-हकीम और संस्थानों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए।