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उत्तराखंड

1988 में मृत नबी रजा खां को जिंदा किया, फिर काले कारनामों से मलिक का बगीचा बना डाला

Shashank
23 Feb 2024 6:11 AM GMT
1988 में मृत नबी रजा खां को जिंदा किया, फिर काले कारनामों से मलिक का बगीचा बना डाला
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हल्द्वानी हिंसा के मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक 1988 में मृत नबी रजा खां के नाम से नगर निगम, डीएम से लेकर कोर्ट तक पैरवी करता रहा। जब मामले ने तूल पकड़ा तो नगर निगम ने इस जमीन से संबंधित कागजों की जांच की। जांच में कई तथ्य चौकानें वाले सामने आए।

नबी रजा खां की 1988 में मौत हो गई। इसके बाद भी हल्द्वानी हिंसा के मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक उनके नाम से नगर निगम, डीएम से लेकर कोर्ट तक पैरवी करता रहा। 16 साल तक सरकारी अमले को इसकी जानकारी तक नहीं हुई। कंपनी बाग की 13 बीघा जमीन को खुर्द-बुर्द करने के लिए अब्दुल मलिक, उसकी पत्नी साफिया मलिक सहित छह लोगों ने जमकर कागजों में कूट रचना की। नबी रजा खां के मरने के बाद भी उसके नाम से कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया। जब नबी रजा खां को बाग के लिए लीज में मिली जमीन का फ्री होल्ड नहीं हुआ तो जमीन को 10 रुपये से 100 रुपये के स्टांप में बेच दिया गया।

जब मामले ने तूल पकड़ा तो नगर निगम ने इस जमीन से संबंधित कागजों की जांच की। जांच में कई तथ्य चौकानें वाले सामने आए। नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि मलिक का बगीचा की उनके वहां कंपनी बाग नाम से नजूल अनुभाग में फाइल है। कहा कि नबी खां को ये बाग लीज में मिला था।

सईदा बेगम पत्नी नबी रजा खां, सलीम रजा खां पुत्र नबी रजा खां, अख्तरी बेगम पत्नी नन्हें खां ने 1991 में अध्यक्ष नगर पालिका परिषद हल्द्वानी एक शपथ पत्र दिया था। उसमें कहा गया था कि नबी रजा खां की मृत्यु तीन अक्तूबर 1988 को हो गई थी। उन्होंने कहा कि ऐसे ही कई झूठे शपथ पत्र और झूठे शपथ पत्र के आधार पर रिट भी डाली गई। कहा कि मामले पकड़ में आने पर नगर निगम ने कोतवाली में तहरीर दी है।

1988 में जब नबी रजा खां मर गए तो कोर्ट में उनके नाम पर 2007 में किसने डाली रिट

2007 में कोर्ट में एक रिट अख्तरी बेगम पत्नी नन्हें खां और नबी रजा खां पुत्र अशरफ खां की ओर से डाली गई है। इस रिट में जो शपथ पत्र नोटरी किया लगाया गया है, उसमें नबी रजा खां की उम्र 55 वर्ष दर्शायी गई है। ये शपथ पत्र नौ अगस्त 2007 को सत्यापित कराया गया है। रिट में नबी रजा खां और अख्तरी बेगम की ओर से डीएम को फ्री होल्ड के लिए भेजे गए पत्रों को आधार बनाया गया है। ये पत्र जिलाधिकारी को आठ जून 2006 और अनुस्मारक पत्र 28 मई 2007 को भेजा गया है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर जब नबी रजा खां 1988 में ही मर गए थे तो उनके नाम से रिट किसने डाली। शपथ पत्र कैसे बन गया। शपथ पत्र कैसे सत्यापित हो गया। डीएम को क्या मरे हुए व्यक्ति ने फ्री होल्ड के लिए आवेदन किया।

कहां गया 500 फलदार पेड़ों का बाग

कपंनी बाग में जब 1991 में 500 फलदार पेड़ थे तो वह इस समय कहा हैं। क्या जमीन बेचने के लिए पेड़ों को काट दिया गया। 13 बीघा जमीन कहां चली गई। नबी रजा खां के भाई गौस रजा ने 10 अक्तूबर 1991 में नगर निगम को लिखित बयान दिया था। इसमें कहा गया था कि अख्तरी बेगम मेरी मां है। उन्हें खलिस पड़ा है। नबी रजा खां की मृत्यु 1988 में हो गई है। इस जमीन में 500 फलदार पेड़ हैं। यहां पर एक 12 बाई 12 फिट का कमरा बना हुआ है। 31 जनवरी 2024 को गौस रजा खां ने शपथ पत्र देकर कहा है कि स्व. अख्तरी बेगम और नबी रजा खां ने अपने जीवित रहते हुए इस भूमि का हिब्बा साफिया मलिक के पिता स्व. अब्दुल हनीफ निवासी बरेली को कर दिया था। हिबा कब किया ये नहीं बताया गया है।

1994 में कैसे मिल गया हिब्बा

अब्दुल मलिक की पत्नी साफिया मलिक ने 2024 में एक शपथ पत्र न्यायालय को दिया है। उसमें कहा गया है कि लीज होल्डर नबी रजा खां ने उनके पिता स्व. हनीफ खां को 1994 में हिबा में दी थी। अब सवाल उठ रहे हैं कि जब नबी रजा खां 1988 में मर गए थे तो 1994 में हिबा में ये जमीन कैसे साफिया मलिक को मिली।

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