सुरंगे लोहारी नाग पाला जल विद्युत परियोजना के लिए बनाई जा रही थी। जो कि वर्ष 2010 में पर्यावरण बनाम विकास के मुद्दे पर 60 प्रतिशत तक काम पूरा होने के बाद बंद कर दी गई। भटवाड़ी ब्लाक में आधी-अधूरी तीन से चार यह सुरंगे तिहार, कुज्जन, भंगेली व सुनगर गांवों के नीचे से गुजरती हैं।
तीन दिन पहले सिलक्यारा सुरंग हादसे से उबरे उत्तरकाशी जनपद में आधा-अधूरी बनीं सुरंगें चार गांवों के लिए खतरा बनी हुई हैं। जमीन के नीचे से गुजरने वाली इन सुरंगों के कारण गांवों में जमीन धंस रही हैं। जिसके चलते नए व पुराने हर मकान पर दरारें पड़ रही हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने इस समस्या को लेकर कई बार जिला प्रशासन से भूगर्भीय सर्वे कराने की मांग की, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। दरअसल यह सुरंगे लोहारी नाग पाला जल विद्युत परियोजना के लिए बनाई जा रही थी। जो कि वर्ष 2010 में पर्यावरण बनाम विकास के मुद्दे पर 60 प्रतिशत तक काम पूरा होने के बाद बंद कर दी गई। भटवाड़ी ब्लाक में आधी-अधूरी तीन से चार यह सुरंगे तिहार, कुज्जन, भंगेली व सुनगर गांवों के नीचे से गुजरती हैं।
भंगेली गांव के प्रधान प्रवीन प्रज्ञान का कहना है कि इन सुरंगों के कारण उनके गांवों में नए व पुराने हर मकान में दरारें पड़ रही हैं। जिनके हर पल दरकने का खतरा बना रहता है। बताया कि सुरंग निर्माण के दौरान जब ब्लास्ट किए जाते थे तो उनका पूरा गांव हिल जाता था। आज भी यह सुरंगे उनके लिए खतरे का सबब बनी हुई हैं। बताया कि वह कमरे में टाइलें भी लगाते हैं तो टाइलें भी फट जाती हैं।
600 मेगावाट की थी परियोजना
600 मेगावाट की लोहारीनाग पाला परियोजना का निर्माण एनटीपीसी ने वर्ष 2005 में शुरु हुआ था। लेकिन इसका निर्माण शुरु होने के साथ ही विवादों में आ गई थी। पर्यावरणविद् प्रो.जीडी अग्रवाल ने परियोजना निर्माण से पर्यावरण को खतरा बताते हुए इसका विरोध किया। जिसके चलते इसे वर्ष 2010 में बंद कर दिया गया। परियोजना के लिए आधी-अधूरी बनी सुरंगों को ऐसे ही छोड़ दिया गया।
आधा-अधूरी बनीं सुरंगे बड़ा खतरा हो सकती हैं। भूकंप के दौरान ऐसी सुरंगें धंसने से जान-माल का नुकसान हो सकता है। इस तरह की सुरंगों का ट्रीटमेंट काया जाना चाहिए। -डॉ.सुशील कुमार, भूगर्भ वैज्ञानिक
हादसे के बाद बॉबी और संतोष ने हारी हिम्मत बोले-अब नहीं लौटेंगे
निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में काम करने वाले संतोष व बॉबी सिलक्यारा सुरंग हादसे के बाद हिम्मत हार चुके हैं। इस हादसे के बाद सुरंग में फंसे संतोष ने जहां 17 दिन तक जिंदगी के लिए जद्दोजेहद की। वहीं बाॅबी ने सुरंग में फंसे अपने छोटे भाई संतोष को बचाने के लिए सुरंग के बाहर संघर्ष किया। अब दोनों भाइयों ने दोबारा सिलक्यारा वापस नहीं आने का फैसला किया है। उत्तरप्रदेश के मोतीपुर श्रावस्ती निवासी संतोष कुमार भी सुरंग के अंदर फंस गए थे। संतोष के बड़ा भाई बॉबी दिन की शिफ्ट में होने के चलते सुरंग से बाहर ही थे। संतोष का कहना है कि शुरुआत में उन्हें लगा कि वह यहां से कभी बाहर नहीं निकल पाएंगे। लेकिन जब उन्हें पाइपलाइन से खाना मिला तो उम्मीद बंधी कि उन्हें बचाने के प्रयास हो रहे हैं। दोनों ही भाई अब गांव लौट चुके हैं। बॉबी का कहना है कि वह दोनों अब कभी सिलक्यारा नहीं लौटेंगे। वह दोबारा उस सुरंग में नहीं जाएंगे। वह ऐसा काम चुनेंगे जहां जान का जोखिम नहीं होगा।