उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में करीब 400 घंटे तक फंसे रहे मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने में बमुश्किल एक घंटे का समय लगा। 17 दिन तक बचाव अभियान उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच झूलता रहा।
गुजर जाएगा ये मुश्किल वक्त भी बंदे, तू थोड़ा इत्मिनान तो रख। ऑपरेशन टनल की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण मंत्र धैर्य ही था। दीपावली के दिन जहां देश में लोगों के घर रोशनी से जगमगा रहे थे, वहीं अचानक 41 परिवारों के आगे अंधेरा छा जाने की खबरें सामने आईं थी।
17 दिनों में न तो सिलक्यारा की सुरंग फंसे 41 मजदूरों ने धैर्य छोड़ा और न ही उन्हें बाहर निकालने वालों ने। इस ऑपरेशन को कई बार हताशा, निराशा ने आकर घेरा इसके बावजूद बाहर से अंदर और अंदर से बाहर के लोगों को धैर्य का छोटा सा सुराख रोशन रखे रहा।
श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए जिस ऑगर मशीन से शुरुआत की गई आखिर में उसी राह से उन्हें बाहर निकाला गया। पूरे ऑपरेशन में ऑगर कई बार रुकी, सुरंग में कंपन हुआ, सुरंग में उलझ गए मशीन के कई पार्ट काटकर निकालने पड़े, लेकिन विशेषज्ञ डटे रहे और धैर्य बनाए रखा।
कुछ दिनों की मशक्कत के बाद उन्हें उम्मीद हो गई थी कि सबसे सुरक्षित राह यही है। वर्टिकल ड्रिलिंग और टनल के दूसरे छोर को भी खोलने की कवायद शुरू हुई। जब ऑगर ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया तो इसे उन रैट माइनर्स का साहस और धैर्य ही माना जाएगा जिनके हाथों ने उसी पाइप में दिन रात मैनुअल ड्रिलिंग कर 41 परिवारों में उजियारा फैला दिया।
काम करते-करते मलबा गिरने से 41 मजदूर टनल में फंसे
आपको बता दें कि काम करते-करते दिवाली के दिन अचानक सुरंग में मलबा गिरने से 41 मजदूर अंदर ही फंस गए। उन्होंने अपने जीवन के नौ दिन का गुजारा केवल ड्राई फ्रूट्स और चने खाकर अंदर बह रहे स्रोत के पानी से किया। उनके पास सोने को बिस्तर था न शौचालय की सुविधा। ऑपरेशन सिलक्यारा में सभी मजदूरों की जिंदादिली एक नजीर बन गई।
12 नवंबर की सुबह करीब 5:30 बजे जिस वक्त सुरंग में हादसा हुआ तो मजदूरों की आवाज सुनने के लिए केवल चार इंच का एक पाइप ही माध्यम बचा। पहले सबसे बात हुई तो पता चला कि सभी बच गए, लेकिन फंस गए। इसके बाद उन्हें भूख लगने लगी, लेकिन कोई ऐसा माध्यम नहीं था, जिससे उन्हें भोजन भेजा जा सके।
मजदूरों ने नहीं हारा हौसला
20 नवंबर तक उन्हें केवल जरूरी दवाएं, चने और ड्राई फ्रूट ही इस चार इंच के पाइप से प्रेशर के माध्यम से भेजे जाते रहे। सभी मजदूर इससे किसी तरह अपनी भूख शांत कर जिंदादिली से उन पलों का इंतजार करते रहे, जब उन्हें बचाकर बाहर निकाला जाएगा। कई मजदूरों को पेट दर्द की शिकायत भी हुई। बावजूद इसके उन्होंने हौसला नहीं हारा।
20 नवंबर को जैसे ही छह इंच के पाइप को भीतर तक पहुंचाने में कामयाबी मिली तो मजदूरों को भी कुछ राहत मिलनी शुरू हो गई। उन्हें खिचड़ी, केले, संतरे, दाल-चावल, रोटी के अलावा ब्रश, टूथपेस्ट, दवाएं, जरूरी कपड़े आदि भेजे गए।
टनल के भीतर इन 13 दिन में उनकी दिनचर्या तो कुछ बनी, लेकिन बाहर आने की व्याकुलता बरकरार रही। डॉक्टर, मनोचिकित्सक उनका हौसला बढ़ाते रहे। आखिरकार इसी जीवंतता के दम पर वह मजदूर सुरक्षित बाहर निकलने में सफल हो पाए।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार का तालमेल
इस पूरे ऑपरेशन के दौरान केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने भी तालमेल के साथ धैर्य का परिचय दिया। पूरी दुनिया की नजरें 17 दिनों से उत्तराखंड के उत्तरकाशी के सिलक्यारा पर टिकी थीं। मजदूरों को बाहर निकालने के कई प्लान बने और जब-जब फेल हुए तो सरकार असहज जरूर दिखी, लेकिन कहीं न कहीं धैर्य बनाए रखा।
प्रधानमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, जनरल वीके सिंह बारी-बारी न सिर्फ हौसला बढ़ाकर ऑपरेशन को सुगठित करते दिखे बल्कि उनके बयानों ने लगातार अंदर मजदूरों और बाहर परिवार के लोगों को धैर्य बनाए रखने में मदद की। वहीं विपक्ष के तमाम आरोपों के बीच भी सरकार ने धैर्य बनाए रखा और विकल्प तलाशती रही।
एक घंटे में निकाले गए 400 घंटे तक फंसे मजदूर
उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में करीब 400 घंटे तक फंसे रहे मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने में बमुश्किल एक घंटे का समय लगा। 17 दिन तक बचाव अभियान उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच झूलता रहा।
मंगलवार को जब केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री वीके सिंह सिलक्यारा पहुंचे और मुख्यमंत्री भी सिलक्यारा लौटे तो संकेत साफ हो गए कि आज मजदूरों के अंधेरी सुरंग से बाहर निकलने का समय आ गया है। शाम होते ही खबर आ गई। 12 नवंबर को दिवाली के दिन 4 मजदूर सुरंग में फंसे थे और 17वें दिन बाहर निकले।
जब बचाव दल हुआ हताश तो आस्था ने जगाई आस
ऑपरेशन सिलक्यारा के दौरान कुछ ऐसे अवसर भी आए जब मंजिल के करीब पहुंचने से पहले आई अड़चन के कारण ऐसा लगा कि सारे प्रयास निरर्थक हो गए हैं। ऐसे वक्त में देवभूमि के प्रति आस्था ने आस जगाने का काम किया। भगवान बौखनाग देवता का मंदिर स्थापित करने से लेकर सुरंग के द्वार पर बनी भोलेनाथ की आकृति भी अभियान में जुटे लोगों के लिए आस्था की वजह बनीं।
इस आस्था के भरोसे सुरंग निर्माण के विशेषज्ञ आस्ट्रेलियन अर्नोल्ड डिक्स भी सिर झुकाते नजर आए। मुख्यमंत्री से लेकर बचाव अभियान में शामिल अधिकारी, विशेषज्ञ, विज्ञानी, तकनीशियन और मजदूर निराशा के समय इसी आस्था से आस जगाते नजर आए।