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उत्तर प्रदेश

'सामने तुम हो, तुम्हारा मौन पढ़ना आ गया, आंधियों में एक खुशबू को ठहरना आ गया'

Neeraj Jha
30 April 2024 10:36 AM GMT
सामने तुम हो, तुम्हारा मौन पढ़ना आ गया, आंधियों में एक खुशबू को ठहरना आ गया
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पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ की 110 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी सम्पन्न

गाजियाबाद। पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ की 110 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी चौथे रविवार को पूर्व की भांति ही आयोजित हुई, यह गोष्ठी "राष्ट्रीय सौहार्द – प्रेम – सरोकार” से संबंधित भावों को समर्पित रही जिसमें राष्ट्र गौरव, प्रेम और सरोकार से जुड़ी रचनाओं का सरस काव्य पाठ हुआ । बहु-विधा के अंतर्गत यह गोष्ठी कविता-गीत-ग़ज़ल के वाचन द्वारा यादगार गोष्ठी साबित हुई ।

गोष्ठी में नवगीतकार साहित्याभूषण वीरेन्द्र आस्तिक कानपुर ने अध्यक्षता करते हुए सुर और तन्मयता के साथ भाव पूर्ण गीतों का सरस काव्य किया । वहीं ख्यात गजलकार शिवकुमार बिलगरामी ने मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन रहे तथा जीवन की सच्चाई को गज़लों से व्यक्त किया ।

अन्य आमंत्रित कवियों में पड़ोसी देश नेपाल से विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित कवयित्रियाँ क्रमशः प्रोफेसर श्वेता दीप्ति , मनीषा मारू , रूपम पाठक तथा अंशु झा ने काव्य पाठ किया । दिल्ली एनसीआर से क्रमशः गजलकार डॉ. अल्पना सुहासिनी, ख्यात गीतकार डॉ भावना तिवारी, कवयित्री एंकर शशि किरण ने काव्य पाठ किया । पहली बार सहभागिता रखने वाले गजलकार संजय सागर लखनऊ से तथा कवयित्री दीपा डिंगोलिया दिल्ली से जुड़ीं ।

मंच का संयोजन संचालन अवधेश सिंह ने अपने काव्य पाठ के साथ संभाला वहीं नेपाल और भारत के बीच काव्य पाठ की कड़ी साबित हुए राजभाषा अधिकारी रघुवीर शर्मा ने अपने क्रम में कविता का पाठ किया । गोष्ठी के सीधे प्रसारण को सोशल मीडिया के मंचों के द्वारा बहुसंख्यक श्रोताओं ने सराहा और सामयिक टिप्पणिया दीं तथा कवियों को प्रोत्साहित किया ।

अध्यक्षता निभा रहे ख्यात गीत कार वीरेंद्र आस्तिक ने गीत शीर्षक सामने तुम हो को तन्मयता से पढ़ा –/ सामने तुम हो,तुम्हारा मौन पढ़ना आ गया / ऑधियों में एक खुश्बू को / ठहरना आ गया / देखिए तो इस प्रकृति को / सोलहो सिंगार है / और सुनिए तो सही / कैसा ललित उद्गार है / शब्द जो अव्यक्त था / अभिव्यक्त करना आ गया / सामने तुम हो, तुम्हारा मौन पढ़ना आ गया...”।

विशेष आमंत्रित गजल-गीतकार शिव कुमार बिलगरामी ने गीतों के माध्यम से अपने चाहने वालों को खुश किया – “हर इक दुख की अपनी बोली अपनी बानी होती है / दुक्ख भरी हर एक कहानी प्रेम कहानी होती है / शबरी हो या मीरा हो या फिर कोई सहजोबाई हो/ या फिर फूलकुंअर ने जौहर कर अपनी लाज बचाई हो / तिल तिल जल कर प्रेमी को यह रस्म निभानी होती है / दुख भरी हर एक कहानी...” । इसी के साथ गज़लों से अपनी बात रखी - कितना बदल गया है नज़रिया समाज का /सादा मिज़ाज शख़्स भी सादा नहीं रहा / ख़ुद तो चला गया है वह अपने जहान में / मेरे लिए मगर कोई रस्ता नहीं रहा॥“।

विशेष सहभागिता के अंतर्गत नेपाल की कवयित्री मनीषा मारू ने पेड़ों को मानव का सच्चा दोस्त बताने वाली कविता पढ़ी – “ये पेड़ है जनाब / हर जगह अपनेपन का एहसास दिलाते हैं / घर आंगन में ये पुरखों की याद संजोते हैं / तो राह चलते आते-जाते / हर पथिको के लिए ठंडी शीतल छाँव बनकर / तैयार खड़े रहते हैं....” ।

रूमानी रिश्तों की पीड़ा को व्यक्त करते हुए नेपाल निवासी कवयित्री प्रोफेसर श्वेता दीप्ति ने कोमल एहसास की कविता ख्वाहिशों की डोर शीर्षक से पढ़ी - बाँध दी थी अपनी / छोटी–छोटी ख्वाहिशों की डोर / किसी दिन बड़ी ही शिद्दत के साथ / तुम्हारे साथ । अपनी खुशियों पर / तुम्हारी खुशियों के पहरे बिठा दिए थे मैंने/ हाँ मेरी खुशियों के पर्याय / तुम्हीं तो थे / तुमसे अलग मंजिल नहीं / और न ही कोई दूसरा रास्ता / साथी भी तुम और हमसफर भी तुम / परन्तु, ख्वाहिशों की डोर की गाँठ बहुत हलकी थी...”।

नेपाल से ही कवयित्री रूपम पाठक ने सरोकार को शब्दों से व्यक्त करते सब्र का बांध के शीर्षक से कविता पढ़ी – “सब्र का बांध जब टूटता है / बाढ़ आ जाती है आँखों में / जो बहा ले जाती हैं/ अपने साथ सारी आशाएं / सपने, हिम्मत और भरोसा। चटकता है कुछ सीने में / और नक्शे बिगड़ने लगते हैं चेहरे के / तार - तार हो जाती है / विश्वास की मज़बूत डोर...”। इसी क्रम में नेपाल से ही अंशु झा ने आक्रांत चिड़िया से जोड़ कर अपनी कविता के माध्यम से जीवन को देखा परखा ।

गीतों से पहचान बना चुकीं गीतकार डॉ भावना तिवारी ने मेट्रो सिटीज में आजकल जो रिश्तों की घुटन है उसे गीत में ढाल कर बड़ी ही तन्मयता एवं सुर के साथ पढ़ा- “तन यहाँ पड़ा मन वहाँ पड़ा, कैसा संबंध हमारा है / तुम ना न कहो हम हाँ न कहें, कैसा अनुबंध हमारा है ....”

ख्यात गजलकारा अल्पना सुहासिनी ने एक संजीदा बात गजल से काही –“ सबसे प्रीत लगाकर देखो / गुंचे नए खिलाकर देखो / हंसी ठहाके ढूंढ रहे हो रूठे दोस्त मना कर देखो । जीवन की आपा धापी में सबको जरा हंसा कर देखो / बाँट रहे हो मुस्काने तुम / अपने दर्द छिपा कर देखो ...”।

अपने क्रम में मंच का संचालन कर रहे कवि अवधेश सिंह ने अपना गीत पढ़ा – “ क्यों प्रदूषण बढ़ रहा है / सोच के संसार में.... कुटिलता के लू थपेड़े / आंधिया रुकती नहीं / मानवी ईर्ष्या अहं लालच / है की चुकती नहीं / काला हुआ सब का हृदय जल / चलन के व्यापार में..... क्यों प्रदूषण बढ़ रहा है ... / सच है थर थर काँपता / यह झूठ का दरबार है / शालीनता की पीठ पर / अब दुष्टता सवार है / निर्लज्जता, मक्कारियाँ / अब आम हैं व्यवहार में... क्यों प्रदूषण बढ़ रहा है / सोच के संसार में....

कवि रघुवीर शर्मा ने आज के कठिन समय पर कटाक्ष करते कविता पढ़ी – “हफ्ते भर गुज़र गए हैं / और खाली रहा यह सप्ताह हादसों से / अकेली लड़की घर लौटकर आई है / रात में सोये परदेसी की पोटली सुबह अपनी जगह पर मिली है। हफ्ते भर गुजर गए हैं / और शून्य रहा यह हफ्ता कविताओं से / यूं ही नहीं लिखना चाहता है एक कवि कोई कविता / हे ईश्वर! दुनिया ऐसे ही चलती रहे / और कभी नहीं लिखनी पड़ी मुझे एक भी कविता” ।

शशि किरण ने रूमानी प्रेम को कई रोचक उपमाओं के एहसास से व्यक्त करती शीर्षक तुम तो रूठे हो कविता पड़ी - तुम तो रूठे हो / खट्टे आम / कच्चा बेर / अधपकी इमली / हो जैसे रूठने पर भी / तुम और तुम्हारी मीठी सी मुस्कान / मुझे बुलाती है / मेरे कानों में गीत नया गाती है / तुम रूठे रहो,कि मुझे प्रेम का एक / नया आयाम मिल गया / मेरा कड़वा करेला / जाने ,नीम कैसे चढ़ गया !”॥

मंच से पहली बार जुड़ रहे गजलकार कवि संजय सागर ने पढ़ा – हमने तो उन होटों पर हर बार बहाने देखें हैं / जिनके घर जाते अक्सर लाखों दीवाने देखें हैं / वक्त बेचारा क्या करता उसने तो दी सारी खुशियाँ / हमने तो नादानी में सपने बचकाने देखें हैं । रातों से हमने सीखी जिंदा रहने की तरकीबें / जब रोशन गलियारों में कुछ खास ठिकाने देखें हैं” ।

कवयित्री दीपा डिंगोलिया ने जज़्बातों को शब्दो से उकेरा - खामोशियाँ यूँ ही बेवजह नहीं होतीं.../ कुछ दर्द भी आवाज़ छीन लिया करते हैं.../ वीरानियाँ यूँ हीं नहीं होतीं / कुछ रिश्ते भी मुँह मोड़ लिया करते हैं / मौसम पलट दर पलट बदलते गए / लोग जुड़ते गए और बिछड़ते गए” |

हिन्दी साहित्य पर समर्पित रचना पाठ की 110 वीं सुनहरी राष्ट्रीय गोष्ठी में लगभग 90 मिनट तक निरंतर चली एक दर्जन से अधिक कवि और शायरों ने सहभागिता दी है आभासी मंच पर गोष्ठी को 100 से ज्यादा लोगों ने देखा , 50 से ज्यादा प्रोत्साहन टिप्पणियाँ मिली ।

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