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उत्तर प्रदेश

Varanasi: पंचतत्व में विलीन हुए सुनील ओजा, बेटी गंगा ने चरण छूकर अपने बाबा को दी विदाई

Abhay updhyay
30 Nov 2023 8:01 AM GMT
Varanasi: पंचतत्व में विलीन हुए सुनील ओजा, बेटी गंगा ने चरण छूकर अपने बाबा को दी विदाई
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कछवां क्षेत्र के गड़ौली धाम के संस्थापक और बिहार प्रांत के सह प्रभारी सुनील भाई ओजा पंचतत्व में विलीन हो गए। उनका अंतिम संस्कार धाम के ही गंगा घाट पर किया गया। उनके बड़े पुत्र विरल और छोटे बेटे रूत्वीज ने चिता को मुखाग्नि दी। इस दौरान उनकी पत्नी, बहुएं, गोद ली बेटी सहित भाजपा के कई पदाधिकारी, मंत्री व विधायक मौजूद रहे। स्थानीय लोगों ने हर हर महादेव के जयकारे के साथ सुनील ओजा को विदाई दी।


बिजेपी के तिरंगे में लिपटा सुनील ओजा का पार्थिव शरीर दोपहर 11:30 बजे वाराणसी से गड़ौली धाम पहुंचा।

यहां एक घंटे तक अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। इस दौरान केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, बिहार प्रदेश अध्यक्ष भाजपा सम्राट चौधरी सहित विधायक सांसदों ने उन्हें पुष्प गुच्छ अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। इस दौरान उनके परिजनों ने भी श्रद्धा सुमन अर्पित किया। बेटी गंगा ने भी चरण छूकर अपने बाबा को विदाई दी। इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को पास ही गंगा घाट पर सजाई गई चिता तक ले जाया गया। हर हर महादेव सहित तमाम जयकारों के बीच उनके बेटों विरल और रूत्वीज ने चिता में आग लगाई। लोगों ने नम आंखो से उन्हें अलविदा कहा।

सुनील ओजा का निधन बुधवार अलसुबह 4.30 बजे गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में हार्ट अटैक से हुआ था। कुछ महीने पहले ही उनका उत्तर प्रदेश से बिहार ट्रांसफर हुआ था। बिहार ट्रांसफर से पहले सुनील ओजा यूपी के सह प्रभारी थे। निधन की सूचना से भाजपा कार्यकर्ताओं में शोक की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया के एक्स प्लेटफार्म पर सुनील ओजा के साथ की फोटो शेयर करते हुए गहरा दुख व्यक्त किया है। मूल रूप से गुजरात के रहने वाले सुनील ओजा ने अपने राजनीतिक कॅरिअर की शुरुआत गुजरात के भावनगर से की थी। ओजा 1998 और 2002 में भावनगर (दक्षिण) निर्वाचन क्षेत्र से गुजरात विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। वर्ष 2007 में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़े और हार गए। जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब ओजा ने उनके नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह किया था और 2007 के चुनावों से पहले पार्टी छोड़ दी थी।


वह एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। बाद में, ओजा एक अन्य बागी नेता व मोदी सरकार में पूर्व मंत्री गोवर्धन झड़फिया की बनाई गई महागुजरात जनता पार्टी में शामिल हो गए। हालांकि बाद में 2011 में वह एक बार फिर भाजपा के करीब आ गए। फिर उन्हें गुजरात भाजपा का प्रवक्ता बना दिया गया। जब 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लोकसभा से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो सुनील ओजा, अरुण सिंह और सुनील देवधर को चुनाव की जिम्मेदारी संभालने के लिए भेजा गया। चुनाव के बाद सुनील देवधर और अरुण सिंह ने तो दूसरी जिम्मेदारियां संभाल लीं मगर, सुनील ओजा वाराणसी में ही रह गए। 2014 से पहले अमित शाह को यूपी भाजपा का प्रभारी बनाया गया तो सुनील ओजा को सहप्रभारी बना दिया गया। 2014 में वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र की जिम्मेदारी के लिए खुद प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें चुना था। ओजा तब से काशी क्षेत्र की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। 2019 में उन्हें गोरक्ष प्रांत की भी जिम्मेदारी दी गई थी। गढ़ौली धाम में सरकारी खर्च पर 1008 सामूहिक विवाह कराने के बाद विवाद में आए ओजा का स्थानांतरण प्रदेश सह प्रभारी के रूप में बिहार कर दिया गया था।

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