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'भारतीय साहित्य व संस्कृति में संकीर्णता के लिए कोई स्थान नहीं'
-नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में महफ़िल ए बारादरी आयोजित
नेहा सिंह तोमर
गाजियाबाद। वरिष्ठ कवि व चिंतक योगेन्द्र दत्त शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य व संस्कृति में संकीर्णता के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा कि कवियों, शायरों की यह महफिल भी हमारे साहित्य और संस्कृति की पहचान बन गई है। विश्व हास्य दिवस को केंद्र में रखकर उन्होंने कहा कि मंचों पर हास्य के नाम पर जिस तरह की फूहड़ता परोसी जा रही है उससे इतर बारादरी जैसे आयोजन गंभीर चिंतन के संरक्षण का काम करते हैं। नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित महफ़िल ए बारादरी की अध्यक्षता करते हुए यह बात कही है।
उन्होंने अपने गीत की पंक्तियों 'कपिलवस्तु से श्रावस्ती तक, हाट, वीथिका से बस्ती तक, सहमा-सहमा नीति-न्याय है, जन साधारण निस्सहाय है !' और वर्तमान परिवेश के संदर्भ में 'आज इस डाल पर, कल किसी और पर, आप टिक ही न पाते किसी ठौर पर! कल किसी के रहे, आज इनके हुए, आप ही अब बताएं कि किनके हुए' पर भरपूर दाद बटोरी।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि अंतरराष्ट्रीय कवयित्री डॉ. सरिता शर्मा ने कहा कि इस कार्यक्रम में आकर वह समृद्ध हुई हैं। उन्होंने अपनी पंक्तियों 'हजार जान से कुर्बान भी है खफा-खफा है मेहरबानी है, मेरी उदास तबस्सुम का सबब वो जानता भी है और अनजान भी है' के अलावा 'मोहब्बत, प्यार, चाहत या वफ़ा कुछ भी नहीं होता, न पैसा साथ होता तो यहां कुछ भी नहीं होता, गरीबी देख कर उनकी, बड़ी तकलीफ़ होती है, जिनके पास पैसे के सिवा कुछ नहीं होता' पर भरपूर दाद बटोरी।