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राम मंदिर के साथ ही लौटा पावन नगरी अयोध्या का पुराना वैभव
त्रेता युग से जब कलयुग आया, तो अयोध्या वह अयोध्या नहीं रही। विदेशी आक्रमणकारियों ने राम जन्मभूमि को मिटा देने के अनेक घिनौने और हिंसक प्रयास किए। राम भक्तों ने पूरी शक्ति लगा कर उनका प्रतिरोध किया। चार दशकों में चार लाख से ज्यादा राम भक्तों ने प्राणों की आहुति दे दी। राम जन्मभूमि के लिए संघर्ष चलता रहा। लंबा कानूनी संघर्ष भी चला। अंत में सत्य की विजय हुई। हिंदुओं का खोया गौरव, स्वाभिमान लौटा।
सात पावन नगरियों में से एक और तीन लोक के स्वामी भगवान विष्णु की अवतार स्थली अयोध्या उत्तर प्रदेश में स्थित है। हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए धर्म ग्रंथों में भी अयोध्या का मनोरम वर्णन है। महर्षि वाल्मीकि की रामायण में जिस अयोध्या का वर्णन है, उसकी भौगोलिक स्थिति आज की स्थिति से बिल्कुल मिलती है।
कौशल नाम से बड़ा जनपद है, जो सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है। वह प्रचुर धन-धान्य से संपन्न, सुखी और समृद्धिशाली है। उसी जनपद में अयोध्या नाम की नगरी है, जो समस्त लोकों में विख्यात है। उस पुरी को स्वयं महाराज मनु ने बनवाया और बसाया है। इक्ष्वाकु वंश की यह महापुरी 12 योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी थी। जहां बाहर के जनपदों में जाने के लिए विशाल राजमार्ग थे। इक्ष्वाकु वंश के राजाओं ने इसे बहुत सुंदर सजा-संवार कर और सुरक्षित रखा।
वाल्मीकि लिखते हैं- जैसे देवराज इंद्र ने अमरावती पुरी बसाई थी, उसी प्रकार धर्म और न्याय के बल से अपने महान राष्ट्र की वृद्धि करने वाले राजा दशरथ ने अयोध्या पुरी को पहले की अपेक्षा विशेष रूप से बसाया था। राजा दशरथ अपनी प्रजा का पालन करने वाले, वेदों के विद्वान, दूरदर्शी और महान तेजस्वी राजा थे। वे इक्ष्वाकु कुल के अतिरथी वीर थे। अति रथी यानी जो 10 हजार अति रथियों के साथ अकेले ही युद्ध करने में समर्थ हो। यज्ञ करने वाले धर्म परायण और जितेंद्रिय थे। वे बलवान, शत्रुहीन और मित्रों से युक्त थे।
धन-धान्य की दृष्टि से इंद्र और कुबेर के समान थे। इसके साथ ही उनमें महर्षियों के समान दिव्य गुण थे, इसलिए राजर्षि थे। तीनों लोकों में उनकी ख्याति थी। जैसे महातेजस्वी प्रजापति मनु संपूर्ण जगत की रक्षा करते थे, उसी तरह राजा दशरथ करते थे। ऐसे महान राजर्षि की प्रजा प्रसन्न, धर्मात्मा, निर्लोभी, सत्यवादी और अपने धन से संतुष्ट रहने वाली थी। अयोध्या में कोई भी कामी, कृपण, क्रूर, मूर्ख और नास्तिक मनुष्य नहीं था। सभी धर्मशील, संयमी, सदाचारी, प्रसन्नचित्त और निर्मल थे।
जब इस महान नगरी में राजर्षि के घर स्वयं भगवान विष्णु और शेषनाग ने संतान के रूप में जन्म लिया, तो 33 कोटि देवताओं को उनके दर्शन करने पृथ्वी पर अयोध्या आना पड़ा। भगवान विष्णु के नर अवतार से इक्ष्वाकु वंश की ये यह महान नगरी महान तीर्थ भी बन गई। राम के बिना अयोध्या और अयोध्या के बिना भगवान श्रीराम की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
श्रीराम को भी अपनी अयोध्या बहुत प्रिय थी। जब वे 14 वर्ष के वनवास से अयोद्या लौटे, तो
उन्होंने स्वयं कहा-
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि।
उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा।
मम समीप नर पावहि बासा।।
(यह सुहावनी पुरी (अयोध्या) मेरी जन्मभूमि है। इसके उत्तर दिशा में जीवों को पवित्र करने वाली सरयू नदी बहती है। उसमें स्नान करने से मनुष्य बिना परिश्रम मेरे समीप निवास
(मुक्ति) पा जाते हैं।)
गोस्वामी तुलसीदास और महर्षि वाल्मीकि, दोनों ने ही अयोध्या के वैभव, कला, संस्कृति, व्यापार, सेना, हाथी, घोड़ों, प्रजा के ज्ञान और गुणों का वर्णन किया है। पूरी तरह से अभेद्य थी अयोध्या। अयोध्या का अर्थ है- जिससे कोई युद्ध न कर सके। अयोध्या के आसपास दो योजन भूमि तो ऐसी थी, जहां पहुंच कर किसी के लिए भी युद्ध करना संभव नहीं था। अयोध्यापुरी अपने नाम को सत्य और सार्थक प्रमाणित करती है। महाराजा दशरथ ने सभी शत्रुओं को नष्ट कर दिया था और वे अयोध्या पर ऐसे ही शासन करते थे, जैसे चंद्रमा नक्षत्रलोक में शासन करते हैं। राजा दशरथ उदार और सत्यप्रतिज्ञ थे। अयोध्या में रह कर वे समस्त पृथ्वी पर शासन करते थे।
तुलसीदास ने राम चरित मानस में अयोध्या के वैभव का वर्णन किया है-
धवल धाम ऊपर नभ चुंबत।
कलस मनहुं रबि ससि दुति निंदत।।
बहु मनि रचित झरोखा भाजहिं।
गृह गृह प्रतिमनि दीप विराजहिं।।
(उज्जवल महल ऊपर आकाश को चूम रहे हैं। महलों पर लगे कलश दिव्य प्रकाश से मानो सूर्य, चंद्रमा के प्रकाश की भी निंदा कर रहे हों। बहुत सी मणियों से रचे हुए झरोखे सुशोभित हैं और घर-घऱ में मणियों के दीपक शोभा पा रहे हैं।)
तुलसी कहते हैं, जब नारद ऋषि, सनक आदि मुनि और अन्य मुनिवर भगवान राम के दर्शन के लिए अयोध्या आते हैं, तो वहां की शोभा देख कर वैराग्य भूल जाते हैं। राजमहलों की शोभा के साथ-साथ तुलसीदास अयोध्यावासियों के घरों के बारे में भी लिखते हैं- मणियों के दीपक शोभा दे रहे हैं। मणियों की बनी देहलियां चमक रही हैं। मणियों के खंभे हैं। मरकत मणियों यानी पन्ने से जड़ी सोने की दीवारें हैं। महल सुंदर हैं। उनमें स्फटिक के आंगन बने हैं। प्रत्येक द्वार पर हीरों से जड़े किवाड़ लगे हैं।
तुलसीदास और महर्षि वाल्मीकि अयोध्यावासियों की कलात्मक रुचियों, गीत-संगीत प्रेम, बाग-बगीचों, वन, उपवनों के बारे में भी लिखते हैं। उन्होंने अयोध्या में श्री के वैभव के बारे में बताया, साथ ही प्रकृति के अपार और सुंदर खजाने की बात भी की। घर-घर में सुंदर चित्रशालाएं हैं, सुंदर वाटिकाएं हैं, जिनमें तरह-तरह के पुष्प और लताएं लगी हैं। सुंदर सुगंधित पवन बहती है। मोर, हंस, सारस घरों और बगीचों में आते-जाते रहते हैं। सरयू नदी कितनी स्वच्छ रहती है, उसका जल कितना निर्मल है, घाट कितने साफ हैं, यह भी बताया गया है।
इसी बहाने दोनों ने सामाजिक समरसता की बात भी कही। जाति-पाति, वर्ण भेद भगवान राम की नगरी अयोध्या में होता ही नहीं था। नदी के घाटों पर चारों वर्णों के लोग स्नान करते थे। ऋषि, मुनि सरयू के किनारे और अयोध्या के जंगलों में तपस्या करने आते थे। सरयू के अतिरिक्त बहुत सारी बावड़ियां, सरोवर और कुंए थे, जिनकी सीढ़ियों में मणियां लगी हुई थीं। सरोवरों में सुंदर कमल खिलते हैं। बागों में कोयलें कूकती हैं।
बाजारों में दुकानों पर बैठे वणिज सेठ कुबेर जैसे लगते हैं। जिस नगरी के राजा रमापति हों, भला वहां रमा यानी लक्ष्मी की शोभा कैसे नहीं होगी? नगर के आम लोग भी आभूषणों से सुसज्जित रहते हैं। विद्वान हैं, सत्यवादी हैं, धर्म का आचरण करते हैं, सदाचारी हैं।
त्रेता युग से जब कलयुग आया, तो अयोध्या वह अयोध्या नहीं रही। विदेशी आक्रमणकारियों ने राम जन्मभूमि को मिटा देने के अनेक घिनौने और हिंसक प्रयास किए। राम भक्तों ने पूरी शक्ति लगा कर उनका प्रतिरोध किया। चार दशकों में चार लाख से ज्यादा राम भक्तों ने प्राणों की आहुति दे दी। राम जन्मभूमि के लिए संघर्ष चलता रहा। लंबा कानूनी संघर्ष भी चला। अंत में सत्य की विजय हुई। हिंदुओं का खोया गौरव, स्वाभिमान लौटा। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में निर्णय दिया। विश्व हिंदू परिषद का आंदोलन सफल हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को श्री राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया।
केंद्र और उत्तर प्रदेश की योगी आदित्य नाथ सरकार अयोध्या को विश्व स्तर का शहर बनाने के लिए अनेक योजनाओं को मूर्त रूप दे रही हैं। अयोध्या में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, 200 बसों की पार्किंग वाला बस अड्डा और आधुनिक सुविधाओं से युक्त रेलवे स्टेशन बनाया जा रहा है। सरयू नदी में पत्तन पोत परिवहन और जल मार्ग मंत्रालय की वातानूकूलित क्रूज चलाने की योजना है। अस्सी सीटों वाले क्रूज में रामायण पर फिल्म दिखाई जाएगी। यात्रा का समापन सरयू नदी की आरती से होगा।
अयोध्या को अब विश्व की सांस्कृतिक एवं धार्मिक धरोहरों, पौराणिक, सांस्कृतिक आस्था के केंद्र के रूप में स्थापित किया जा रहा है। विशेषज्ञों, इंजीनियरों और वास्तुविदों ने प्राचीन वैदिक नगरों के निर्माण की आठ विधाओं का गहन अध्ययन कर अयोध्या को धनुषाकार बनाने का प्रारूप तैयार है। श्रीराम जन्मभूमि और अयोध्या का खोया प्राचीन वैभव फिर सजीव हो उठेगा। श्री राम मंदिर निर्माण से राम राज्य और राष्ट्र निर्माण का सपना भी पूरा होगा।